दुनिया के सबसे ऊंचे, 182 मीटर के सरदार पटेल के स्टेच्यू की भी सच्चाई कुछ और ही है । सरदार पटेल स्टेच्यु का नाम ‘स्टेच्यु फाँर युनिटी’ है I इससे आदिवासी और शहरवासी या धनवानों के बीच में दरार खडी का जा रही है। वैसे तो गुजरात का हर समुदाय किसान – मजदूर, मछुआरे, आदिवासी नर्मदा से वंचित और आक्रोशित है ही, लेकिन सरदार सरोवर के नीचेवास में सूखी पडी नर्मदा में 31 अक्टूबर के ‘ स्टेच्यू ‘ के उदघाटन के महोत्सव के लिए मात्र कुछ पानी वहां भरने की साजिश जले पर नमक छीडकाने जैसी है। साथ ही इस पुतले के लिए पानी सरदार सरोवर के 5 तालाबों में से छोडा जा रहा है, जिससे कि आदिवासी और अन्य किसानों को मिलने वाले पानी और सिंचाई में और कमी आएगी लेकिन इस स्टेच्यू को किसान हितेषी होने का प्रतीक बताने की और उससे न केवल गुजरात और केन्द्र शासन की बल्कि मोदीजी की प्रतिमा किसान हितेषी की बनाने की राजनीति नहीं तो क्या ?
सरदार पटेल का पुतला जहां खडा किया है, वह ‘साधु बेट ‘ आदिवासियों का श्रद्धा स्थान, ‘वराता बाबा टेकडी‘ के नाम से जाना जाता था। उनकी आस्था दबाकर पुतला खडा किया जा रहा है, जिसमें भी स्थानिक आदिवासी मजदूरों के बदले 1500 चिनी मजूदरों को कार्य में लगाना क्या देशहित है ? इस परियोजना से कम से कम 72 आदिवासी गांवों पर असर होना है, उनकी जमीन छीनने की शुरूआत हो चुकी है। नर्मदा का पानी, नदी बहना रूकने से, समुंदर आने से खारा हुआ, तबसे गांववासी, किसान,मछुआरे और उद्योग भी हैरान है, उन्हें अब नर्मदा पर्यटन से प्रदूषण बढ़ने से और भी परेशान होना है…. उनकी भूमी, पानी, जंगल भी खतरे में है ।
इस स्थिति में 1961 से सरदार सरोवर परियोजना से काॅलोनी के लिए उजाड़े गये 6 गांव, गरूडेश्वर वेयर के लिए उजाडे गये 9 गांव, डूब से प्रभावित 19 गांव, नहरों से प्रभावित कम से कम 2000 परिवार ( अन्य हजारों 25 प्रतिशत से कम जमीन अधिग्रहित हुए ) और इस पर्यटन परियोजना से और 72 आदिवासी गांवों पर असर, यह अन्याय है। इन गांवों के हजारो परिवार 31 अक्टूबर के रोज इसीलिए आदिवासी विरोधी दिवस मनाएंगे, चूल्हा बंद रखेंगे I
3500 करोड रू तक का इस स्टेच्यू पर खर्च सरदार सरोवर निगम से किया गया और कुछ 150 से 200 करोड रू. सार्वजनिक उद्योगों से,जैसे oil & petroleum corporation, गुजरात से सीएसआर के नाम पर निकाला गया है। सीएजी रिपोर्ट के अनुसार पुतले का निर्माण CSR कार्य नहीं कहा जा सकता है इसलिए यह अवैधता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ से कोई पर्यावरण पुरस्कार पाने वाले प्रधानमंत्री भले ही पुलिस बल के सहारे, इसका उद्घाटन भी कर ले लेकिन क्या इसके आधार पर वे आदिवासीयों के और किसानों के हितेषी साबित होंगे या विरोधी ?