पाताल लोक – हाशिये के लोगों की अंधकारमय जीवन की गाथा!
परिचय –
कहानी की शुरुआत तथाकथित पुराणों में वर्णित तीन लोको के वर्णन के साथ शुरू होती है पहला लोक- स्वर्गलोक जिसमें देवता निवास करते है, दूसरा लोक- धरती लोक जिसमें आदमी रहते है तीसरा व सबसे नीचे वाला लोक – ‘पाताल लोक’ जिसमें कीड़े रहते है, पूरी कहानी इन तीन लोकों पर आधारित है, मगर केंद्रित है। पाताल लोक पर जहाँ किसी का कभी भी मर्डर हो जाता है, तो कभी किसी के साथ बलात्कार हो जाता है तो कोई किसी को भगा कर ले जाता है. यें सब कुछ यहाँ होता है, और किसी को कुछ पता नहीं चलता है. सिर्फ़ इन्वेस्टीगेशन होता है मिलता कुछ नहीं है।
तीनों काल्पनिक लोको की तुलना उत्तरप्रदेश,पंजाब व दिल्ली में स्थिति जगहों से की गयी है जैसे ‘पाताल लोक’ की आउटर जमना पार से तो स्वर्ग लोक की लूटीयंस दिल्ली से जिसमें औरंगजेब रोड, अशोका रोड जैसे इलाके शामिल है जहाँ वैसे तो घटनाएँ घटती ही नहीं है और अगर घटती भी है तो किसी की इन्वेस्टीगेशन करने की हिम्मत नहीं होती है और अंत में धरती लोक जिसकी तुलना प्रीत विहार, वंसत विहार, महरौली व नोएडा से की गयी है जहाँ पर कभी-कभी पाताल लोक के कीड़े घुस आते है और यहां के आदमियों को काट देते है जिससे होता है कांड- जैसे आरुषि कांड
कहानी तीन तरह के लोको के बीच घूमती रहती है. शुरुआत एक वामपंथी-उदारवादी टीवी एंकर संजीव मेहरा के मर्डर करने के उद्देश्य से पाताल लोक से आये चार लोगों की गिरफ्तारी के साथ होती है. इन चार लोगों को पाताल लोक के कीड़ो के रूप में दिखाया गया है जो बहुत ही खूंखार अपराधी है. इन चार किरदारों में सबसे पहला अपराधी किरदार है, विशाल त्यागी `हथौड़ा त्यागी ‘ जो उच्च समुदाय से आता है, और उत्तरप्रदेश के चित्रकूट का रहने वाला है, पिताजी एक ग़रीब किसान है। एक स्कूल के छात्र से अपराधी बनने की कहानी इसमें देखने को मिलेगी।
दूसरा अपराधी किरदार है कबीर एम. जो एक मुस्लिम चोर है और जिसका भाई राम मंदिर आंदोलन में उपद्रवियो द्वारा पीट-पीट कर मार दिया जाता है। तीसरा अपराधी किरदार है तोप सिंह उर्फ़ ‘चाकू’ पंजाब का एक दलित लड़का जिसने अपनी पहचान व नीची जाति का होने के कारण बहुत अन्याय व अत्याचार सहा पर जब यें अपमान असहनीय हो जाता है तब उसके द्वारा तीन जाट लड़कों को मार दिया जाता है। और उसके घर वाले उसे गांव से भगा देते है।
चौथा और आख़री अपराधी किरदार है मेरी लिंगदोह उर्फ़ ‘चीनी’ एक ट्रांसजेंडर अनाथ जिसने अनेकों बार बलात्कार और क्रूरता का अनुभव किया है। यें हाशिये के सामाजिक समूहों की अंधकारमय व अस्त-व्यस्त जीवन की चार अलग-अलग कहानियां है. इन्हें वेब शो में एक खूंखार अपराधी के रूप में दिखाया जाता है लेकिन साथ ही उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि बताती है की असल में वो ही इस सामाजिक व्यवस्था व अपराध जगत के सबसे बड़े शिकार है।
धर्म और समाज –
