घुमन्तु समुदाय को विधानसभा चुनावों में 50 सीटें दी जाये- केसावत
17 अगस्त 2018,जयपुर
जयपुर पिंक सिटी प्रेस क्लब में आयोजित प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए राजस्थान “डीएनटी बोर्ड” के पूर्व अध्यक्ष गोपाल केसावत ने कहा कि
भारत में घुमंतू , विमुक्त व अर्द्ध घुमंतू समुदाय ( DNT Community) की आबादी लगभग तीस करोड़ और राजस्थान में लगभग एक करोड़ से ज्यादा है। राजनीतिक दृष्टि से यह समुदाय एक बहुत बड़ा वोट बैंक है। इस समुदाय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और आजादी के आन्दोलन का गौरवशाली इतिहास रहा है। 1857 की क्रांति के दौरान डीएनटी समुदाय की अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांतिकारी भूमिका की गवाह वर्तमान में दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट है। इस कोर्ट ने 1857 की क्रांति के तीस हजार क्रांतिकारियों को फाँसी की सजा सुनाई थी, जिसमें अधिकांश क्रांतिकारी डीएनटी समुदाय से थे। इसी आधार पर इस कोर्ट का नाम तीस हजारी पड़ा। 1857 की क्रांति के बाद भी डीएनटी समुदाय अंग्रेजों के विरुद्ध निरंतर विद्रोह करता रहा, जिसे नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने इस बहादुर कौम को 1871 में “क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट” के तहत बंदी जीवन जीने के लिए विवश कर दिया था। देश की आजादी के बाद पं. जवाहरलाल नेहरु और तत्कालीन कांग्रेस के अन्य प्रादेशिक नेताओं के प्रयासों से इन्हें 31अगस्त 1952 को क्रीमिनल ट्राइब्स एक्ट से मुक्ति मिली। 06 अप्रैल 1955 को पं. जवाहर लाल नेहरु ने ही डीएनटी समुदाय को चित्तोढ़गढ़ के किले में प्रवेश कराकर उन्हें अपने गौरवशाली अतीत से रूबरू कराया था तथा डीएनटी समुदाय के हाथों से “विजय स्तंभ” पर तिरंगा पहनवाकर डीएनटी समुदाय के लिए स्वतंत्रता की घोषणा की थी।
किन्तु यह दुर्भाग्य की बात है कि आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी आज डीएनटी समाज सामाजिक, शेक्षणिक, राजनीतक और आर्थिक मोर्चे पर देश की मुख्यधारा से प्रथक रह गया है और एक तरह से बहिस्कृत जीवन जीने के लिए विवश कर दिया गया है। करोड़ों की आबादी होते हुए भी डीएनटी समाज का एक भी व्यक्ति MLA और MP नहीं बन पाया है। बने भी कैसे ? राजनीतिक दल डीएनटी समाज को टिकिट ही नहीं देते हैं। आज घुमंतू समाज के लोग अशिक्षित, बेरोजगार और बेघर रहकर बेइज्जत हैं तथा राजनीतिक व्यवस्था के एजेंडे से कोसों दूर रहकर खुले आसमान, पुलों के नीचे और तरपालों में अपना जीवन जीने को विवश हैं।
2006 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली UPA सरकार ने बालकृष्ण रेंके की अध्यक्षता में ” डीएनटी आयोग ” बनाया था, जिसकी रिपोर्ट 2008 में सरकार के समक्ष प्रस्तुत हो गई थी। आयोग की कई सिफारिशे थी ,उन्ही सिफारिशों को लागू करवाने की मांग समस्त डीएनटी समुदाय करता है
(1) डीएनटी समाज के लिए शिक्षा और नौकरी में अलग से 10 प्रतिशत आरक्षण हो।
(2) अलग बजट का प्रावधान हो।
(3) डीएनटी जातियों का अलग से मंत्रालय हो।
(4) डीएनटी जातियों के लिए बोर्डिंग स्कूल खोलें जाएँ।
(5) डीएनटी जातियों के रहने के लिए जमीन और मकान बनाकर दियें जाएँ।
(6) डीएनटी जातियों का स्थायी आयोग बनाया जाय।
(7) पंचायत स्तर पर डीएनटी गाँवों को राजस्व गाँव घोषित किये जाए
