-हिमांशु कुमार
बुद्ध का जन्म लुम्बिनी में हुआ जो अब नेपाल में है,इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था।इनके पिता का नाम शुदोधन था।ज्योतिष ने भविष्य वाणी करी थी कि यह या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा,लेकिन अगर दुःख देख लेगा तो सन्यासी हो जाएगा.
पिता ने सारे सुख का इंतज़ाम कर दिया,लेकिन एक दिन सैर पर जाते समय उन्होंने एक बूढ़े को देख लिया।दूसरे दिन एक बीमार को देख लिया।तीसरे दिन एक मरे हुए को देख लिया।उनका सुखों को लेकर चिंतन शुरू हुआ.
क्या दुखों से मुक्त हुआ जा सकता है?
वह पत्नी यशोधरा और बेटे राहुल को छोड कर आधी रात को निकल गये.जंगल में एक पीपल की पेड़ के नीचे बैठ कर समाधी लगा ली.जब बहुत दुबले हो गये,तो एक लडकी सुजाता ने खीर का कटोरा सिद्धार्थ के सामने रखा और बुद्ध ने थोडा स्वस्थ होने के बाद पहला उपदेश दिया.जिसे जंगल के हिरणों ने सुना.बौद्ध मठों में आज भी ऐसे चित्र मिल जायेंगे.यहाँ हिमाचल में एक बौद्ध मठ है जिसका नाम डियर पार्क है.इसके बाहर बुद्ध के साथ हिरणों का चित्र लगा हुआ है.
बुद्ध ने मध्यम मार्ग का उपदेश दिया.उन्होंने कहा वीणा के तारों को इतना मत कसो कि वे टूट जाएँ और वीणा के तारों को इतना ढीला भी मत छोडो कि उनसे संगीत ना निकले.इसे सम्यक जीवन भी कहा जाता है.
बुद्ध ने पञ्च शील का उपदेश दिया
” प्राणीमात्र की हिंसा से विरत रहना ।चोरी करने या जो दिया नही गया है उसको लेने से विरत रहना । लैंगिक दुराचार या व्यभिचार से विरत रहना ।असत्य बोलने से विरत रहना । मादक पदार्थॊं से विरत रहना ।” बुद्ध के जीवन में उनके बड़ी तादाद में शिष्य बने.उन्हें भिक्खु कहा जाता है,बुद्ध ने उनके लिए नियम बनाये के वे सदैव लोगों के कल्याण के लिए चलते रहेंगे.
उनका उपदेश है-“चरथ भिक्खवे चरिकम/बहुजन हिताय बहुजन सुखाय (बुद्ध कहते हैं कभी बैर से बैर नहीं मिटताबल्कि अवैर से वैर मिटता है) उनका उपदेश है-“नहीं वेरेन वेरानी सम्मंतीध कुदाचनम/अविरेन सम्मंती एस धम्मो सन्न्तनों.
बुद्ध के पास एक भिक्षु आया और विहार करने की आज्ञा माँगी।उसका नाम पूरणों था जिसके नाम पर पूर्णिया जिला बना है।बुद्ध ने कहा वहाँ के लोग तुम्हारा उपदेश नहीं सुनेंगे।उसने कहा मैं उन्हें धन्यवाद दूंगा कि उन्होंने मुझे गालियाँ नहीं दीं।
बुद्ध ने कहा लेकिन उनमें से कुछ ऐसे भी होंगे जो गालियाँ देंगे।पूरणों ने कहा मैं उन्हें धन्यवाद दूंगा कि उन्होंने मुझे पीटा नहीं.बुद्ध ने कहा लेकिन उनमें कुछ ऐसे भी होंगे जो तुम्हें पीटेंगे।पूरणों ने कहा मैं उन्हें धन्यवाद दूंगा कि उन्होंने मेरी हत्या नहीं करी।
बुद्ध ने कहा कि लेकिन उनमें ऐसे भी लोग हैं जो तुम्हारी हत्या कर देंगे।पूरणों ने कहा कि मैं उनका आभारी होऊंगा कि उन्होंने मुझे संसार के दुखों से मुक्ति दिला दी.बुद्ध ने कहा कि अब तुम उपदेश देने योग्य हो गये हो।
बुद्ध के पास एक व्यक्ति आया उसने बुद्ध को गलियाँ दीं और बुद्ध के मूंह पर थूक दिया।बुद्ध मुस्कुराते रहे।बुद्ध के शिष्य आनंद को बड़ा आश्चर्य हुआ।अगले दिन वह व्यक्ति फिर आया और वह बुद्ध के पैरों में गिर गया और रोने लगा.