इस शो में धर्म का पहलू भी विभिन्न जगहों पर अलग-अलग माध्यम से उभर कर आता है। इमरान अंसारी इंस्पेक्टर है और तीन महीने हुए है अभी पोस्टिंग को और साथ ही यूपीएससी की तैयारी भी कर रहें है इनका सपना है आईपीएस बनना। थाने में सहपुलिसकर्मियों द्वारा ताने दिए जाते है की मुस्लिम लोग बहुत बुरे होते है और ऊपर से यें कश्मीरी मुल्ले तो और भी ख़राब होते है थाने में यें अकेले मुस्लिम है बाकी सब हिन्दू है तो सुबह-सुबह पूजा पाठ भी होता है। पूजा पाठ करने वाले सब लोग अंसारी को हिक़ारत भरी निगाहों से देखते है।
जब संजीव मेहरा का केस इंस्पेक्टर हाथीराम को सौंपा जाता है तब अंसारी उनके साथ मिलकर काम करते है इसी दौरान केस से जुड़े एक शख्स को पकड़ने के लिए अंसारी को भेजा जाता है बहुत प्रयास और पीछा करने पर भी वो शख्स भाग निकलता है संयोगवश भागने वाला शख्स मुस्लिम होता है फ़िर क्या थाने में अंसारी को लेकर बातें शुरू हो जाती है की एक मुस्लिम ने दूसरे मुस्लिम की मदद की भागने में जबकि ऐसा नहीं होता है। जब केस सीबीआई के हाथों में चला जाता है तब अंसारी केस से जुडी जानकारी बताने सीबीआई ऑफिसर जो की एक महिला के पास जाते है।
उस समय अंसारी का परिचय थानाधिकारी विर्क उनसे करवाते है और यें भी बताते है कि इन्होंने यूपीएससी का मैन्स निकाल दिया है और इंटरव्यू की तैयारी कर रहे है तो जवाब में सीबीआई ऑफिसर कहती है की ‘ आज कल इनकी कम्युनिटी से बहुत लोग आ रहे है, देखना एक दिन इनकी कम्युनिटी की इमेज चेंज हो जायेगी”। एक जगह पर मुस्लिमों के प्रतिनिधित्व का सवाल भी आता है। जब मॉक इंटरव्यू देकर आते समय बाहर इंतजार कर रहे दूसरे कैंडिडेट द्वारा कहा जाता है कि ‘तेरा तो हो ही जायेगा उन्हें भी तो तुम्हारे समाज का प्रतिनिधित्व जो दिखाना है’ यें दर्शाता है कि मुस्लिमों की सिर्फ़ भागीदारी दिखानी है इसीलिए उन्हें मौका दिया जाता है बाकि उनका कोई मतलब नहीं है।
एक दृश्य में रेलवे स्टेशन पर राम मंदिर के आंदोलन में हिस्सा लेने वाली भीड़ को भी दिखाया गया है जो हाथ में भगवा झंडा लिए ‘राम लल्ला हम आयेंगे, मंदिर वहीं बनायेंगे’ के नारे लगाते हुए दिखाया गया है और साथ ही एक मुस्लिम परिवार को ट्रैन में बैठे हुए दिखाया गया है जो खाना खाने के लिए अपना टिफिन खोलते है और खाने से पहले ही उस आंदोलनकारी भीड़ द्वारा पीट- पीटकर मार दिया जाता है यें मोब लिंचिंग इस शक के आधार पर की जाती है की उस मुस्लिम व्यक्ति द्वारा बीफ खाया जा रहा था. यें दृश्य देश में घट रही तमाम मोब लिंचिंग की घटनाओं के यथार्थ को दिखाने का प्रयास करता है।
मोब लिंचिंग में मारे जाने वाले व्यक्ति का छोटा भाई है कबीर एम. जो संजीव मेहरा के मर्डर की साजिश में शामिल चार अपराधियों में से एक है जिसे सीबीआई ने एक आतंकवादी व आईएसआई के एजेंट के रूप में प्रोजेक्ट किया जाता है जिसके यहाँ से जिहादी साहित्य व पाकिस्तानी पासपोर्ट बरामद होता है. यें सब कुछ कबीर को बदनाम करने और केस को एक आतंकवादी साजिश की तरफ मोड़ने के लिए सीबीआई द्वारा कबीर की झूठी कहानी रची जाती है। मुस्लिम को हमेशा से शक की नज़र से देखा जाता रहा है और उन्हें किसी भी तरह से पाकिस्तान या आतंकवाद से जोड़ कर भारतीय समाज व मिडिया खुश होता आया है।
