जयपुर 29 जनवरी 2022- राजस्थान सरकार के तंत्र की निर्दयता और बेरुख़ी की सबसे बड़ी मिसाल यह है कि 69 निस्तारित शिक़ायतों में से 15 शिक़ायतों को ये कारण देते हुए ‘निस्तारित’ कर दिया गया कि उनकी शिकायतकर्ता से मोबाइल नंबर पर संपर्क नहीं हो पाया जबकि यह बड़ी विचित्र बात है कि हमारी टीम द्वारा सभी 15 शिकायतकर्ताओं उसी मोबाइल नंबर पर बात हो गई जिस पर सरकारी अधिकारी और कर्मचारी बात नहीं कर पाए. 


अभियान द्वारा जयपुर, अजमेर, डूंगरपुर और राजसमंद ज़िलों के 69 शिक़ायत-कर्ताओं को फ़ोन किए गए हैं जिनकी शिक़ायतें राजस्थान संपर्क पोर्टल के अनुसार ‘निस्तारित’ कर दी गई हैं। इस विश्लेषण का उद्देश्य यह था कि यह देखा जाए कि इन शिक़ायतों का वाक़ई समाधान हुआ है या सिर्फ़ उनका काग़ज़ी ‘निस्तारण’ किया जा रहा है. इस विश्लेषण के नतीजे बड़े चौंकाने वाले हैं। 


 1- शिक़ायत का कुछ भी जवाब दे देना एवं शिकायतकर्ता को भटकने के लिए छोड़ देना

कई तरह के मामलों — जैसे: पीएम-किसान की बक़ाया किस्तें, बीओसीडब्ल्यू कल्याण योजनाओं के बक़ाया भुगतान, लेबर कार्ड के लंबित पंजीकरण आदि — में समाधान के नाम पर शिक़ायतकर्ता को ही किसी सरकारी दफ़्तर जाने और अपनी शिक़ायत का समाधान करवाने के लिए कह दिया गया है। जबकि इस शिकायत निवारण व्यवस्था की जिम्मेदारी है शिकायत का समाधान करना ना कि शिकायतकर्ता को उन्हीं सरकारी दफ्तर और कागजी कार्यवाही में वापस उलझाना. मसलन, डूंगरपुर ज़िले के वालेंग रोत (फ़ोन: 9166713815 और शिक़ायत संख्या: 122101111635226) जिन्होंने पीएम-किसान की किस्तें ना मिलने की शिक़ायत की थी उन्हें यह कहा गया कि वह अपना आधार कार्ड और बैंक पासबुक लेकर तहसील में आ जाएँ और उनकी समस्या का समाधान कर दिया जायेगा. यह लिखकर इस शिकायत का निस्तारण कर दिया गया जबकि उन्हें तहसील कार्यालय में जाना भी है तो कहाँ जाना है और किससे मिलना है आदि नहीं लिखा गया और आप और हम सभी जानते हैं कि एक आम जन अपने कागजों की पोटली लेकर एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर के चक्कर लगाते रहते हैं और वहां पर अधिकतर अधिकारी और कर्मचारी उनको बोलते हैं यह हमारा काम नहीं है तो फिर किसका काम है यही तो राजस्थान संपर्क को बताना है और करवाना है. असल समाधान तो तब होता जब उचित अधिकारी द्वारा पीएम किसान सम्मान निधि नहीं मिलने का असल कारण मालूम कर उचित कार्रवाई की गई होती और शिक़ायतकर्ता को योजना का लाभ मिल जाता। कई शिक़ायतों को यह कहकर ‘निस्तारित’ कर दिया गया है शिक़ायतकर्ता संबंधित विभाग से संपर्क करें। ऐसे में शिक़ायतकर्ता के राजस्थान संपर्क पोर्टल पर शिक़ायत करने का क्या मतलब है? 


 2- ‘निस्तारण’ के विरुद्ध अपील करने का कोई तरीक़ा ना होना 

राजस्थान संपर्क पर अधिकारी कुछ भी लिखकर शिकायत को निस्तारित कर देते हैं और उसकी निगरानी शायद कोई करता नहीं है क्योंकि इस विश्लेषण ने साफ़ तौर पर यह प्रदर्शित किया है कि यदि शिक़ायतकर्ताओं की समस्याएँ संतोषजनक रूप से निस्तारित ना की जाएँ तो उनके पास अपनी शिक़ायत आगे बढ़ाने का कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है। मसलन, लगभग 50 फ़ीसदी सत्यापित शिक़ायतकर्ताओं ने बताया कि वह सम्पर्क पोर्टल के ‘निस्तारण’ से संतुष्ट नहीं हैं लेकिन उनकी शिक़ायतें पोर्टल द्वारा निस्तारित दिखाते हुए उन्हें समाप्त मान लिया गया। उदाहरण के तौर पर जयपुर ज़िले के आकाश पालीवाल (फ़ोन: 8386968089 और शिक़ायत संख्या:122102711623033) ने शराब की अवैध बिक्री के ख़िलाफ़ शिक़ायत की। विभाग ने इस शिक़ायत को यह कहकर समाप्त माना कि मौक़े पर की गई जाँच के बाद शराब की कोई अवैध बिक्री नहीं पाई गई। जबकि होना यह चाहिए था कि शिकायतकर्ता से संपर्क कर उन्हें कब जाँच की जा रही है और यदि शिकायतकर्ता के पास इसके कोई सबूत हैं तो उन्हें भी जाँच में शामिल करना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं किया गया. शिक़ायतकर्ता को तो यह भी नहीं बताया गया कि यह जांच कब हुई! शिक़ायतकर्ता के इस जांच से असहमत होने के बाद भी उनके पास इस शिक़ायत को आगे बढ़ाने का कोई तरीक़ा नहीं था।


