Dr. Randeep Guleria - Name of India's best doctor who stays on TV all day long!

( रवीश कुमार )

इस वक़्त भारत में दो तरह के डॉक्टर हैं। एक तरफ़ वो सैंकड़ों डॉक्टर हैं जो जान लगा कर मरीज़ों की जान बचा रहे हैं। दूसरी तरफ़ अकेले एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया हैं, जो टीवी पर आने के लिए दिन भर जान लगाए रहते हैं। उन्हें शांत चित्त देख कर लगता है कि वाक़ई उनके पास कोई काम नहीं है। भारत में कोई संकट नहीं है। टीवी पर उन्हें देख कर आप अंदाज़ा कर सकते हैं कि एम्स जैसे बड़े अस्पताल के निदेशक के पास इतना वक़्त है कि हर दिन कई चैनलों पर अवतरित होते रहते हैं । इस संकट में जहां अस्पताल के किसी भी कर्मचारी के पास पानी पीने का वक़्त नहीं आप डॉ रणदीप गुलेरिया को हर दिन फ़ालतू का इंटरव्यू देते देख सकते हैं।


रणदीप गुलेरिया भारत के सबसे बड़े अस्पताल एम्स के निदेशक हैं। भारत की जनता सड़कों पर मर रही है। वह इस अस्पताल से उस अस्पताल की तरफ़ भाग रही है। दम तोड़ दे रही है। आप मुझे बताइये कि इस संकट में एम्स का क्या रोल होना चाहिए? क्या उसका निदेशक इतना ख़ाली है कि दिन भर टीवी पर इंटरव्यू देता रहता है? मुझे जवाब चाहिए। मैं किसी रिसर्चर से अपील करूँगा कि वह अध्ययन करे कि अप्रैल महीने में डॉ रणदीप गुलेरिया ने कितने घंटे टीवी पर बिताए। रिसर्चर जब देखे कि हर शो में कितनी देर तक डॉ रणदीप गुलेरिया बैठे हैं तो केवल वही समय न जोड़े। बल्कि उसके आगे पीछे का दस पंद्रह मिनट भी जोड़े ।इस तरह से आप दुनिया को बता सकते हैं कि जब लोग मर रहे थे तब एम्स का निदेशक इतना ख़ाली था कि वह दिन भर टीवी पर इंटरव्यू दे रहा था कि क्या करना है। जो करना है वो अगर अपने अस्पताल में कर रहे होते तो आज दिल्ली में कितने लोगों की जान बच जाती। 


इसका हिसाब होना चाहिए कि कोविड की लड़ाई में एम्स का क्या रोल है, उसने कितने नए बेड बनाए हैं, कितने नए वेंटिलेटर की व्यवस्था की है? एम्स के पास कितने और मरीज़ों को भर्ती करने की क्षमता है और कितनी बढ़ाई जा सकती है? कई हज़ार करोड़ के बजट वाले एम्स के डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ़ से लेकर फ़ार्मा स्टाफ़ की क्या हालत है, क्या उनका मनोबल बढ़ा कर रखा जा रहा है ताकि वे अपना श्रेष्ठ दे सकें? क्या डॉ रणदीप गुलेरिया राउंड लेते हैं? व्यवस्था देखते हैं और मनोबल बढ़ाते हैं?


मुझे मालूम है डॉ रणदीप गुलेरिया क्या चीज़ है। आम तौर पर सभी पत्रकार उनसे सवाल नहीं करेंगे क्योंकि हर किसी को एम्स में भर्ती के लिए हाथ पाँव जोड़ना होता है। मैंने तो नहीं किया लेकिन मेरा भी इसमें कोई ईगो नहीं है। मैं भी डॉ गुलेरिया के दफ़्तर फ़ोन करूँगा, विनती करूँगा कि मरीज़ की जान बचा लीजिए। भर्ती कर लीजिए। किसी भी डॉक्टर के हाथ-पांव जोड़ लूँगा। ये बिल्कुल अलग मामला है।इस देश में अस्पताल ही नहीं है तो अस्पताल में मदद करने के लिए कोई भी किसी से भी हाथ पाँव जोड़ेगा लेकिन सिर्फ़ इसी जुगाड़ के डर से ईमान की बात न की जाए तो इस वक़्त पाप होगा। अब तो न जाने कितने मर गए। न जाने कितने और मर जाएँगे। इसलिए चुप रहा नहीं जा सकता है। डॉ रणदीप गुलेरिया को लेकर सवाल करना ही होगा। यही नहीं इनके हर इंटरव्यू को पीयर रिव्यू होना चाहिए कि इस संकट के वक़्त एम्स का निदेशक क्या बोल रहे हैं। क्या इस शख़्स ने एक भी इंटरव्यू में सरकार की नाकामी पर सवाल उठाए हैं? 


