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भारत

“ हिन्दुत्व अपने जन्म से ही जातिवादी और दलित विरोधी है !”

( डिस्मेन्टलिंग ग्लोबल हिंदुत्व कॉन्फ्रेंस में मेरा भाषण ) तमाम चुनौतियों व खतरों के बावजूद यह कॉन्फ्रेंस हो रही है ,यह ख़ुशी की बात है. इस कॉन्फ्रेंस में आपने मुझे वक्ता के रूप में बुलाया और अपनी बात रखने का मौका दिया,इसके लिए मैं

कोविड-19 दलित महिलाओ को बना रहा है और ज्यादा गरीब !

( सुमन देवठिया ) इस समय कोरोना महामारी पूरे देश मे फ़ैल रही है जिसकी चपेट मे भारत भी है, इस कोरोना ने ना केवल इंसान के स्वास्थ्य को प्रभावित किया है बल्कि इंसान के रोजगार, आजादी और पसंद को छीन लिया है. कोरोना ने लोगो की आजादी,

राजनेता प्राय: आत्महत्या क्यों नहीं करते?

( हरिराम मीणा) आत्महत्या नेता नहीं करते, क्योंकि उसके लिए आत्मा की ज़रूरत होती है’. यहाँ ‘आत्मा’ शब्द को ‘आत्म’ के रूप में देखना शायद बहतर होगा, चूँकि राजनेता आत्मकेंद्रित होते हैं. राजनैतिक दृष्टि से उनका ‘आत्म’ उनके व्यक्ति और परिवार

कौन है देश की गुलामी के गुनाहगार ?

-डॉ. एम एल परिहार आज हम देश की उस आजादी का जश्न मना रहे हैं जिसके लिए हर क्षेत्र के देशप्रेमियों ने अपना त्याग व बलिदान दिया था. मेहनतकश किसान, मजदूर, दलित, आदिवासी,सेनानी , क्रांतिकारी, लेखक,विचारक नेता आजादी के मतवालों ने अपना योगदान

विविधता ,संघीय शासन और अनुच्छेद 370

- सम्राट बौद्ध आम तौर पर प्रजातान्त्रिक देशों में शासन का स्वरूप दो तरह का होता है, पहला- एकात्मक और दूसरा -संघात्मक।वे देश जिनमे धार्मिक, भाषाई व नृजातीय विविधता नही पाई जाती है, उनमें एकात्मक शासन व्यवस्था होती है , क्योंकि इन

लोकतांत्रिक समाजों की कुछ श्रेणियां

दुनिया के जो विकसित देश हैं संभवतः बिना अपवाद सभी लोकतांत्रिक देश हैं। भारत में बहुत लोगों को यह गलतफहमी रहती है कि चीन एक विकसित देश है, इसलिए यहां यह बताना उचित समझता हूं कि चीन विकासशील देश है, विकसित देश होने की शर्तों को पूरा कर

भारत के सभ्य और समर्थ होने की दिशा: धार्मिक सुधार आन्दोलन

 ( संजय श्रमण ) पहले तरह के लोग और उनकी प्रतिक्रिया: ये वे लोग हैं जिनके परिवार, गाँवों गली मुहल्लों रिश्तेदारों में पुराने शोषक धर्म के कारण बहुत सारा भेदभाव और दुःख पसरा हुआ है. ये लोग नयी…

भारत के बहुजन तय कर लें कि वे क्या चाहते हैं ?

विज्ञान, तकनीक और इंजीनियरिंग मेडिसिन मैनेजमेंट आदि पर अधिक जोर देकर और ह्यूमेनिटीज, सोशल साइंस को कुचलकर असल मे वर्ण व्यवस्था को वापस लाया जा रहा है.वर्ण व्यवस्था को ज्ञान के कुप्रबंधन या ज्ञान की हत्या के अर्थ में देखिये. समाज की बुद्धि…

अब सियासत का दिल फकीरी में नहीं लगता

जिस सल्तनत का बादशाह फ़क़ीर हो ,उस रियासत का हर शहरी बादशाह होता है. यह पुरानी कहावत है.वो राजाओं का दौर था. शायद उस दौर में कोई कोई राजा- बादशाह खुद की जिंदगी को फकीराना अंदाज में जीता होगा.इसीलिए यह कहावत बनी होगी. कहावत वो जो व्यापक…