इसी तरह डूंगरपुर ज़िले के पप्पू (फ़ोन: 6351872936 और शिक़ायत संख्या: 122103011635700) ने राशन न मिलने की शिक़ायत की तो उन्हें राजस्थान संपर्क द्वारा सूचित किया गया कि ऐसा उनका राशन कार्ड डिलीट कर दिए जाने की वजह से हुआ है। सबसे पहले राशनकार्ड को डिलीट क्यों किया गया उसका कारण देना चाहिए था लेकिन वह नहीं बताया गया और इस मामले में उसे लगभग 1.5 साल का राशन नहीं मिला, इस कोविड के समय में उस परिवार को जो झेलना पड़ा है उसके लिए कौन जिम्मेदार है नहीं बताया गया और यह बता दिया गया कि आपका राशनकार्ड वापस रिज्यूम कर दिया गया है. उस व्यक्ति को आज भी राशन न मिलने के बावजूद यह शिक़ायत ‘निस्तारित’ कर दी गई


 3- राज्य सरकार नहीं कर है राष्ट्रीय खाध्य सुरक्षा कानून का पालन

253 शिक़ायतें ऐसे लोगों द्वारा दर्ज़ की गईं जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून के तहत राशन प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। इनमें से लगभग 90 फ़ीसदी शिक़ायतें यह कहकर ‘निस्तारित’ कर दी गई हैं कि एनएफएसए पोर्टल काम ना करने की वजह से इस मामले में कुछ नहीं किया जा सकता। राष्ट्रीय खाध्य सुरक्षा कानून के तहत अपील स्वीकार नहीं करके इस कानून का उल्लंघन राज्य सरकार द्वारा किया जा रहा है. इस तरह शिक़ायतकर्ताओं का एनएफएसए सूची में शामिल किए जाने का हक़ उनसे छीना जा रहा है।


 4- गलत अधिकार क्षेत्र की वजह से शिक़ायत अस्वीकार करना
सिलिकोसिस पीड़ितों को नीतिगत आधार पर मिलने वाली पेंशन ना मिलने पर दाख़िल की गई कई गम्भीर शिक़ायतें यह लिखकर ‘निस्तारित’ कर दी गईं कि वे गलत विभाग में दाख़िल की गई हैं। मसलन, राजसमंद ज़िले के घीसा सिंह (फ़ोन: 9001354062 शिक़ायत संख्या: 122109111631444) द्वारा सिलिकोसिस पीड़ितों को मिलने वाली एक हजार पांच सौ की पेंशन उन्हें नहीं मिल रही थी उसकी शिकायत उन्होंने दर्ज करवाई थी जिसे यह कहकर ‘निस्तारित’ कर दिया गया कि जिस विभाग को उन्होंने यह शिक़ायत दाखिल की है वह उचित विभाग नहीं है। यह शिकायत सूचना प्रौद्योगिकी के उपनिदेशक को दी गई वहां पर बैठे डाटा एंट्री ऑपरेटर ने इसे कोष एवं लेखा विभाग को भेज दिया जबकि इसे सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग में भेजा जाना चाहिए था. शिकायत करने वाला व्यक्ति यह तो नहीं जनता है कि शिकायत को कहाँ भेजा जाना है इसलिए जिस भी विभाग के पास यह शिकायत पहुंची उस शिक़ायत प्राप्त करने वाले अधिकारी की ज़िम्मेदारी होनी चाहिए कि वह उचित विभाग/अधिकारी तक यह शिक़ायत पहुंचाएं. ऐसी गंभीर शिक़ायत को बिना कार्रवाई के ‘निस्तारित’ कर पल्ला झाड़ लिया गया। इस तरह राजस्थान सरकार की फ़्लैग्शिप सिलिकोसिस नीति के ज़रिए सिलिकोसिस पीड़ितों को मिले हक़ों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन हो रहा है।

