दलित आक्रोश की भीममय भावाभिव्यक्ति हैं ‘सुलगते शब्द’

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( मोहनलाल सोनल ‘मनहंस’ )

65 साहित्यकारों की तकरीबन 156 कविताओं का 280 पृष्ठीय बहुत ही चेतनादायी काव्य संकलन है संपादक ‘श्याम निर्मोही’ संकलित ‘सुलगते शब्द’ जो पाठक मन में आक्रोश की अगन भरते हुए दलित समाज के साथ अतीत से होते आये जुल्म के खिलाफ भीममय हूंकार भरता है.संकलन की बहुत अच्छी खूबी यह है कि इसमें ओमप्रकाश वाल्मीकि जैसे कालजयी रचनाकार से लेकर नवोदित कलमकारो की यथार्थ बयां करती रचनाएँ शामिल है.प्रस्तुत कृति में उत्तरप्रदेश, राजस्थान के 10-10 से अधिक रचनाकार तो दिल्ली, हरियाणा,उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, बंगाल, एम पी, गुजरात ,महाराष्ट्र, तेलंगाना तो सुदूर केरल के शोधार्थी तक का सम्मिलन होना दलितों के प्रति एक जैसी दमनकारी मानसिकता के प्रतिरोध में भारत भर मे समान आक्रोश रूप को उजागर करता है . 

संपादक श्याम ‘निर्मोही’ अपनी रचना ‘सुलगते शब्द’ में तीखे आक्रोश का भाव अभिव्यक्त करते हैं.जब वे लिखते हैं कि-“विप्लव की मशाले फिर से जलाने के लिए ‘निर्मोही’ सोये हुए समाज को जगाने के लिए उबलते हैं शब्द . सुलगते हैं शब्द.” तो दलित आक्रोश ओर तीव्र होकर विशालकाय भीममय हो जाता हैं , सम्पूर्ण दलित समाज को संबोधन देकर ‘निर्मोही’ दलित समाज समाज के आपसी उलझन भरे बंधन को तोडने की प्रखर वकालत करते नजर आते हैं इस काव्य कृति में. उनकी ‘ माँ कभी नहीं हारती ‘ एक गहरी वेदनाभरी मर्मस्पर्शी रचना हैं, जिसमें बेटो को काबिल बनाने के बाद भी माँ के लिए वही दुखभरे दिन होना रिश्तो के तार-तार होने पर चोट करती कविता हैं. 

वरिष्ठ साहित्यकार सूरजपाल चौहान की कविता ‘सब याद हैं’ में इतिहास कालीन छल कपट भरी क्रूर घटनाओं के चित्र उभर कर सामने आते हैं, तो उनकी ही रचना ‘अंबेडकर बन गए हैं ‘में दलित समाज के प्रति गाँव की वही औछी सवर्ण मानसिकता से रूबरू कराते हैं .डॉ नरेंद्र वाल्मीकि की कविता ‘ ओमप्रकाश’  दलित साहित्य के युग पुरुष ओमप्रकाश वाल्मीकि, उनकी कालजयी रचना ‘जूठन’, सफाई देवता, सदियों का संताप, ठाकुर का कुआं, घुसपैठिये, दलित साहित्य का सौन्दर्य शास्त्र की रचना आदि के बारे में परिचय करवाती हैं, ओमप्रकाश वाल्मीकि के जन्म से लेकर संसार से विदाई तक को कविता के माध्यम से बखूबी बताया है नरेंद्र वाल्मीकि ने उनकी यह कविता मेरे मन को भा गईं क्योंकि ‘मैं एक कार सेवक था’  के लेखक भंवर मेघवंशी के हाल के जन्मदिन पर मेरी छोटी  कलम ने भी इसी तरह की एक कविता ‘जियो हजारो साल’ लिखी,जिसमें मेघवंशी की दलित चेतना बाबत लिखी कृतियों एवं उनके प्रभावी कृत्यों को बताने का लघु प्रयास किया हैं.