बुद्ध के पाँव आंसुओं से भीग गये .उसने कहा आप मुझे क्षमा कर दीजिये।बुद्ध ने कहा क्षमा तो उसी क्षण हो चुकी।अगले क्षण के लिए जीवन में कुछ रहता ही नहीं है।अगले क्षण नया जीवन है।
वह व्यक्ति रोता रहा।बुद्ध मुस्कुराते रहे।वह व्यक्ति संतुष्ट होकर चला गया.
बुद्ध के शिष्य आनंद ने पूछा-‘कल उस व्यक्ति ने आप पर थूका,आज वह रोता रहा,आप दोनों हालत में मुस्कुराते रहे? बुद्ध ने कहा-‘उसका मेरे मूंह पर थूकना और उसका रोकर मेरे पाँव भिगाना दोनों भाषा हैं.मैं समझ गया’.जब वह अपनी नफरत के लिए शब्द नहीं खोज पाया तो उसने थूका और जब वह अपने पश्चाताप के लिए शब्द नहीं खोज पाया तो वह रोया.
बुद्ध वर्षों तक घूम कर उपदेश देते रहे.बुद्ध के भिक्षुओं के संघ बने.उन भिक्षुओं के रहने की जगह को बौद्ध संघ या बौद्ध मठ कहा जाता था.बुद्ध ने पुराने धर्म को छोड़ कर क्षमा और दया का पालन करने का उपदेश दिया.बुद्ध के उपदेश प्राकृत और पाली भाषा में हैं.यह भी कहा जाता है कि इरान की तरफ से आए हुए आर्यों की भाषा का प्राकृत के साथ मिलन होने से संस्कृत बनी है.
बुद्ध के खिलाफ बाल्मीकी रामायण में श्लोक मिलते हैं.जिससे यह संभावना है कि रामायण बुद्ध के बाद लिखी गई है.
“यथा हि चोरः स: तथाहि बुद्धस्तथागतं।नास्तिक मंत्र विद्धि तस्माद्धि यः शक्यतमः प्रजानाम्
स नास्तिकेनाभिमुखो बुद्धः स्यातम् ।।”
-(अयोध्याकांड, सर्ग -109, श्लोक: 34 / Page :1678 )
अर्थ- जैसे चोर दंडनीय होता है, इसी प्रकार ‘तथागत बुद्ध’ और और उनके नास्तिक अनुयायी भी दंडनीय है । ‘तथागत'(बुद्ध) और ‘नास्तिक चार्वक’ को भी यहाँ इसी कोटि में समझना चाहिए। इसलिए राजा को चाहिए कि प्रजा की भलाई के लिए ऐसें मनुष्यों को वहीं दण्ड दें, जो चोर को दिया जाता है। परन्तु जो इनको दण्ड देने में असमर्थ या वश के बाहर हो, उन ‘नास्तिकों’ से समझदार और विद्वान ब्राह्मण कभी वार्तालाप ना करे।
इससे साफ है कि रामायण बुद्ध के बाद लिखी गयी ना कि बुद्ध से 2000 साल पहले।बुद्ध की मृत्यु के बाद सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया और बुद्ध की शिक्षाओं को शिला लेखों पर लिखवाया.बौद्ध धर्म सारी दुनिया में फैला.कहा जाता है कि बुत शब्द बुद्ध का अपभ्रंश है.बुद्ध की मूर्तियों की पूजा के बाद ही भारत में मूर्ति पूजा शुरू हुई.
भारत में बहुत सारे मन्दिर बौद्ध मठों को तोड़ कर बनाये गये हैं।आज भी बहुत सारी विष्णु की मूर्तियाँ असल में बुद्ध की प्रतिमाएं हैं।इस विषय में एक शोध ग्रन्थ हिमाचल प्रदेश के बीर कसबे में बौद्ध मठ में उपलब्ध है.
आज भी बौद्ध धर्म एशिया के अनेकों देशों का मुख्य धर्म हैहांलाकि बर्मा और श्री लंका में बौद्ध धर्म के अनुयाइयों ने बहुत हिंसा करी है,लेकिन ऐसा हरेक संगठित धर्म के साथ होता है।लोग धर्म की शिक्षाओं को छोड कर उसके कर्म कांडों को ही पकडे रहते हैं और खुद को धार्मिक कहते रहते हैं।