राजद्रोह कानून का प्रयोग अपने विरोधियों के खिलाफ न करे राजस्थान सरकार !
पण्डित नेहरू ने इसे खराब बताया था तथा कांग्रेस के घोषणा पत्र 2019 में इसे हटाने की बात कहीं गई है।
पिछले कुछ हफ्तों में देखा गया है कि राजस्थान में सत्ता दल के कुछ विधायक तथा विपक्षी दल मिलकर कांग्रेस की विधिवत रूप से निर्वाचित सरकार को तथाकथित रूप में गिराने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं। सरकार को अस्थिर करने का यह घिनौना खेल ऐसे समय में खेला जा रहा है जबकि प्रदेश कोरोना संक्रमण से ग्रस्त है तथा सबसे पहले जनता के जीवन एवम् स्वास्थ्य की रक्षा पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
सत्ता की राजनीति को लेकर चल रहे इस घृणित प्रयास के दौर में पी.यू.सी.एल. को यह जानकार धक्का पहुंचा है कि राजस्थान सरकार ने 120B षडयंत्र तथा 124A) राजद्रोह कानून के अन्तर्गत तीन एफ.आई.आर. दर्ज करवाई हैं। ये एफ.आई.आर. महेश जोशी मुख्य सचेतक, कांग्रेस पार्टी द्वारा संख्या 47/20 दिनांक 10.07.2020, 48/20 दिनांक 17.07.2020 तथा 49/2020 दिनांक 17.07.2020 द्वारा SOG थाना, ATS & SOG डिस्ट्रिक्ट, में दर्ज की गई है।
हमारे लिये यह गंभीर बात है कि राजद्रोह का कानून का उपयोग सरकार अपने विरोधियों के विरूद्ध कर रही है। पी.यू.सी.एल. 2011 से लगातार राजद्रोह कानून को निरस्त किये जाने की मांग करती आई है। हजारों लोगों से इसके विरुद्ध हस्ताक्षर एकत्रित कर राष्ट्रपति को भेजे गये है। राज्य सभा में भी इसे हटाने की याचिका विचाराधीन है तथा विभिन्न संसदीय समितियों व विधि आयोगों को भी इस धारा को हटाने के लिए अनेक बार लिखा गया है।
इस कानून के दुरुपयोग की पृष्ठभूमि
यह प्रमाणित तथ्य है कि विभिन्न पुरानी एवं वर्तमान सरकारों द्वारा सेक्शन 124A का उपयोग सरकार की गतिविधियों व नीतियों की आलोचना करने वालों के विरूद्ध किया जाता रहा है। ब्रिटिश सरकार के साम्राज्यवादी पृष्ठभूमि में बनाए गए इस कानून का उपयोग ब्रिटिश काल में स्वाधीनता सेनानियों के विरुद्ध किया गया और वर्तमान में मानव अधिकार कार्यकर्ताओं तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं व आम नागरिको के विरुद्ध किया जा रहा है तथा उन्हें इसके अन्तर्गत जेलों में ठूंसा जा रहा है। यहां तब कि कई बच्चों के खिलाफ भी इसका इस्तेमाल किया गया है। एन.डी.ए. की सरकार आने के बाद इसका खुलेआम दुरुपयोग और बढ गया है तथा जो भी सरकार की आलोचना करने के लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करता है, वह इसका शिकार बन जाता है।
यह ध्यान रखने की बात है इंग्लैण्ड में अपनी साम्राज्यवादी सत्ता को सुरक्षित रखने के लिए 1870 में यह भारतीय दण्ड संहिता में यह कानून बनाया था कि किन्तु उसने खुद राजद्रोह को इस आधार पर समाप्त कर दिया था कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों तथा अभिव्यक्ति की आज़ादी के मूलभूत अधिकारो को दुष्प्रभावित करता है तथा बोलने की आज़ादी को नष्ट करता है।
यह महत्वपूर्ण है कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1951 में धारा 124A को अत्यन्त आपत्तिजनक व खराब बतलाया था और यह कहा था कि व्यावहारिक व ऐतिहासिक रूप से इसका कोई स्थान नहीं है तथा जोर दिया था कि “यह जितनी जल्दी हट जाए वह अच्छा होगा”।
विधायकों के विरुद्ध पहली बार प्रयोग
भारत में यह पहली बार हुआ है कि इसे कानून का दुरुपयोग निर्वाचित विधायकों के विरूद्ध किया जा रहा है, वह भी राजस्थान में। यदि हम कानून के स्तर पर बात कहें तो केदार नाथ सिंह बनाम बिहार (सरकार) 1962 सर्वोच्य न्यायालय एआई0955A जिसमें इस कानून की वैधता स्वीकार की गई थी, में कहा गया है कि इसकी वैधता तभी है जब विरोध के द्वारा हिंसा भड़काई गई हो। यह स्पष्ट है कि राजस्थान में कोई हिंसा नहीं हुई है। अतः यह कानून का सरासर दुरूपयोग किया जा रहा हैं।
यह कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र 2019 के विरूद्ध
कांग्रेस पार्टी ने 2 अप्रेल 2019 को जारी अपनी चुनावी घोषणा पत्र में स्पष्ट रूप से कहा है कि 124A का दुरूपयोग सरकार द्वारा अपने विरोधियों के विरूद्ध किया जा रहा है, जबकि वर्तमान समय में इस कानून की कोई आवश्यकता नहीं हैं तथा इसे हटाया जाएगा। हमारी मांग है कि कांग्रेस सरकार अपने घोषणा पत्र मतदातओं को दिये गये वचन की पालना करे तथा पुलिस को इस धारा के अन्तर्गत कार्रवाई करने से रोके।
भ्रष्टाचार निरोधक कानून का प्रयोग करे
भारतीय दंड संहिता में सरकार को अस्थिर करने के प्रयास को आपराधिक कार्रवाई नहीं बताया गया है। अगर सरकार राजस्थान में हो रही घटनाओं तथा मध्यप्रदेश, कर्नाटका में घटे घटनाक्रम आदि को आपराधिक बनाना चाहती है तो भ्रष्टाचार निरोधक कानून के अध्याय 3 के अन्तर्गत रिश्वत लेने व देने के प्रयास के तहत कार्रवाई कर सकती है। विधायकों को भ्रष्टाचार निरोधक कानून में लोक सेवक माना गया है और उनके विरूद्ध इसमें कार्रवाई हो सकती है।
सरकार अस्थिर करने के विरूद्ध कानून बनाए
विधिक रूप से स्थापित सरकार को धन अथवा अन्य प्रलोभन देकर अस्थिर बनाए जाने की गतिविधियों के रोकथाम करने के लिए संविधान मेंमें समुचित संशोधन करना होगा क्यूंकि दल बदल विरोधी कानून इस तरह को परिस्थिति को रोकने के लिए प्रभाववारी नहीं रहा है, अतः कानून में परिवर्तन लाए जाए।
पी.यू.सी.एल. का स्पष्ट मान्यता है कि राजद्रोह कानून का उपयोग ऐसी परिस्थिति में पूर्णतः अनुचित है। हमारी मांग है इसका दुरूपयोग रोके तथा इस कानून में दंड संहिता से पूरी तरह बाहर किया जाए।