Narayan Bhadala became the icon of the mission of drug addiction and death ban

भीलवाड़ा शहर से सात किलोमीटर दूरी पर स्थित अगरपुरा ग्राम निवासी 32 वर्षीय नारायण लाल भदाला आज भीलवाड़ा सहित मेवाड़ अंचल में युवाओं के आइकन बन चुके है। शिक्षा मैट्रिक तक भी नही, लेकिन काम के चर्चे दूर दूर तक होने लगे है। साधारण परिवार के नारायण भदाला नशा मुक्ति युवा आंदोलन के प्ररेणा बनकर अब मृत्युभोज को प्रतिबंधित कराने के मिशन के आइकन बन चुके है। नारायण की प्रेरणा से कई परिवार नशा मुक्त होकर न केवल समाज की मुख्यधारा से जुड़े वरन अब तक सैकड़ों युवा उनके आंदोलन से जुड़कर शहीद भगतसिंह के बताये मार्ग पर चलकर देशभक्ति का रंग जमाने पर भी आमदा है। पिछले आठ वर्षो में उनके प्रयासों से कई परिवारों व समाजों में मृत्युभोज को प्रतिबंधित कराया गया है। 


नारायण भदाला बचपन से पढाई में अव्वल थे, आठवीं कक्षा में प्रथम थे। लेकिन नवीं के एक्जाम के वक्त बडे भाई सडक दुर्घटना में चल बसे, एक ट्रक ड्राईवर के नशे ने उनकी जिन्दगी छीन ली। इस दुर्घटना ने नारायण के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला, उसके बाद उन्हें शराब शब्द से ही नफरत हो गयी। इस दौरान परिवार टूटा तो उनकी पढाई भी छूट गयी। पहलवानी करने का शौक उन्हें भीलवाड़ा ले आया। सोच थी कि पहलवानी से उठा पटक करके पैसे कमाये जाये। लेकिन पहलवानी के उस्ताद और अपने गुरू महेशपुरी ने इनकी उर्जा और ह्रदय को पहचान लिया और इस ताकत को समाज सेवा मे लगाने की सीख दी।

गुरू का मार्गदर्शन और आर्शीवाद लेकर नारायण ने अपने गांव में नशा मुक्ति के लिए एक अभियान शुरू किया। टीम तैयार की, इनके शुरू के सहयोगियों में मुकेश, शंकर, मोहन, पार्षद शंकर आदि आठ दस साथी थे। ये लोग रोजाना अपने मिशन को समय देते, नशाखोरो से मिलते, परिवार से मिलते, एक रजिस्टर मेंटन रहता। पूरी तैयारी, पूरा वक्त, पक्का काम। धीरे धीरे मेहनत रंग लायी लोग, परिवार मित्र साथ जुडने लगे, कुछ ही सालों में ये अभियान आन्दोलन में बदल गया। आज समूचे मेवाड़ अंचल में सैंकडो युवा नारायण के नशामुक्ति युवा भारत आन्दोलन से जुड़ गये।


मृत्युभोज पर इनकी कहानी 2012 से शुरू हुई। जब पास ही के एक गांव दांथल के समाजसेवी बुजुर्ग मांगीलाल खेडलिया को एक समारोह में गणमान्य व्यक्तियों द्वारा साफा पहनाकर सम्मानित करने का कार्यक्रम था। यहां मांगीलाल ने हाथ जोडकर घोषणा की सिर्फ वही व्यक्ति मुझे साफा पहनाने का हकदार होगा जो मेरे विचार को, मेरे संकल्प को, मेरे आन्दोलन को आगे लेकर जायेगा। उनका संकल्प था समाज में मृत्युभोज बन्द करवाया जाये। सभा में सन्नाटा छा गया था, समाज की इस प्रथा का कौन विरोध करे और क्यों करे। सभा में मौजूद नारायण भदाला ने इस मशाल को थामने का संकल्प लिया और तब से लेकर आज तक मृत्युभोज पर रोक में जो काम किया, वो अब बेमिसाल बन गया है।

सिर्फ अपने ही नहीं, नारायण ने हर समाज में जाकर इस कुप्रथा के नुकसान की बात की और अपने लक्ष्य में सफलता भी हासिल की। अन्य पिछड़े समाज के किसी व्यक्ति ने नारायण की परीक्षा लेते हुए चुनौती दी की अगर मेरे साथ, मेरे घर खाना खाओ तो तो में मृत्युभोज और नशा दोनो छोड दूंगा। नारायण ने उसके घर दाल बाटी बनवायी और उसके घर परिवार के साथ बैठकर खायी और फिर उसका वचन याद दिलवाते हुए दोनो चीजे छुडवा दी। आज वो युवक भी इनकी टीम में है। नारायण जिद्दी है ,जज़्बाती है, और जुनूनी है। लेकिन है सकारात्मक और सेवाभावी।देशभक्ति का जज्बा नारायण में कूट कूट कर भरा है। शहीद भगत सिंह की फोटो वाली टी शर्ट इनकी पहचान बन है। हर 23 मार्च पर अपनी टीम के साथ रक्तदान करके शहीदों को श्रद्धांजलि देने का क्रम दस सालों से चल रहा है। अपनी पीठ पर पुलवामा शहीदों के नाम स्थायी रूप से नारायण ने गुदवा रखे है।

