मैं 14 अप्रैल को भी बल्ब ही जलाऊंगा !
(Bhanwar Meghwanshi)
दीये जलाने का अभिप्राय अंधेरा भगाना है,जब उजाले के लिए और कुछ न था,तो लोग रोशनी के लिए दीपक जलाते थे,फिर लालटेन जलाने लगे,उसके बाद बिजली आ गई, बल्ब का आविष्कार हो गया,बड़ी बड़ी लाइट्स जलने लगी ,जिससे पूरे मोहल्ले में उजाला रहने लगा।
पर लोग आदिम स्मृतियों में जीने के आदी है,वे परम्पराओं ,रीति रिवाजों और अन्य कारणों से दीपक से नाता बनाये रखते है और यदा कदा मौका पा कर दीपक जलाने लगते हैं। हद तो तब होती है जब जगमग रोशनी को स्विच ऑफ करके वापस दीया बाती की तरफ लौट पड़ते है ।
मेरा बहुत स्पष्ट मानना है कि जहाँ रोशनी करने को कोई साधन न हो,वहां दीया, लालटेन आदि इत्यादि जला देना चाहिए,वरना बल्ब की रोशनी दीयों से बेहतर प्रकाश करती है।उन्हें जलते रहने दीजिए और उसके प्रकाश से प्रकाशित रहिये।
इस बार बाबा साहब की जयंती पर घर की बालकनी में दीये जलाने का मैसेज कईं लोग भेज चुके हैं,मैं उनसे कहना चाहता हूँ, हमने अम्बेडकर भवन के बाहर बड़ी हैलोजन लाइट लगा रखी है,जिसके सामने दीये की कोई औकात नहीं है,मैं उसे ऑफ करके दीये जलाने की मेहनत करने वाला नहीं हूँ।वैसे भी मुझे इस तरह के टोटके करने या देखादेखी अंधानुकरण करने में कोई रुचि नहीं है।
पूरी दुनिया आज संकट में हैं।लोग रोटी के लिए तड़फ रहे हैं,दवाओं व इलाज के अभाव से जूझ रहे हैं,सम्पूर्ण मानवता मुश्किल में हैं,ऐसे समय में हम लोग बाबा साहब की जयंती पर भी लॉक डाउन का पूरा पालन जरूर करें,अपने पड़ोसियों व आसपास के जरूरतमंदों तक राहत की सामग्री पहुंचाएं।यह सबसे अच्छा तरीका होगा।
जैसे कि निर्देश है ,हम घरों में रहें और घर पर ही बाबा साहब के चित्र पर माल्यार्पण कर दें,बस इस कोराना के संकट काल में हो जाएगी जयंती,इससे ज्यादा अतिउत्साह में न किसी का दिल जलाएं और न ही दीये। न पटाख़े फोड़ें और न ही थालियां तोड़ें। ये हरकतें भक्तों के लिए छोड़ दें।
गौतम बुद्ध ने ‘अत्त दीपो भवः’ कहा था,न कि कहीं और दीया जलाने की बात कही थी,वैसे भी बाबा साहब के चाहने वालों को दिखावे के लिए दीये, झालर लगाने की जरुरत नहीं है,आधुनिकता में यकीन कीजिये,वैज्ञानिक चेतना बनाइये,विद्युत बल्बों पर भरोसा कीजिये,उनकी रोशनी दीयों से तो बेहतर ही होगी।
शेष आपकी मर्जी,अगर आपको मिट्टी के दीपक लाकर, उनमें तेल या घी डालकर ,बाती बनाकर ,माचिस से जलाकर टिमटिम रोशनी करना अच्छा लगता है तो कोई बुराई नहीं है,आप खुशी मनाने के लिए अपने ढंग से कुछ भी करने को स्वतंत्र हैं। मैंने सिर्फ अपने दिल दिमाग में चल रही बात आपसे साझा की है।
मैं 14 अप्रैल को भी बल्ब ही जलाऊंगा,पर दिन में जरूर बाबा साहब के साहित्य ,उनकी विचारधारा व चिंतन पर लाईव चर्चा करूँगा।उम्मीद है कि आप भी स्वयं सुरक्षित रहते हुये कुछ ऐसा ही करेंगे।
-भँवर मेघवंशी