वक्फ संपत्तियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
भीलवाड़ा- 1 मई /देश की सर्वोच्च न्यायालय ने भीलवाड़ा पुर की कलंदरी मस्जिद को लेकर गत शुक्रवार को दिए अपने फैसले में देश भर की वक्फ संपत्तियों को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया वहीं सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने वक्फ बोर्ड के अधिकारों को भी कानून के दायरे में लेकर एक नई नजीर प्रस्तुत की है। सुप्रीम कोर्ट के इस ताजा फैसले से पूरे देश में वक्त संपत्तियों को लेकर एक नए कानूनी विवाद के खड़े होने की भी संभावनाएं नजर आने लगी है।
भीलवाड़ा राजस्थान के पुर कस्बे की तिरंगा पहाड़ी पर स्थित कलंदरी मस्जिद को बचाने के लिए 10 साल 10 दिन चली लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद जिंदल सॉ कंपनी ने शुक्रवार को फैसला आते ही खनन कार्य प्रारंभ करते हुए कलंदरी मस्जिद को रास्ते से हटा दिया।
घटनाक्रम के अनुसार 19 अप्रैल 2012 को पुर कस्बे की अंजुमन कमेटी ने 65 लाख रुपए लेकर मस्जिद का सौदा किया तो आम मुसलमानों की ओर से इसका कड़ा विरोध शुरू हो गया, हालात को देखते हुए उस समय गिराई गई मस्जिद का जिला प्रशासन ने पुनः निर्माण करवाया मगर जिंदल ने हार नहीं मानी और इस प्रकरण को लेकर स्थानीय अदालत में चल रहे मुकदमें की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंची,
गत 29 अप्रैल 2022 को उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित आदेश ने कलंदरी मस्जिद के निर्णय में वक्फ संपत्तियों के लिए एक नई गाइडलाइन निर्धारित कर दी जिसके तहत देश भर की वक्फ जायदाद पर सवालिया निशान खड़े हो गए .सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने कलंदरी मस्जिद के प्रकरण में स्पष्ट रूप से कहा है कि वक्फ अधिनियम की धारा 3 (आर) में वक्फ का अर्थ है किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी भी चल या अचल संपत्ति का स्थाई समर्पण मुस्लिम कानून द्वारा धार्मिक या धर्मार्थ के रूप में मान्यता प्राप्त किसी भी उद्देश्य के लिए और इसमें शामिल है,उपयोगकर्ता द्वारा एक वक्फ लेकिन ऐसा वक्फ केवल उपयोगकर्ता के बंद होने के कारण वक्फ नहीं रहेगा.
विशेषज्ञों की रिपोर्ट पर राजस्व रिकार्ड में दर्ज किया गया धार्मिक स्थल उस सीमा तक प्रासंगिक है. जहां संरचना का कोई पुरातत्विक या ऐतिहासिक महत्व नहीं है,समर्पण या उपयोगकर्ता के किसी भी प्रमाण के अभाव में एक जीर्ण दीवार या एक मंच को धार्मिक स्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता,कलंदरी मस्जिद के प्रकरण में अदालत ने माना कि यहां किसी भी समय इस बात का कोई सबूत नहीं है कि संरचना का उपयोग मस्जिद के रूप में किया जा रहा था, समर्पण या उपयोगकर्ता या अनुदान का कोई आरोप या सबूत नहीं है जिसे अधिनियम के अर्थ में वक्फ कहा जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश हेमंत गुप्ता और वी.राम सुब्रमण्यम की खंडपीठ के इस फैसले का गंभीर विषय यह है कि 23-9-1965 को वक्फ बोर्ड की एक अधिसूचना में प्रकाशित की गई कलंदरी मस्जिद को वक्फ संपत्ति इसलिए नहीं माना गया कि वहां नमाज अदा करने के कोई पुख्ता प्रमाण मौजूद नहीं है उच्चतम न्यायालय के इस फैसले से अब वक्फ जायदाद की उपयोगिता और उसकी संरचना में आए बदलाव से कई कानूनी पेचीदगियां खड़ी हो जाएंगी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपनी सिविल याचिका संख्या 2788 एवं 2789/22 के तहत राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर द्वारा दिए गए अपने आदेश दिनांक 29/9/ 2021 के विरुद्ध दायर की गई राजस्थान वक्फ बोर्ड एवं अन्य की याचिका को खारिज कर दिया है ।