जयपुर. 21 मई 2022, दिल्ली विश्वविध्यालय के प्रोफ़ेसर डॉक्टर रतन लाल की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ राजस्थान के दलित संगठन विरोध में उतर आये हैं और वे जगह जगह ज्ञापन देने की तैयारी कर रहे हैं. विभिन्न दलित संगठनों की ओर से प्रधानमंत्री के नाम दिए जाने वाले ज्ञापन का मसौदा जारी किया है जो इस प्रकार है –
ज्ञापन –
श्री नरेंद्र मोदी माननीय प्रधानमंत्री– भारत सरकार, नई दिल्ली (भारत )
विषय – प्रोफेसर रतन लाल की गिरफ्तारी के सम्बन्ध में
महोदय उपरोक्त विषय में निवेदन है कि दिल्ली विश्वविधालय के इतिहास के प्रोफेसर और नामचीन अम्बेडकरवादी चिन्तक डॉ रतन लाल पर धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप लगाते हुये प्राथमिकी दर्ज की गई और इसके पश्चात बिना किसी नोटिस के अपराधियों की भांति उनकी गिरफ्तारी कर ली गई.डॉ रतन लाल दलित समाज के एक निडर ,मुखर और प्रख्यात बुद्धिजीवी ,लेखक ,वक्ता और सक्रिय समाजकर्मी भी है,उन्होंने अपने यूट्यूब चैनल अम्बेडकरनामा के ज़रिये दलित बहुजनों को जागरूक करने का अभियान चला रखा है,वे उच्च शिक्षा के संस्थानों में आरक्षित समुदायों के हितों के लिये सदैव संघर्षरत रहे हैं. डॉ रतन लाल संविधान में प्रदत्त नागरिक अधिकारों के बारे में आम जन को चेतना संपन्न बनाने और उनमें वैज्ञानिक चेतना जगाने के काम में भी जुटे हैं.वे अंधविश्वासों और रूढ़िवादिता तथा धर्मान्धता के भी मुखर आलोचक रहे हैं.हाल ही में उनके द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे के दौरान मिले एक प्रतीक को लेकर टिप्पणी की गई,जिसे आधार बना कर पहले तो उनको सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया,उन्हें बेहद भद्दी भद्दी गालियाँ दी गई और फोन पर जान से मारने की धमकियाँ तक दी गई,उनके बीस साल के बेटे को भी धमकियाँ दी गई और उन पर मुकदमा दर्ज करके तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया.
श्रीमान ,यह कैसा लोकतंत्र है जिसमें कोई प्रबुद्ध नागरिक अपने विचार तक व्यक्त न कर सके,क्या इसी भारत की कल्पना की गई थी,क्या यही वो संस्कृति है जो स्वयं को उद्दात कहते थकती नहीं है और विश्व में खुद को सबसे सहिष्णु बताती है,क्या आलोचना,निंदा और इतर विचारों का प्रकटीकरण अपराध है.क्या एक दलित प्रोफ़ेसर को अपने मन की बात कहने का कोई हक़ नहीं हैं.क्या दलितों को देश में चल रहे किसी भी मुद्दे पर अपने विचार नहीं रखने चाहिये ? क्या उनको खामोश रहकर सब कुछ सहना चाहिए ? क्या इसी देश और धर्म संस्कृति में चार्वाक ,आजीवक ,लोकायत ,महावीर ,बुद्ध ,कबीर ,रैदास ,पेरियार ,फुले और अम्बेडकर जैसे लोग नहीं हुये है जिन्होंने सनातन धर्म की बुराईयों की जमकर आलोचना नहीं की है,क्या मूर्ति पूजा सहित विभिन्न कर्मकांडों और अन्य आवश्यक बुराईयों के खिलाफ संत कवियों और समाज सुधारकों ने मुहिम नहीं चलाई थी ? लेकिन आज का भारत असहिष्णुता की सारी हदें पार करता प्रतीत होता है जहाँ तर्कवादी डॉ नरेंद्र दाभोलकर ,गोविद पानसरे,एस एम कलबुर्गी तथा गौरी लंकेश को जान से मार दिया जाता है और प्रोफ़ेसर रविकांत तथा डॉ रतन लाल जैसे लोगों के खिलाफ मुकदमें दर्ज करके उनका दमन किया जाता है,यह किसी भी लोकतंत्र के लिये कलंक की बात है. महोदय, असहमति से सत्ता और सत्ताधारी दल तथा उसके समर्थकों को इतना भयभीत नहीं होना चाहिए,एक सच्चे और अच्छे लोकतंत्र को सदैव असहमतियों का आदर करना चाहिए,डॉ रतन लाल की सोशल मीडिया पोस्ट में तो धार्मिक भावनाएं आहत करने वाले कोई तत्व मौजूद नहीं है,उससे अधिक तो भजनों ,गीतों में महादेव के लिए कईं प्रकार के अनर्गल संबोधन देते हुये क्या क्या नहीं कहा जा रहा है.शिव के नाम ,फोटोओं और प्रतीकों का जमकर व्यवसायिक उपयोग उपभोग किया जा रहा है.हर कहीं उनके नाम पर कुछ भी स्थापित करके दुकानदारी चलाई जा रही है,यहाँ तक कि हमारे ही विभिन्न धर्म ग्रंथों में ही शंकर महादेव के लिये काफी कुछ ऐसा लिखा हुआ मिलता है,जिनसे वास्तव में धार्मिक लोगों की भावनाएं आहत हो जानी चाहिए ,लेकिन अफ़सोस की बात है कि इस सब बातों और कामों से किसी की भावना इस देश में आहत नहीं होती है,वे सिर्फ तब आहत होती है जब कोई दलित आदिवासी बहुजन बोल डे अथवा लिख कर अपनी राय प्रकट कर दें,
इसका सीधा आशय यह है कि वंचितों के विचारों की अभिव्यक्ति को रोकने के लिये भावनाएं आहत होने को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है और दलित वंचित तबके के अभिव्यक्ति के अधिकार को कुचलने की तैयारी की जा रही है.जो कि संविधान का खुले आम अपमान है. महोदय, डॉ रतन लाल जैसे लोग दलितों की सबसे मुखर आवाज़ है ,उन पर प्राथमिकी दर्ज करवाना और दिल्ली पुलिस द्वारा उनकी जिस प्रकार से गिरफ्तारी की गई है,वह असहनीय है,हम देश भर के दलित आदिवासी पिछड़े वर्गों के तमाम लोग इस अलोकतांत्रिक कदम की तीव्र शब्दों में भर्त्सना करते है और साफ तौर पर यह कहना चाहते हैं कि सत्ता अपने दमन के उपकरणों का इस्तेमाल बंद करें और प्रोफ़ेसर रतन लाल को अविलम्ब रिहा करें,अन्यथा देश का वंचित वर्ग चुप नहीं बैठेगा,वह अपनी आवाज़ पुरजोर तरीके से उठायेगा और हर तरीके से संवैधानिक लोकतंत्र को बचाए व बनाये रखने के लिये जन आन्दोलन छेड़ेगा.अब और दमन स्वीकार नहीं किया जायेगा. उम्मीद हैं कि आप हमारी भावनाएं समझ गये होंगे और न्याय के पक्ष में अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारी का निर्वाह करते हुये दलित बहुजन बुद्धिजीवियों के दमन को तुरंत रोकने हेतु आवश्यक दिशा निर्देश जारी करेंगे.
इसी आशा और विश्वास के साथ
हम है न्याय समानता के पक्षधर ,अमन पसंद भारत के नागरिक गण