नारायण बताते है कि मृत्युभोज रूकवाने हेतु शुरूआत में बहुत ज्यादा मुश्किलें आयी। अपने ही लोगों ने ताने मारे की पिता खाट पर है। इसलिए मृत्युभोज बन्द करवाना चाहता है ताकि खुद बच सके। लोगों ने खूब कटाक्ष किये। कई बार बेइज्जती की गयी, सभाओं से अपमानित कर उठा दिये गये। लेकिन संकल्प दृढ था और मन सहनशील सो हताश नहीं हुए। हार नही मानी, मित्रो ने, अच्छे लोगों ने इनका साथ दिया, इन्होंने रोजाना का नियम बनाया, घर घर जाकर, गांव गांव जाकर मृत्युभोज पर चर्चा की, युवाऔ को जोडा।


इन सब बातों के बीच नारायण ने जो बताया वो चौंकाने वाला कडवा सच था। कई समाज मृत्युभोज के दौरान उन बारह दिनों में लाखों रूपये अफीम पीने पिलाने में खर्च कर देते है। इस अमलपान को जरूरी रिवाज बना दिया गया। दरअसल ये उन लोगों की साजिश है जो अफीम का कारोबार करते है। ये ही लोग शोकमग्न परिवार पर दबाव बनाते है और मजबूर करते है। आश्चर्य की बात है कि मृत्युभोज से ज्यादा पैसा इस अफीम के नशे में खर्च करना पडता है। लाखों लाखों रूपये तक। अगर मृत्युभोज बन्द होगा तो ये अफीम भी बन्द, सो ये गैंग नारायण की दुश्मन बन गयी। समाज को नारायण के विरूद्ध भडकाया जाने लगा, धमकियां मिलने लगी। लेकिन नारायण और उनकी टीम ने पीछे मुडकर नही देखा। अपने घर से गांव तक और गांव से धीरे धीरे मेवाड के सैंकडो परिवारों को मृत्युभोज के विरूद्ध खडा कर दिया।

 2015 मे हरणी महादेव मे विशाल जनसभा रखी गयी। जिसमे कई समाज के गणमान्य और राजनीति की दिग्गज हस्तियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन का प्रमुख मुद्दा मृत्युभोज ही था। यह सम्मेलन सफल रहा, हजारों लोगो ने हाथ उठाकर इस प्रथा को खत्म करने का संकल्प ले लिया। उसके बाद नारायण गांव गांव अलग जगाने के लिए वहां पहुंच कर सभाएं करते है। आज नारायण के साथ हजारों युवाओं की टीम है। ये कब्बडी के खिलाडी भी है। कबाडी के सैंकडो युवा को साथ लेकर देशभक्ति माहौल बनाते रहते है। नारायण खुद नशे और मृत्युभोज पर कविताएँ भी लिखते है। कवि सम्मेलन करवाते है। आठ दस शार्ट फिल्म भी तैयार की है। अपने अभियान के लिए ना कभी सरकार की मदद ली है ना किसी संस्था की। अपने बूते सारे मित्र लोग मिलकर सब प्लान करते है और जुट जाते हे।

शहर मे जब टूटी सड़को के गड्ढे जनता को परेशान कर रहे थे तब नारायण अपने साथियों सहित सुबह फावडा तगारीे उठा इन्हें भरने निकल पडते। ट्रोली में मिट्टी भर ले जाते हुए कई बार मैंने देखा था। कोई अखबार में छपने का लोभ नहीं, कोई शाबाशी की उम्मीद नहीं । बस सेवा को अपना धर्म बना लिया है। सरल और सहज जीवन है, परिवार के लिए सिर्फ आवश्यक जरूरतें पूरी करने के बाद पूरा समय अपने मिशन को समर्पित ।

लोकडाऊन में नारायण ने पूरा वक्त अपने आन्दोलन को दिया। दूर तक गांवो में जाकर बुजुर्गाे से, बच्चो से बातें की। इसी लॉकडाऊन में उनकी प्रेरणा से गुर्जर समाज के युवाओं ने भी मृत्युभोज के विरूद्ध जबरदस्त काम किया। नरेश गुर्जर, समाजसेवी मनसुख गुर्जर ने टीम बनाकर खूब काम किया, और सोशल मिडिया पर अपडेट से जागरूकता बढाते रहे।साल में एक महिना नारायण सबसे दूर शांत वातावरण मे रहते है, यही एक महिना उनको साल भर के लिए चार्ज कर देता है। नारायण के चहरे पर सफलता की मुस्कान दिखती है लेकिन साथ ही शब्द भी कि अभी तो बहुत काम करना है। आत्मविश्वास के साथ कही गयी ये पंक्ति अच्छी लगी कि सोच लो तो कोई काम मुश्किल नहीं है। लेकिन ये सोच नारायण वाली सोच होनी चाहिए।बस एक सेल्यूट इस नेकदिल नौजवान के लिए और साथ ही एक संकल्प भी.मृत्युभोज ना करने के लिए, ना शामिल ना होने के लिए।

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