(8) राजस्थान में घुमन्तू समुदाय आज भी पहचान के संकट से जूझ रहा है ,कहीं उसे राशन कार्ड नहीं मिलता है तो कहीं जाति प्रमाण पत्र के लिए दर दर की ठोकरें खानी पड़ रही है,यह दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि आज भी घुमन्तू समुदाय देश का नागरिक होने की पहचान से वंचित है ,सरकार विदेश से आये लोगों के लिए एनआरसी बना रही है मगर जो लोग हजारों साल से इसी जमीन के बाशिंदे है ,उनका कोई रिकॉर्ड नही रखना चाहती ,हम मांग करते है कि देश भर के घुमन्तू समुदायों की वास्तविक गणना हो तथा उन्हें उनकी आबादी के अनुपात में हर क्षेत्र में भागीदारी दी जाये।
(9) घुमन्तू समुदाय की आजीविका ,आवास तथा श्मशान आदि की समस्याओं का तुरन्त हल किया जाये, अकसर यह देखा गया है कि घुमन्तुओं के पास न रहने को प्लॉट है,न खेती या व्यापार के लिए जमीन है ,हालात इस कदर बुरे है कि मरने के बाद दो गज जमीन तक नसीब नहीं हो रही है ,ऐसे में एक भारतीय नागरिक होने के नाते संविधान प्रदत्त जीने के अधिकार का इस वर्ग के लिए कोई मतलब नहीं रह गया है ,अतः हमारी मांग है कि प्रत्येक घुमन्तू को आवासीय,व्यावसायिक भूखण्ड दिया जाये तथा इस वर्ग के लिए सार्वजनिक उपयोग और शमसान आदि के लिए अलग से जमीनों का आवंटन हो
(10) घुमन्तू समुदाय विभिन्न श्रेणियों में विभाजित है,उसकी कुछ उपजातियां अनुसूचित जाति में तो कुछ जनजाति में ,कोई अन्य पिछड़े वर्ग में तो कोई सामान्य ,यहां तक कि विभिन्न धर्मों में है ,लेकिन सबकी समस्याएं एक जैसी है ,हालात एक जैसे है ,इसलिए हमारी मांग है कि देश भर के तकरीबन 700 घुमन्तू, अर्धघुमंतू और विमुक्त समुदायों को मिलाकर एक अलग घुमन्तू कैटेगरी बनाई जाये और उनको सत्ता ,संसाधनों में समुचित प्रतिनिधित्व दिया जाये।
(11) राजस्थान,मध्यप्रदेश,छतीसगढ़ में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में घुमन्तु समुदाय को उनका हक सुनिश्चित किया जाये,राजस्थान में 50 सीटें विभिन्न दल इस समुदाय को दे,ऐसी मांग हम रख रहे है।
(12)घुमंतुओं की परिस्तिथियों के मद्देनजर उनको बीपीएल में लिया जाए,खाद्य सुरक्षा के तहत कवर किया जाये,सबको निशुल्क आवासीय व व्यवसायिक भूखंड मिले ,सबको नागरिकता का प्रमाण पत्र मिले,सबको न्याय व समान अवसर प्राप्त हो ,यह घुमंतुओं का मुक्ति संग्राम है,इसी सिलसिले में 31 अगस्त 2018 को घुमन्तु मुक्ति दिवस बड़े पैमाने पर शाहपुरा,भीलवाड़ा में आयोजित किया जायेगा ।
(13)अखिल भारतीय स्तर पर मुक्ति दिवस समारोह के लिए केंद्र व राज्य सरकारे 31 अगस्त को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करे
“बालकृष्ण रेनके आयोग” की सिफारिशों को आज तक लागू नहीं किया गया है। वर्तमान में नरेन्द्र मोदी जी की बीजेपी सरकार पूर्ण बहुमत में होते हुए भी “रेनके आयोग” की रिपोर्ट लागू नहीं कर रही है। उलटा उन्होंने घुमंतू जातियों का पुन: सर्वे करने के नाम पर एक दूसरा आयोग बनाकर घुमंतू समाज को गुमराह करने का काम किया है। पिछले वर्ष मोदीजी की सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन आने वाले इस “राष्ट्रीय विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जनजाति आयोग” द्वारा किये गए सर्वे की सूची में राजस्थान की घुमंतू जातियो जैसे – रेबारी, बंजारा और गाड़िया लोहार इत्यादि को शामिल नहीं किया गया है। इस केन्द्रीय आयोग के नेतृत्व में तीन साल से घुमंतू जातियो को जोड़ने का सर्वे चल रहा है। लेकिन राजस्थान सरकार की सिफारिश के अभाव में इन