शोषित समाज पर अत्याचार लगातार जारी हैं, ऐसा क्यों ?
(बी एल बौद्ध)
कोरोना महामारी के चलते लॉक डाउन चल रहा है जिसके कारण साइकिल से लेकर हवाई जहाज तक सब कुछ रुका हुआ है लेकिन ऐसे में भी शोषित समाज पर जुल्म और अत्याचार लगातार जारी हैं, ऐसा क्यों ?
ताजा घटना राजस्थान के जोधपुर जिले की है वहां पर राजपूत समाज के लोगों ने शोषित समाज के एक व्यक्ति डूंगरराम मेघवाल को कुल्हाडी से काटकर मार डाला है।
कब तक शोषित समाज के लोगों को ऐसे ही गाजर मूली की तरह काटा जाता रहेगा ?
जब इस प्रकार की घटना सुनने या पढ़ने को मिलती है तो मन में बड़ा दुख होता है लेकिन मजबूरी यह है कि चाहकर भी कुछ कर नहीं पाते हैं।
आसपड़ोस एवं नजदीक के कुछ लोग घटना स्थल पर पहुंचते हैं, आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर लिखाने के लिए भागदौड़ करते हैं और रिपोर्ट दर्ज होने के बाद आरोपियों को गिरफ्तार कराने के लिए आंदोलन करने की रणनीति तैयार करते हैं, कुछ आरोपी गिरफ्तार भी कर लिए जाते हैं उसके बाद किसी को इतना समय नहीं है कि उस मुकदमे को अंतिम सिरे तक ले जाकर दोषियों को सजा दिला सकें।
कुछ दिनों बाद पता चलता है कि वहाँ पर तो इतने रुपये लेकर समझौता कर लिया गया है अथवा दोषियों के विरोध में कोई गवाही देने को ही तैयार नहीं है।बहुत ही कम ऐसे मामले देखने को मिलते हैं कि आरोपी को अदालत ने दोषी करार देते हुए सजा सुनाई हो।
ऐसी ही एक घटना कुछ समय पहले नागोर जिले के एक गांव में घटी थी वहां पर भी राजपूत समाज के लोगों ने मेघवाल समाज की महिला की हत्या कर दी थी, घटना के चार दिन बाद अम्बेडकरवादी संगठनों का एक प्रतिनिधि मंडल मौके पर पहुंचा तो वहां इस बात को लेकर कोई चर्चा नहीं हो रही थी कि आरोपी को अभी तक गिरफ्तार तक नहीं किया गया है इसलिए उसे गिरफ्तार कराने के लिए हमें मिलकर प्रयास करना चाहिए बल्कि वहां करीब 50 लोग मौजूद थे वे इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि मृत्यु भोज पर करीब तीन लाख रुपये खर्च आएगा उसके लिए कितना बीघा खेत बिक्री करना पड़ेगा।
सोशल मीडिया पर ऐसा लगता है कि हम लोग बहुत ज्यादा संख्या में जागरूक हो चुके हैं लेकिन जब गांवों में जाकर देखते हैं तो एक भी जागरूक व्यक्ति दूर दूर तक भी कहीं दिखाई नहीं देता है।
लॉक डाउन ने शोषित समाज के बहुत से लोगों की हकीकत सामने लाकर रख दी है कि यदि उनकी कोई मदद नहीं करे तो वे कुछ दिनों बाद भूख से ही दम तोड़ देंगे।
तथागत बुद्ध के संदर्भ में बाबा साहेब अंबेडकर ने अपने ग्रन्थ में लिखा है कि गरीबी से बढ़कर अन्य कोई बीमारी नहीं है, आज हमें तथागत बुद्ध की बात को समझने की जरूरत है और गरीबी रूपी बीमारी से शोषित समाज को निजात दिलाने का अभियान शुरू कर देना चाहिए।
यदि सरकारों की बात करें तो वे तो सबसे ज्यादा गरीबों के साथ भेदभाव करती हैं, कोरोना महामारी के समय भी जमकर भेदभाव किया गया है,पैसे वाले लोगों को तो विदेशों से भी हवाई जहाज में बैठाकर उनके घरों तक पहुंचाया गया है, यहां तक की लॉक डाउन की धज्जियां उड़ाते हुए भी कोटा राजस्थान से हजारों युवाओं को सरकारी बसों में बैठाकर उन्हें सुरक्षित उनके माता पिता को सौंपा गया है लेकिन गरीबों के साथ क्या हुआ, हम सभी ने देखा है. उन्हें कहीं सड़क पर मुर्गा बनाया गया तो कहीं मेंढक चाल चलाया गया तो बहुत से लोगों पर अपराधी की तरह उन पर लाठियां भांजी गई।