दलित आंदोलन व राजनीती –
इस शो में दिखायी गयी दलित राजनीती आज की दलित राजनीती से मेल खाती है पर इस शो में दलित राजनीती को जिस उग्र रूप में हिंसक प्रवृत्ति वाला दिखाया गया है यें इस शो के निर्माताओं का नजरिया हो सकता है। इसमें दलितों को देखने का व ‘दलित सेना’ है जिसे ‘भीम आर्मी’ के रूप में दिखाने का प्रयास किया है जिसका एक नेता है सूख्खा जो दलित युवाओ को प्रतिरोध करने और बदला लेने के लिए प्रेरित करता हुआ दिखायी देता है यें पंजाब के मंजार दलित है जो ‘डेंजर मंजार ‘ लिखते है जो यथार्थ रूप में ‘डेंजर चमार ‘ का पर्याय लगता है. इसी आंदोलन से तोप सिंह में बदला लेने की भावना जागती है पर हिंसक रूप धारण करके तीन लोगों को मारने के रूप परिवर्तित हो जाती…कोई सामाजिक बदलाव खड़ा नहीं कर पाती है. और बदले में उच्च जाति के लोगों द्वारा तोप सिंह की माँ का सामूहिक बलात्कार किया जाता है. यें पूरी कहानी दलितों की लाचारी, असहायपन, दबी-कुचली ज़िन्दगी का प्रदर्शन करती हुयी दिखायी देती है..जिससे कोई भी दमदार दलित नेतृत्व उभर कर नहीं आता है.बल्कि अपराध में धकेलता है..
इसमें ‘दलित समाज पार्टी’ (D.S.P.) दिखायी गयी है जो कहीं न कहीं ‘बहुजन समाज पार्टी’ (B.S.P.) का आभास देती है जिसमें पार्टी का एक बड़ा ब्राह्मण नेता है जिसका नाम है बालकिशन बाजपेयी जो की बसपा के नेता सतीश मिश्र का प्रतिनिधित्व करता हुआ दिखायी देता है। बाजपेयी को शो में दलित ह्रदय सम्राट के रूप में प्रदर्शित किया जाता है. इसमें यें दिखाने का प्रयास किया गया है की दलितों का नेतृत्व राजनीती में दलित स्वयं नहीं कर सकते है इसीलिए ब्राह्मण नेताओं की ज़रूरत पड़ती है। साथ ही इन ब्राह्मण नेताओं की सच्चाई को भी दिखाने की कोशिश की गयी है एक दृश्य में जब इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी चित्रकूट में एक पत्रकार से पूछते है कि “बाजपेयी के लोगों ने तुम्हारा दफ़्तर क्यों तोड़ा ?
जवाब में पत्रकार कहता है कि ” जानने वाले जानते है चौधरी साहेब बस बोलता कोई कुछ नहीं, बाजपेयी जी जब भी किसी दौरे पर जाते है तो गंगाजल के जरी कैन से भरी हुयी जीप उनकी गाड़ी के पीछे चलती है दलित ह्रदय सम्राट कह जाने वाले बाजपेयी जी जब भी किसी दलित के घर भोजन ग्रहण करते है तो उसके बाद गेस्ट हाउस लौटकर सबसे पहले उसी गंगाजल से गंगा स्नान करते है ताकि पवित्र हो जाए, पिछले हफ्ते हमने उस जीप का एक शॉट डाल दिया और फ़िर बवाल हो गया, तोड़ दिया गया ऑफिस”.यें दृश्य कहीं न कहीं दलितों के तथाकथित खैरख़्वाहों कि वास्तविकता को उजागर करता है।
आगे वो पत्रकार कहता है कि ” पुलिस से सिर्फ़ चोर नहीं भागते है चौधरी साहब कभी-कभी सच बोलने वाले भी भागते है”. यें बात अनेक रूपों में सच्चे लोगों के साथ पुलिस के रूखे व्यवहार को दिखाती है।