जातियों को घुमंतू श्रेणी की न मानना बीजेपी सरकार की संवेदनहीनता को दर्शाता है। बीजेपी सरकार के सर्वे न जाने किस तकनीक और तथ्यों के आधार पर किये जाते हैं जो उन्हें मुख्यधारा से प्रथक रेबारी, बंजारा और गाडिया लोहार जैसी जातियाँ घुमंतू नजर नहीं आ रही हैं। इन तीन जातियों का मामला तो मिडिया में उजागर हो गया है, किन्तु ऐसी आशंका है कि इन जातियों के अलावा भी गलत सर्वे के कारण कई अन्य घुमंतू जातियां भी केंद्रीय डीएनटी आयोग की सूची में शामिल होने से वंचित हो सकती हैं।
राजस्थान “डीएनटी बोर्ड” के पूर्व अध्यक्ष गोपाल केसावत के अनुसार जीवनभर घूमने के चलते बंजारा समुदाय “सफर” का पर्याय बन गया है। ब्रिटिश काल में 1859 के “नमक कर विधेयक” के कारण बंजारों का नमक का पैत्रक व्यवसाय छिन्न भिन्न हो गया और आज ये लोग घूम घूमकर गोंद, कम्बल, चारपाई जैसे सामान बेचकर जीवन यापन कर रहे हैं। इसी प्रकार राजस्थान के गाड़िया लोहार भी ऐसी घुम्मकड जाति है जो अपना घर बनाकर नहीं रहती, बल्कि कलात्मक बैल गाड़ी में चलता फिरता घर बनाकर घूमते रहते हैं। इस जाति का दर दर भटककर लोहे का काम करने के कारण ही इन्हें “गाड़िया लोहार” कहा जाता है। राजस्थान की अन्य घुमंतू जाति रेबारी को राइका, गोपालक, देवासी, देसाई इत्यादि नामों से जाना जाता है। ये लोग मुख्यत: पशुपालक रहे हैं और पशुओं को लेकर देश के दूर दराज क्षेत्रों में घूमते रहते हैं तथा ज्यादातर झोंपड़ी बनाकर रहते हैं। देश का जन जन इन जातियों की जीवन शैली को देखकर मानता है कि ये घुमंतू हैं। लेकिन बीजेपी की राजस्थान सरकार और केंद्र सरकार का सर्वे इन्हें घुमंतू जाति नहीं मानता। यह बीजेपी सरकार की संवेदनहीनता की पराकाष्टा है और दिमागी दिवालियापन है। मौजूदा सरकार इन जातियों की मूल पहचान को छिपाकर और सर्वे के नाम पर भ्रम पैदा करके इन जातियो को आरक्षण से वंचित कर दूसरी प्रभावशाली जातियो आरक्षण का लाभ देना चाहती है जिसे घुमंतू समाज बर्दास्त नहीं करेगा।
केसावत के अनुसार राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार के समय “नवजीवन योजना” तथा राज्य सरकार का “डीएनटी बोर्ड” गठित करके घुमन्तु समाज को मुख्यधारा में लाने के प्रयास शुरू हुए थे। लेकिन वर्तमान वसुन्दराराजे जी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने “डीएनटी बोर्ड” के काम को ठप्प कर दिया है। “नवजीवन योजना” भ्रस्ताचार की भेंट चढ़कर पंगू हो चुकी है। वर्तमान शासन में घुमंतू समाज पर जुल्म और अत्याचार बढ़ते ही जा रहे हैं। लगातार समाज कंटकों द्वारा डीएनटी समाज की बस्तियों में आगजनी करने, उनकी जमीन हडपने, मारपीट करने, महिलाओं के साथ छेड़खानी व अभद्र व्यवहार करने, डीएनटी जातियों को पुलिस द्वारा बेवजह प्रताड़ित करने और झूठे मुकदमों में फंसाने इत्यादि की घटनाएँ बढ़ती ही जा रही हैं। गोपाल केसावत ने कहा है कि डीएनटी समाज इस सुनियोजित अपमान और अत्याचार को सहन नहीं करेगा। अब देश और प्रदेश का डीएनटी समाज लगातार जाग्रत होकर संघठित हो रहा है और अपने सम्मान व हक़ के लिए आगामी विधानसभा व लोक सभा चुनावों में एकजुट होकर अपनी ताकत का प्रदर्शन करने को तत्पर है। राजनितिक दलों द्वारा यदि डीएनटी समाज को उसकी आबादी के अनुपात में सम्मानजनक प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता है।तो डीएनटी समाज मुँह तोड़ जवाब देगा।
गोपाल केसावत
पूर्व अध्यक्ष
डीएनटी बोर्ड , राजस्थान सरकार