Master of typing and language is no more

 ( संजय जोशी )
नवारुण को विस्तार देने के क्रम में जब 2018  में एक नये टाइपिस्ट की खोज चल रही थी तब बनास जन जे संपादक और मित्र पल्लव ने किन्ही सुभाष जी का नाम बहुत जोर देकर सुझाया.फिर राजीव कुमार पाल की किताब ‘एका’ से सुभाष जी से जो रिश्ता बना वो जुड़ता ही गया जिसकी कड़ी दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में कल टूट गयी जब उनकी असमय मृत्यु का समाचार मिला.

 
मुश्किल से तीन साल के साथ में उनकी वजह से प्रकाशन और भाषा की बहुत सी बारीकियों को सीखने का मौका मिला. एक शानदार प्रोफेशनल क्या होता है यह भी उनसे सीखने को मिला. डेडलाइन का हमेशा पालन करना कोई आसान बात नहीं जबकि आप अपने जीवन को चलाने के लिए नियमित नौकरी के अलावा फ्रीलांसिंग के बहुत से काम कर रहे थे.

भंवर मेघवंशी की किताब ‘मैं एक कारसेवक था’ का पहला संस्करण प्रकाशित होते ही ख़त्म हो गया और इसके दूसरे संस्करण में बहुत सा काम सुभाष जी बड़े मन से किया. इस किताब की सफलता का जश्न हम दोनों ने दिल्ली गेट के पास स्थित मशहूर बार ‘द ठग’ में मनाया. उसी दिन थोड़ी पारिवारिक और काम काज से अलग बातें हुई. तभी पता चला कि निरंतर काम किये जाने  की मजबूरी टंकित किये जा रहे साहित्य को पढ़ने का मौका ही नहीं देती.

 
‘एका’ से शुरू हुई  लगभग 15 किताबों में उनके काम की छाप देखी जा सकती है . वे कई बार विनम्रता से मेरी गलती की तरफ इशारा करते क्योंकि गलती न मानने पर वह काम उन्हें बिना वजह दुबारा करना पढ़ता. नवारुण के अलावा कई बार प्रतिरोध का सिनेमा और जन संस्कृति मंच के आयोजनों के लिए भी ख़ुशी -ख़ुशी उन्होंने डिजाईन के काम किये.

 
आज बहुत भारी मन से नवारुण की सारी टीम अपने प्रिय साथी की स्मृति को याद करते हुए विनम्र श्रधांजलि देती है और उनके परिवार को दुःख की इस घड़ी में उबरने की शक्ति मिले इसकी प्रार्थना करती है. अलविदा , सुभाष भाई , आपकी कमी बहुत खलेगी. आपका शुक्रिया नवारुण को इतना सुन्दर बनाने के लिए. अलविदा !

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