एक जगह पर बाजपेयी कि चुनावी रैली के दौरान दो पत्रकार आपस में बातचीत करते हुए नज़र आते है जिसमें एक पत्रकार दूसरे पत्रकार से बाजपेयी के लिए यें कहता है कि ” इनसे कभी कोई सीधा जवाब मिला है क्या कभी किसी बात का, ब्राह्मण देव है भैया, जलेबी खाते है, जलेबी हंगते है और जलेबी जैसा ही सोचते है तो जवाब भी तो वैसा ही मिलेगा ना “. बाजपेयी अपनी सभाओ में दलितों को सम्बोधित करते हुए दलितों के पूर्वजों के सहयोंगों को शास्त्रो से जोड़ते हुए महान बताकर उनके ऐतिहासिक अन्याय को जायज ठहराता हुआ दिखायी देता है यें कोशिश दलितों का हिंदू व्यवस्था में बनाये रखने की साजिश है जो आज भी जारी है।
मीडिया और वामपंथी एंकर –
संजीव मेहरा इसमें एक अहम् किरदार है जिसका वैचारिक झुकाव वामपंथ की ओर है यें एक बहुत बड़े न्यूज़ चैनल में टीवी एंकर है काफ़ी प्रसिद्ध नाम है हर रोज प्राइम टाइम करते है। इनको मारने की साजिश करने वाले अपराधियों की गिरफ्तारी के बाद मिडिया जगत में नया डिस्कोर्स खड़ा हो जाता है. इनके मीडिया हाउस में इसको अच्छी टीआरपी पाने का एक अवसर मानते हुए इस पर स्टोरी करने का प्लान बनता है।
एक जगह कहा भी जाता है कि यह अच्छा मौका है जब चारों आरोपियों में दलित, मुस्लिम, ट्रांसजेंडर व सामान्य शामिल है. साथ ही उसी मीडिया हाउस में एक महिला पत्रकार द्वारा यें सुझाव दिया जाता है कि क्यों ना हम फेक न्यूज़ पर कुछ करे या फ़िर उन चारो पकड़े गए अपराधियों की पृष्ठभूमि पर कुछ करे और पता करें कि आखिर क्या वजह थी जिसने इन सब को इस अपराध जगत में धकेला पर इन सुझावो को कोई गंभीरता से नहीं लेता है।
कहानी मीडिया वर्ल्ड की पॉलिटिक्स पर भी प्रकाश डालती है जिसमें जो कोई थोड़ा प्रसिद्ध हुआ और अपना मीडिया हाउस शुरू करने का इच्छुक है.. संजीव मेहरा को बाकि दुनिया से कोई लेना देना नहीं है उसे बस अपना रुतबा कैसे स्थापित करे उसकी चिंता लगी रहती है. यें आज के मीडिया जगत की सच्चाई है की वो आम मुद्दों पर केंद्रित न होकर हाई-प्रोफाइल केसों की तफ़्दीश में लगा रहता है।
बहुजन समाज का चित्रण –
इस शो में बहुजन समाज को बहुत ही नकारात्मक ढंग से पेश किया गया है जिसमें सबसे पहले आते है इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी जिन्हें कमिश्नर द्वारा यें केस जानबूझकर इसीलिए दिया जाता है कि यें केस को सॉल्व नहीं कर पायेंगे। उनका हाथीराम को कम योग्यता वाला मानकर यें काम सौपना समाज में बहुजनों के प्रति व्याप्त भ्रान्ति को दर्शाता है।
कमिश्नर इस सरकारी मशीनरी का हिस्सा है जो इस केस को पहले ही सिस्टम के अनुरूप हल कर चूका है बस हाथीराम को इसमें उलझाए रखना चाहता है ताकि यें दिखा सके कि बहुजन लोगों में मेरिट की कमी है..बाद में हाथीराम को ससपेंड भी कर दिया जाता और केस को सीबीआई को हस्तांतरित कर दिया जाता है है…इसके बावज़ूद हाथीराम चौधरी केस की सच्चाई तक पहुंचने में जी जान एक कर देते है और अंत में पता भी लगा लेते है और कहानी के अंत में सस्पेंशन यें कहते हुए रद्द कर दिया जाता है कि तुमने बहुत बहादुरी दिखायी।
