( डॉ एम एल परिहार ) बुद्ध प्रेम,करुणा, ध्यान के पहले विद्रोह का नाम है. परम्परागत रूढियों, सड़ी गली मान्यताओं , अंधविश्वासों व अज्ञान के अंधेरे के खात्मे का नाम है. इसलिए इस पृथ्वी पर जब भी कोई धाम्मिक व्यक्ति हुआ है वह विद्रोही होता है. वह खोज, जिज्ञासा, अनुभव से मानव कल्याण की बात करता है. बुद्ध गंदगी को मखमल से नहीं ढकते है उसे मिटाने की बात करते है .घाव को सहलाते नहीं है इलाज करते है. वे कहते है- खोजो, जानो ,खुद के अनुभव से जानो.अत्त दीपो भव.स्वयं दीपक बनो. इसलिए बुद्ध से परंपरावादी घबराते है, संप्रदाय चलाने वाले डरते हैं क्योंकि संप्रदाय का असली दुश्मन धम्म (धर्म) है और विचित्र बात यह है कि अलग अलग संप्रदायों मे आपस में कितने ही मतभेद हो, झगड़े हो लेकिन मौलिक मतभेद नहीं है इसलिए जब बुद्ध जैसा व्यक्ति पैदा होता है तो वे सभी संप्रदाय मिलकर विरोध करते हैं. गौतम बुद्ध का नाम संकीर्ण, सांप्रदायिक चित्त के लोगों के लिए भयांक्रात कर देता है. और कोई भयभीत तभी होता है जब वह झूठा व गलत हो. बुद्ध जैसा व्यक्ति संप्रदाय के मूल स्वार्थ व साजिश पर चोट करता है. असत्य हमेशा डरता है और सत्य अभय रहता है इसलिए आज के धर्मगुरु स्वयं भी बहुत डरे रहते और धर्म के नाम पर डर पैदा करते है.धर्म की मिठास में नफरत का जहर छिपाए रहते है. बुद्ध तो हमेशा प्रेम करुणा,सत्य और सम्यक दृष्टि की बात करते हैं. तर्क विवेक विज्ञान की बात करते है जिससे लोगों की झूठी आस्थाएं डगमगाती है. बगावत का दूसरा नाम ही बुद्ध है. आमूल क्रांति का पर्याय है बुद्ध. बुद्ध की हवा में जाना खतरे से खाली नहीं है, वह तुफानी हवा है वह बदन को सहलाती नहीं है, जोरदार झकझोरती है ,तुम्हारे पत्तों पर सदियों से जमी हुई धूल झड़ सकती है, भीतरजमी हुई गंदी हवा बाहर निकल सकती है. नई ताजगी और अनुभव का स्वर गूंज सकता है और जो बुद्ध के पास जाए फिर बुद्ध के हुए बिना लौटना संभव नहीं है.बुद्ध को देखा और बुद्ध जैसा न हो यह असंभव है. बुद्ध के संपर्क में ध्यान का दीया व करुणा का प्रकाश जलता ही है. भीतर की प्यास मिटती ही है, ज्ञान की ज्योति फैलती ही है. बुद्ध में हम अपने भविष्य को देखते हैं बुद्ध जैसे खिले हुए फूल को देखकर हमें एहसास होता है कि हम अभी बंद है,हम अभी कली है और हम भी खिल सकते हैं. यह एहसास ही जीवन में क्रांति का सूत्रपात करता है. |