ख्यातनाम रचनाकारों के जीवन पर रचनाएँ लिखकर उनके किये सदकार्यो को कलमवद्ध करना भी समीचीन आवश्यकता है,जो कि भावी पीढ़ी के लिए बेहतरीन प्रेरणादायी बनने का काम कर सके.उनकी ही कविता ‘ दोहरी मानसिकता’ में सवर्ण समाज की दलितों के प्रति दोगली नीति पर करारा प्रहार करती हैं.’मैं कौन हूँ ‘ नरेंद्र वाल्मीकि पूरे भीममय रंग में रंगे नजर आते हैं.जब वे लिखते हैं- ‘मैं महू की मिट्टीकी खुशबू हूंँ  मैं बाबा साहब का वंशज हूँ ‘ तो ऐसे भीममय वातावरण में ‘जयभीम ‘ उद्घोष करने की मन ही मन स्वप्रेरणा मिलती हैं.

दलित स्त्री हस्ताक्षर में सुशीला टाकभौरे सफाई कामगारों को हाडतोड मेहनत करने के बावजूद भी समुचित सम्मान नहीं मिलने की बात पुरजोर तरीके से उठाती हैं,वहीं डॉ राधा वाल्मीकि भी सफाई कार्मिकों को सैनिक योद्धा जैसा सम्मान न मिलने की शिकायत मुखर करती हैं.डॉ राजकुमारी ‘हाशिये पर बेटियां’ के माध्यम से दलित बहिन, बेटियों पर हो रहे दमन को उजागर करते हुए हाथरस की बेटी पर सवाल खड़े करती हैं.डॉ खन्ना प्रसाद अमीन ‘भीम की कसम ‘ कविता में ‘ऐसी कविता लिखना जातिवादियों के रोंगटे खडे हो जाये’ नवोदित दलित बहुजन साहित्यकारों को एक मशाल प्रज्ज्वलित करने की प्रेरणा देते दिखाई देते हैं.

डॉ कार्तिक चौधरी की ‘ आप न आते तो ‘ सटीक सच बयान करते हुए आज जो इस हाथ में कलम है की सुस्थिति का श्रेय बाबा साहब की बदौलत ही है,सत्य  बताते हैं .अजय यतीश की ‘हूक उठती ‘ संघर्ष का अलख जगाती कविता है, तो जोगेंद्रसिंह ‘हे कोरोना’  के मार्फत  तीखा व्यंग्य करते हैं. नाथूलाल मेघवाल हाथरस की बेटी का ह्दयविदारक दृश्य अपनी कविता द्वारा बताते हुए ऐसी क्रूर घटनाओं पर सरकारों की मौन चुप्पी पर कलम से आवाज मुखर करते दिखाई देते हैं.


भाषा के हिसाब से काव्य कृति जनसाधारण के समझ मे आने लायक हैं, तो आम प्रचलन से अलग कुछ नये शब्द भी जैसे एन्ड्रोक्लीज, कुत्तचेहरे, कारिस्तानी, पंजर, रेहडिया, दुल्हेडी, किचन, फोर्थ क्लास, किडनैपर, लीलती, सुटेड-बुटेड आदि इसमे पढने को मिलते हैं .कुछ रूपक, बिंब और मुहावरे जैसे स्वान संग्राम, सियार -सी हूक हुकी, झाड़ू पंजर, दिन में दिख जायेंगे तारे आदि भी साहित्य के सौन्दर्य शास्त्रीय उदाहरण भी समाहित हैं ‘सुलगते शब्द’ में.सारांशत:  श्याम निर्मोही संपादित ‘सुलगते शब्द’ आज की महत्ती आवश्यकता पूर्ति करता काव्य संकलन हैं, ऐसे काव्य संकलनों का प्रकाशन दलित बहुजनों में एक नयी चेतना का संचार करेगा. संपादक श्याम ‘निर्मोही’ एवं प्रकाशक सिद्धार्थ बुक्स को बहुत साधुवाद के साथ कोटिशः बधाई.

( लेखक राजस्थान सरकार के चिकित्सा विभाग में सेवारत हैं ,उनके हाल ही में दो कविता संग्रह प्रकाशित हुये हैं ) 

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