हाथीराम का केस की तह तक जाना और सच्चाई पता लगाना इस सरकारी तंत्र की जटिलता में निरर्थक साबित होता है.. जहाँ सब कुछ पहले से ही तय है सीबीआई द्वारा पहले से ही किसी को आतंकवादी तो किसी को एजेंट बता कर केस को बड़ी ही बारीकी से ख़तम कर दिया जाता है।
इसी कड़ी में आते है गवाला ग़ुज्जर जिसे जो दुन्नलिया ग़ुज्जर के साथ मिलकर काम करता है और फ़ौज बनाते है जिसमें यें लोगों को मारने का काम करते है और राजनेताओं से सम्पर्क साधे रखते है..राजनेता इनका भली-भांति उपयोग करते है..बहुजनों को इस तरह दिखाना कि यें अपराधी होते है इनका काम मारना-पीटना होता है इन्हें शिक्षा,मानवता से कोई लेना-देना नहीं होता है यें कहीं न कहीं कहानीकार व निर्देशक की बहुजनों में इस भावना को और अधिक प्रबलता प्रदान करने की चाही-अनचाही भूल है जो बहुजनों के सामाजिक पिछड़ेपन को ज्यों का त्यों बनाये रखने में मदद करती है पूरे शो में सिर्फ़ बहुजनों को ही पाताल लोक के कीड़ों के रूप में दिखाया गया है।
हाथीराम अपने बेटे को इंग्लिश मीडियम में भरती करवाता है ताकि अच्छा पढ़ लिख सके लेकिन शो में उसके बेटे को भी स्कूल में बाक़ी उच्च वर्ग के अमीर बच्चों द्वारा ताने मारे जाते है और लैंग्वेज क्लास में पूरी कक्षा द्वारा उसके शब्दों के उच्चारण का भी मज़ाक उड़ाया जाता है..इससे उसका कॉन्फिडेंस गिरता रहता है व उसका मोह उस स्कूल से भंग होने लगता है वो फ़ैल भी हो जाता है कभी-कभी मार्कशीट पर अपने पापा का हस्ताक्षर भी ख़ुद कर देता है वो सरकारी स्कूल के बच्चों के साथ पढ़ना चाहता है जो आवारा लफंगों की तरह घूमते है।
एक बहुजन बच्चे को इस तरह दिखाना कि वो अंग्रेजी मीडियम स्कूल के लायक नहीं है वो उन बच्चों का मुकाबला नहीं कर सकता है वो सिर्फ़ आवारा बच्चों के साथ घूमना चाहता है..पढ़ाई में उसका मन नहीं लगता है यें इत्तयादी बातें कहीं न कहीं बहुजनों के प्रति निर्माताओ कि उस मानसिकता को उजागर करती है जिसने सिर्फ़ बहुजनों के इस पहलु को देखा है और इसे ही हाईलाइट करना चाहते है।
निष्कर्ष –
पूरा शो हाशिये के सामाजिक समुदायों की लाचारी, बेबसी, क्रूर बलात्कार, अत्याचार, योग्यताविहीन समाज व ब्राह्मणवादी सत्ता के वर्चस्व की गाथा का प्रदर्शन करता है। दलित-बहुजन प्रतीकों का प्रयोग भी इसमें किया गया है, जिन्हें निर्माताओ द्वारा जानबुझकर किया गया है या अनजाने में यें कहना मुश्किल है।
जैसे टीवी एंकर संजीव मेहरा की पत्नी द्वारा पकड़ी गयी एक कुतिया का नाम सावित्री रखा है, चार अपराधियों में से एक का नाम कबीर है, ‘हाथी’राम का नाम, उसके बेटे का नाम सिद्धार्थ, दलित सेना , दलित समाज पार्टी इत्यादि।
इस वेब शो में प्रत्येक महिला को पुरुषवादी आधिपत्य की शिकार पीड़िता के रूप में दिखाया गया है जो या तो पस्त पत्नी है या समझौतावादी प्रेमिका या अपने सहकर्मी के साथ शारीरिक सम्बन्ध में है या बलात्कार पीड़िता है।
प्रहलाद सिंह टिपानिया के एक कबीर भजन ‘सकल हंस में राम बिराजे’ से शो का अंत होता है।
– नीरज थिंकर
( राजस्थान में सक्रिय सामाजिक कार्यकर्त्ता , Tiss मुंबई के पूर्व छात्र )