क्या डॉ रणदीप गुलेरिया डॉक्टर होकर सरकार के साथ खड़े हैं या मरीज़ के साथ?दूसरी तरफ़ आप उन डॉक्टरों की तरफ़ मुड़ कर देखिए जो वाक़ई में इलाज कर रहे हैं। महीनों हफ़्तों से अस्पताल में हैं। घर नहीं गए हैं। सोए नहीं हैं। वे इतने थक चुके हैं कि दिमाग़ सुन्न हो गया होगा। डॉक्टर के साथ-साथ सभी हेल्थ वर्कर की यही हालत हो गई है। एक डॉक्टर के पास न जाने कितने मरीज़ आते होंगे। उन सबकी ही हालत गंभीर होती होगी। उसमें भी उनके कुछ परिचित होते होंगे, बहुत से मरीज़ों से पुराना नाता होगा तो हमारे डॉक्टर भी उनकी हालत देख कर सौ बार टूटते होंगे। उन डाक्टरों के रिश्ते में लोग मर रहे होंगे तो टूटते होंगे। उनके साथी भी मर रहे हैं तो टूटते होंगे। कुल मिलाकर इस वक़्त कहीं का भी कैसा भी डाक्टर अपनी क्षमता से हज़ार गुना आगे जाकर कर रहा है। जो कर रहे है मैं उनकी बात कर रहा हूँ। ऐसे बहुत से डॉक्टर हैं जिन्होंने जान लगा दी है। उनके पास न तो फ़ोन उठाने का समय है, न अख़बार पढ़ने का और न टीवी में इंटरव्यू देने का। 


मगर इस वक़्त भारत जैसे बड़े देश में सिर्फ़ एक डॉक्टर ऐसा है जिसके पास प्रचुर समय है। वह अपना समय टीवी पर इंटरव्यू देने में बिता रहे हैं। उनके चेहरे के भाव से नहीं लगेगा कि जनता सड़क पर दम तोड़ रही है। डॉ गुलेरिया मरीज़ों को देखने में लगे हैं। थके-हारे हैं। इसकी जगह वे तरोताज़ा दिखते हैं। नहाए धोए, शैम्पू किए हुए जैसे कई महीनों से अस्पताल ही नहीं गए हों। भारत में कोई नहीं मर रहा है।अगर थोड़ा बहुत संकट है भी तो इतना बड़ा नहीं कि एम्स तक पहुँच गया हो और उसके डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया को टीवी का इंटरव्यू छोड़ कर काम करना पड़ रहा हो। आप चाहें तो आराम से डॉ रणदीप गुलेरिया को इस वक़्त भारत का सबसे ख़ाली डॉक्टर घोषित कर सकते हैं। 

एक बार फिर से। इस संकट में एम्स की क्या अग्रणी भूमिका है और उसके निदेशक के पास इतना ख़ाली वक़्त कहां से है जो हर दिन घटों टीवी पर रहता है। मेरे लेख के ये दो बिन्दु हैं। जवाब कोई नहीं देगा, गाली आएगी। आने दीजिए। बंदे ने आज वो बात कह दी है जो एम्स का दरबान भी कह रहा है। मैं इस वक़्त जनसंचार की ज़रूरत को समझता हूँ। डाक्टरों का टीवी पर आकर बताना भी बहुत ज़रूरी है और एक तरह से उनके काम का हिस्सा है। मैं ख़ुद अच्छे डॉक्टरों से कहता हूँ कि आप टीवी पर आकर बताइये। मेरे एक साथी डाक्टर ने कहा था कि हर डाक्टर टीचर नहीं होता लेकिन जो टीचर होते हैं ऐसे डाक्टर को टीवी पर आकर जनसंचार करना ही चाहिए। समझाना चाहिए लेकिन एम्स का निदेशक जब हर दिन कई चैनलों पर इंटरव्यू देते दिखता है तो सवाल उठता है कि उनके पास इतना ख़ाली वक़्त कहां से आ गया है।


अंत में गुलेरिया जी से भी माफ़ी। मुझे शायद व्यक्तिगत नहीं होना चाहिए था। लोगों की हालत देखी नहीं गई। मैं जानता हूँ कि सिस्टम आपके हाथ में नहीं है लेकिन यह उम्मीद रखता हूँ कि इस वक़्त अगर आपके हाथ में नहीं है तो फिर छोड़ दीजिए ताकि जनता को सच्चाई पता चले।

( रवीश कुमार)

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