बहुजन राजनीति वेंटीलेटर पर क्यों आ गयी है !
(बहुजन समाज पार्टी के राजनैतिक भविष्य पर बसपा के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयप्रकाश जी से सवाल )
जयप्रकाश जी,
जय भीम।
मैं आपसे स्पष्ट शब्दों में पूछना चाहूंगा कि हम ‘विचारधारा के साथ है या व्यक्ति के’? आपने कहा परिवार का अगर बड़ा सदस्य गलत कार्य में लिप्त हो तो क्या परिवार को छोड़ा जाता है? यहां सवाल सिर्फ एक परिवार का नहीं है, बल्कि पूरे समाज और देश का है हम जो सामाजिक क्रांति के साथ राजनीति के क्षेत्र में आए हैं वहां हमारे सरोकार क्या है ? सिर्फ सत्ता के भय से अपनी राजनैतिक क्रियाशीलता को शिथिल करना? सामाजिक क्रांति की धज्जियां उड़ना? आप अपने स्पष्टीकरण से समाज के किस वर्ग को समाझाने का प्रयास कर रहे हैं ?
क्या सभी गांव खडे के गरीब लाचार और बेरोजगार हैं? जो अम्बेड़करवाद व बहुजन मिशन को जानते नहीं है? क्या बहुजन समाज पार्टी का शीर्ष नेतृत्व अभी इसी मुगालते में है कि भोली भाली जनता हमें सामाजिक संवेदनाओं के सवालों पर वोट दे देगी? आपने उन लोगों को आगाह किया जो पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टियों में जा रहे हैं और अपना राजनैतिक भविष्य तलाश कर रहे हैं ? आपने कहा बहुजन समाज पार्टी में रहकर आप आंदोलन कर सकते है, मुझे आप सही में विचार करके बताइए कि पार्टी स्तर पर कितने हमने सामाजिक व राजनैतिक आंदोलन चलाए या उन आंदोलनों का पक्ष लिया जो आपकी विचारधारा से प्रेरित था। हमारे पास इन तमाम बातों का जवाब नहीं है।
बहुजन समाज पार्टी के वैचारिक बुद्धिजीवियों की क्या स्थिति है वो आप मुझसे बेहतर जानते है। मैं कई बार लिख चुका हूं देश में दलित आदिवासी , माईनोरेटी व पिछड़ों की राजनीति वेंटिलेटर पर आ गई है, इसका कसूर क्या हम उन लोगों को दें जो बहुजन राजनीति के लिए बसपा को अपने सपनों में संजोए हुई है या थी।
निर्णय हम सबको करना होगा। बहुत कम लोग जानते हैं मैंने व्यक्तिगत बसपा के शीर्ष नेतृत्व से पार्टी की शिथिलता पर सवाल किए लेकिन हर बार मैं निराश ही रहा। क्या बदलते दौर व बदलती चुनौतियों के मद्देनजर बहुजन समाज पार्टी अपने को नहीं बदल सकती? आज का दौर सूचना प्रौद्योगिकी का है और हम अभी भी पिछले चालीस साल पहल केे दौर में जी रहे है। अगर हम वक्त के हिसाब से नहीं बदले तो हालात पार्टी के लिए गंभीर हो सकते हैं।
मैं आज भी पार्टी के बदलते और जोशीले दौर की बाट जोह रहा हूं, एक दिन आएगा जब पार्टी अपने मूल विचारधारा को संजोते हुए देश में आंदोलन कर पुनः राजनैतिक स्थापत्य लेकर आएगी। अंत में जीवन में संभावनाएं खत्म नहीं होती, सिर्फ प्रयास की जरूरत है। वक्त मिला तो मैं जयप्रकाश जी का इन सवालों पर एक लंबा इंटरव्यू करना चाहूंगा। मेरी इन बातों से पार्टी कार्यकर्ता निराश न हो। यह मेरे वो सवाल है जो मौजूदा दौर में पूछे जा रहे है।
कोई भी साथी मुझसे फोन पर बात कर सकता है।
जय भीम, जय कांशीराम , जय बसपा।
धन्यवाद
महेश वर्मा
संपादक -डेमोक्रेटिक भारत ( YouTube channel)
मो-9660975086