अपने को ऊंची जाति का समझने वाले लोग भी शोषित समाज के उन्हीं लोगों पर जुल्म ढाते हैं जो गरीब, लाचार एवं मजबूर हैं, ऐसा बहुत ही कम देखने में आता है कि शोषित समाज के किसी साधन सम्पन्न व्यक्ति या बड़े ओहदे पर विराजमान किसी व्यक्ति पर जुल्म एवं अत्याचार किये हों लेकिन यह भी सही है कि जुल्म और अत्याचार उन लोगों के साथ भी किया जाता है लेकिन वह दूसरे तरीके का होता है।बड़े बुजुर्गों का कहना था कि रस्सी वहीं से टूटती है जहाँ से वह कमजोर होती है।
एक कहावत है कि गरीब की बहू पूरे गांव की भाभी। बड़े बुजुर्गों की इन बातों पर भी ध्यान देने की जरूरत है :-
-ऊपर की ओर थूकने से आपका वह थूक आपके अंदर ही गिरेगा।
-ऊजड़(रास्ते से हटकर) चलने से व्यक्ति काँटों से फटता है।
-जितनी लम्बी रजाई हो उतने ही पाँव पसारने चाहिए।
ऐसे नाजुक दौर में हम सभी को अपने बड़े बुजुर्गों की बातों पर भी ध्यान देना चाहिए और बहुत ही गहराई से अपने आप मे मंथन करते हुए अपने शोषित समाज को गरीबी से कैसे निजात दिलाने का प्रयास करना चाहिए।
युवाओं से अपील की जाती है कि आप लोग आगे निकलकर आएं, यदि आप लोग आगे नहीं आओगे तो आने वाली पीढ़ियों को गुलाम बनने से कोई नहीं रोक पायेगा।
मान्यवर कांशीराम साहब 31 वर्ष की उम्र में समाज के लिए काम करना शुरू कर दिया था।
बाबा साहेब अंबेडकर ने भी 25 वर्ष की उम्र में ही समाज के बारे में रणनीति बनानी शुरू कर दी थी।
महामानव ज्योतिराव फुले ने तो 21 वर्ष की उम्र में शोषित समाज के लिए स्कूल खोलने का अभियान शुरू कर दिया था।
शहीद ऊधमसिंह ने 20 वर्ष की उम्र में ही जनरल डायर को मारने का संकल्प ले लिया था।
बिरसा मुंडा ने भी 19 वर्ष की उम्र में ही क्रांति शुरू कर दी थी और 23 वर्ष की उम्र में तो आदिवासियों के हक अधिकारों के लिए 2 वर्ष वर्ष की जेल काट चुके थे एवं 25 वर्ष की उम्र आते आते तो स्लो पोइजन से उनकी हत्या कर दी गई थी लेकिन आदिवासी समाज आज भी उन्हें भगवान बिरसा मुंडा के रूप में याद करता है।
सिद्धार्थ गौतम बुद्ध ने भी बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के उद्देश्य को लेकर 28 वर्ष की उम्र में राजशाही सभी सुख सुविधाओं को ठोकर मार गृह त्याग कर दिया था और 32वर्ष की उम्र में तो उन्होंने बुद्धत्व को प्राप्त कर मानव कल्याण का मध्यम मार्ग शुरू कर दिया था।
अतः हमारे बहुजन महापुरुषों के जीवन से शिक्षा लेकर एवं वर्तमान स्थिति को गहराई से समझकर ठोस कदम उठाने के संकल्प के साथ आगे बढ़ें। सभी युवा नशे से दूर रहने का संकल्प लें। अविवाहित युवा बिना दहेज की शादी या सामूहिक विवाह समारोह में शादी करें।
जन्म एवं मृत्यु प्राकृतिक क्रिया हैं अतः सभी लोग इन दोनों ही अवसरों पर किसी भी प्रकार का भोज नहीं खाने का व नहीं खिलाने का संकल्प लें।
कोई भी युवा बेरोजगार बनकर घर पर नहीं बैठे बल्कि छोटा ही सही लेकिन कोई काम धंधा शुरू करने का प्रयास करें।
शोषित समाज के सभी बुद्धिजीवी लोग समाज में फिजूलखर्ची रोकने में अपनी ओर से शुरूआत करें और साथ ही युवाओं को रोजगार से जोड़ने की योजना बनाकर युवाओं को जागरूक करें।
केवल सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने से या कभी कभार मंच पर भाषण देने से बात नहीं बनने वाली है बल्कि हम सभी को मिलकर गाँव और मोहल्लों में जाकर अपने लोगों को समझाने का जोरदार अभियान चलाना होगा।
ध्यान रहे सबसे पहले स्वयं से शुरुआत करने से ही अभियान सफल होगा, इसलिए हर व्यक्ति अपने स्वयं में बदलाव लाने का प्रयास करें।