जब राजनेता अपनी सीमाएँ बन्द कर रहे हैं , वैज्ञानिक अपनी सीमाएँ खोल रहे हैं !
(स्कन्द शुक्ला)
राजनीतिक समता और वैज्ञानिक समता में बहुत अन्तर है। यह सच है कि राजनीति में समता के संस्कार विज्ञान में हुई प्रगति का परिणाम हैं : सोलहवीं-सत्रहवीं अठारहवीं सदी में यदि एक-के-बाद-एक वैज्ञानिक खोजें न हुई होतीं , तब न संसार की राजनीति बदलती और न नयी राजनीतिक विचारधाराओं का अस्तित्व उपजता। फ्रांसीसी क्रान्ति की इक्वलिटी , लिबर्टी , फ्रैटर्निटी के उद्घोष के पीछे सदियों का कार्यरत वैज्ञानिक मौन है।
समय ऐसे अवसर कम ही प्रदान करता है , जब हम विज्ञान की प्रगति अपने सामने होती देखते हैं। विज्ञान में काम तो हर दिन , हर घड़ी चल रहा है , पर अन्य ख़बरों में हम इतने डूबे रहते हैं कि हमें विज्ञान-गति का अनुभव ही नहीं होता। हालांकि विज्ञान का यह समक्ष हो रहा विकास विज्ञान के प्रति कई बार अविश्वसनीयता भी पैदा करता है। हम ( विशेषरूप से भारत में ) चमत्कारबोधी-चमत्कारजीवी लोग हैं : हमारा नमस्कार केवल-और-केवल चमत्कार को ही हुआ करता है।
अनेक मित्र आज-कल कोरोना-शोध पर नज़र रखे हुए हैं। ऐसा करने से उन्हें विज्ञान की सुस्त गति का बोध हो रहा है। जिसे वह शिथिलता समझ रहे हैं , वह वस्तुतः जीवन का यथार्थ है। फ़िल्म की तरह एक ही जीवन में अनेकानेक जीवन जीने वाले उदारवादी-भोगवादी समाज को यह पचाने में बहुत मुश्किल हो रही है। विज्ञान में टीका और दवा बनाने में इतना समय लगता है ! इतना स्लो है सब-कुछ !
मित्रों की दूसरी बिरादरी ने कोरोना से स्वयं को काट लिया है। उन्हें न विज्ञान में रुचि तब थी , न अब है। वे अपने कला-खोल में सुषुप्त हैं। यह युक्ति भी सही है। बल्कि इस समय मन को ढाढ़स बँधाने वाली सारी युक्तियाँ उचित-ही हैं। यह उपचार के विज्ञान से अधिक उपचार से मिलने वाले आराम पर जा टिकने का समय है।
विज्ञान का समाज इस समय आपस में मन जोड़कर और हाथ बाँधकर काम कर रहा है। शैक्षणिक क्रेडिट जैसी बातें क्षुद्र होने के कारण दरकिनार रख दी गयी हैं। मुफ़्त में ढेरों जर्नल व उनके शोधपत्र पढ़ने के लिए उपलब्ध कराये गये हैं। पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है। सैकड़ों क्लिनिकल ट्रायल दुनिया-भर में चल रहे हैं। सार्स-सीओवी 2 के जीनोमिक सीक्वेंसों को दुनिया-भर के वैज्ञानिक आपस में शेयर कर रहे हैं।
वैज्ञानिक ‘मेरा देश – तेरा देश’ नहीं करता। वैज्ञानिक को ‘मेरी भाषा – तेरी भाषा’ में रुचि नहीं। विज्ञान भूगोल और राजनीति के विकृत टुच्चेपन में आनन्द नहीं पाता। इसके बाद भी वैज्ञानिक राजनीति और उद्योग का मज़दूर है : उसकी अपनी खोज या आविष्कार तक पर वह अपनी कुटुम्ब-भावना नहीं आरोपित कर सकता। जो कुछ वह प्रयोगशाला में पाएगा या बनाएगा , व्यापारी और राजनेता उससे ले लेंगे।
नवजन्मा विज्ञान जब तक नग्न है , वह मनुष्य-मात्र के लिए है। जन्मते ही किन्तु उसे राजनीति-अर्थनीति की दमघोंटू पोशाकों से लाद दिया जाता है।
— स्कन्द।
(Picture Credit- Loksatta)