भीलवाड़ा,1 अप्रैल। भारतीय संविधान ने  मूल अधिकारों व नीति निर्देशक तत्वों के द्वारा जनता के हितों की रक्षा व मानवाधिकारों की रक्षा का मार्ग प्रशस्त किया है।  लोकतान्रिक व्यवस्था की स्थापना ने जनता को अपनी  सत्ता को चुनने का अस्त्र दिया तो संविधान ने राज्य की दिशा निर्धारित की । ये विचार इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने व्यक्त किए।
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ,राजस्थान के 11 वें राज्य सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में  संवैधानिक लोकतंत्र की पुनः प्राप्ति: मानवाधिकार की रक्षा विषय पर बोलते हुए जस्टिस माथुर ने कहा कि  लोकतंत्र और बहुसंख्यक वाद के अंतर  को समझना होगा। कोई भी सरकार बहुमत के आधार पर  संविधान प्रदत्त लोकतंत्र का गला घोंटने के लिए स्वतंत्र नहीं है। दुर्भाग्य से  कार्यपालिका और न्यायपालिका के अधिकारों के बीच विवाद खड़ा किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि  भीडतंत्र और लोकतंत्र में अंतर होता है। भीड़ को न्याय करने का हक  नहीं दिया जा सकता है। जस्टिस माथुर ने उम्मीद जाहिर कि  जनता लोकतंत्र  और संविधान  के महत्व को समझेगी और उन्हें कुचलने के इरादों को ध्वस्त करेगी। i
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता  श्रीमती अरुणा राय ने कहा कि  इस समय देश में भय का वातावरण खड़ा कर  दमित और गरीब वर्ग की आवाज उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं की आवाज बंद करने का प्रयास किया जा रहा है।  जो व्यक्ति आवाज उठाता है उसे झूठे मुकदमों में फंसा दिया जाता है। संवैधानिक संस्थाएं चुनाव आयोग,मानवाधिकार आयोग,महिला आयोग गौण हो गए हैं ।
उन्होंने  राज्य भर से बड़ी संख्या में आए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं
से आग्रह किया कि वे छोटी छोटी बैठकों  के द्वारा जनता से संवाद स्थापित करें ।
दूसरे सत्र में बोलते हुए पत्रकार मीना कोतवाल ने कहा कि
बड़े मीडिया समूहों में दलितों का प्रतिनिधित्व नही है ।.जो पीड़ित है वही बंदिश में रह रहा है। सत्ता भीड़ के पास है और डॉ आंबेडकर के कानून का कोई मतलब नही रह गया,अब भीड़ फैसला करने लगी है
2014 से 19 तक सबसे ज्यादा लिंचिंग अल्पसंख्यक, दलितों की हुई है । मीडिया भी जाति देखकर तय करता है कि किस मामले को बढ़ाना और किस मामले को दबाना है
सामाजिक कार्यकर्ता इमामुद्दीन ने कहा कि राजस्थान के सब क्षेत्रों में अल्पसंख्यक समुदाय की हालात खराब है। विधानसभा में बैठे लोग भी हमारा शोषण कर रहे है।राजनीति में परिवारवाद , भ्रष्टाचार हावी है । अब लोगों को अवेयर करना ही इनसे बचने का एकमात्र उपाय है ।
वरिष्ठ पत्रकार नसीरूदीन ने बोलते हुए कहा कि
भीड़ का जो उन्माद तैयार किया गया,उसका फायदा सिर्फ एक राजनैतिक दल को मिला । 2009 में जो पार्टी चौथे स्थान पर रही वही पार्टी 2014 में नम्बर एक पर आ जाती है । अल्पसंख्यक हत्याओं पर आरोपियों को सम्मानित भी किया जा रहा है ।भीड़ ने अब हर व्यक्ति के व्यक्तित्व को धार्मिक पहचान तक सीमित कर दिया है
भीड़ है जो खौफ़ के साये में बदल चुकी है ।
इन समस्याओं से बचाव का उपाय यही है कि हमें मानवाधिकार की कानूनी भाषा को बदलना होगा,रचनात्मक होना होगा ।स्थानीय भाषाओं ,कला व संस्कृति का सहारा लेकर लोगों तक हमारी बात पंहुचानी होगी

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