पिंडवाड़ा ज़िले में 94 सिलिकोसिस प्रभावित व्यक्ति हैं जिनके परिवारों को खाद्य सुरक्षा की सूची में शामिल नहीं किया गया है जबकि राजस्थान सिलिकोसिस नीति की धारा 8.4.2 साफ़ तौर पर यह कहती है कि “राज्य सरकार सिलिकोसिस पीड़ितों को खाद्य सुरक्षा सूची में शामिल करने की प्रक्रिया शुरू करेगी”। इसी तरह लगभग 30 सिलिकोसिस पीड़ित ऐसे हैं जिन्हें सिलिकोसिस नीति की धारा 8.4 के तहत अभी तक पेंशन नहीं मिल रही है। यहां यह ध्यान रखने वाली बात है कि इन लोगों को तो शिकायत करने की आवश्यकता ही नहीं पड़नी चाहिए थी, प्रशासन की यह ज़िम्मेदारी है कि पीड़ित व्यक्तियों के व्यक्तिगत शिक़ायत दर्ज़ करने का इंतजार किए बिना ही पीड़ित व्यक्तियों को उनका हक़ देना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह तो राज्य के केवल एक ज़िले की स्थिति है।


 5- शिकायत पर कार्रवाई में अत्यधिक देरी करना

जयपुर नगर निगम में एक मामले में शिक़ायतकर्ता द्वारा मकान का पट्टा न मिलने की शिक़ायत दर्ज़ की थी। यह शिक़ायत 70 दिनों से भी ज़्यादा समय से लंबित है और इसे एक अधिकारी की मेज़ से दूसरे और फिर तीसरे की मेज़ पर घुमाया जा रहा है और कोई भी अधिकारी/कर्मचारी इसके समाधान की ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है।


कोविड-19 के मामलों में अचानक आई तेजी की वजह से 7 जनवरी 2022 को जवाबदेही यात्रा को (तय समय से पहले) स्थगित करना पड़ा था हालांकि यह आपको पूर्व में भी बताया जा चुका है. यात्रा स्थगित हुई है लेकिन जवाबदेही क़ानून के लिए अभियान जारी है। सरकारी तंत्र की नागरिकों के प्रति जवाबदेही की मौजूदा व्यवस्था का विश्लेषण करने और इसे मज़बूत बनाने की पैरवी के प्रयासों का एक अहम ज़रिया राज्य भर में व्यक्तिगत शिक़ायतों के निस्तारण की वर्तमान व्यवस्था का मूल्याँकन करना है। यात्रा के दौरान लगभग ढाई हज़ार शिक़ायतें राजस्थान सरकार के आधिकारिक शिक़ायत निवारण पोर्टल यानी राजस्थान संपर्क पर दर्ज़ की गईं। इससे सूचना एवं रोज़गार अधिकार अभियान राजथान को हर एक शिक़ायत पर की गई कार्रवाई और इस व्यवस्था में शिक़ायतों की क़दम-दर-क़दम प्रगति को देखने और विश्लेषित करने का मौक़ा मिला। अब तक जो शिक़ायतें ‘निस्तारित’ की गई हैं उनमें से हर एक का विश्लेषण किया जा रहा है और सभी शिक़ायतकर्ताओं से व्यक्तिगत तौर पर संपर्क किया जा रहा है। अभियान के द्वारा जयपुर में स्थित एक समर्पित कार्यकर्ताओं के दल द्वारा यह विश्लेषण और मूल्याँकन लगातार किया जा रहा है।


हम यहां अब तक ‘निस्तारित’ की गई शिक़ायतों के कुछ आंकड़े और शिक़ायत-कर्ताओं की प्रतिक्रियाएँ भी संलग्न कर रहे हैं। कुछ शिक़ायतें विस्तार से बताई गई हैं जो यह दिखाती हैं कि कैसे समय-बद्ध और क़ानूनी स्वरुप वाला जवाबदेही तंत्र ना होने की वजह से नागरिकों, विशेषकर वंचित लोग एवं समुदायों का जीवन, आजीविका और अस्मिता ख़तरे में आ जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि शिक़ायतें आमतौर पर ‘निस्तारित’ कर दी जाती हैं लेकिन उनका कोई प्रभावी समाधान नहीं होता। हमें उम्मीद है कि हमारी इन रिपोर्टों के आधार पर जो स्पष्ट प्रमाण के साथ मौजूदा शिक़ायत निवारण ढांचे की कमियां प्रदर्शित की जा रही हैं पर सरकार यह मानेगी कि एक जवाबदेही क़ानून की कितनी अहम आवश्यकता है और इस दिशा में तत्काल संस्थागत प्रशासनिक सुधार लाए जाने की कितनी ज़रूरत है। उपरोक्त विश्लेषण इस बात की साफ़ गवाही देता है कि जब तक जवाबदेही का एक क़ानूनी ढांचा नहीं होगा तब तक राजस्थान संपर्क जैसा पोर्टल समाज के अंतिम पायदान पर खड़े वंचित वर्गों के लोगों की शिक़ायतों का प्रभावी समाधान नहीं कर पाएगा। 

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