अबे , क्या है ये गंगा जमुनी ?
किसी संघी ने पूछा है कि गंगा जमुनी तहजीब कैसे हुई… जबकि गंगा और जमुना दोनों हिन्दुओं की अराध्य हैं न कि मुसलमानों की..
कुछ गालियों के साथ एक सवाल भी आया है कि गंगा जमुनी तहजीब है क्या….. हो सकता है गुस्से में पूछा गया हो ” अबे क्या है ये गंगाजमुनी??” या फिर ऐसे ” भाई साहब गंगा जमुनी तहजीब किसे कहते हैं?” तो मैं दूसरा वाला ही समझ कर उत्तर दे रहा हूँ…..
गंगा गंगोत्री से चलने के बाद हरिद्वार, ऋषिकेश, फर्रुखाबाद, कानपूर, इलाहबाद, मिर्ज़ापुर, बनारस, बक्सर, बलिया पटना मुंगेर होती हुई चली जाति है जबकि यमुना यमुनानगर, दिल्ली, आगरा, मथुरा, इटावा होती हुई अलाहाबाद तक पहुँचती है…
एक नदी से जुड़े अधिकतर शहर या तो हिन्दू राजाओं नवाबों की रियासत थे या उनके तीर्थ तो दूसरी नदी के किनारे बड़ी बड़ी मुग़ल रियासतें…. यानी इन दोनों नदियों के बीच हिन्दू मुस्लिम रियासतों और मान्यताओं की एक खिचड़ी सी बनी हुई थी ….. बची खुची मुस्लिम रियासतों से बहने वाली घाघरा गोमती जैसी नदियाँ भी गंगा में ही मिल जाया करती थीं…..
इसी खिचड़ी के अंतर्गत एक जो हिन्दू मुस्लिम ताना-बाना बुना गया और जिस तरह धर्म, संस्कृति, भाषाओं की दीवार टूट एक मिली जुली तहजीब का जन्म हुआ इसे ही गंगाजमुनी तहजीब का नाम दिया गया…..
भाषाई तहजीब के नाम पर इसमें उत्तराखंड की ज़बानों से लेकर उर्दू, फारसी, संस्कृत, ब्रज, अवधि, दिल्लीकी उर्दू, आगरे की उर्दू, लखनऊ की उर्दू…. आगे चल कर बिहार की अलग हिन्दियां सब का समावेश होता चला गया…. और आज जो भाषा हमारे पास आई है जिसे हम हिंदी कहते हैं इसी गंगा जमुनी तहजीब के मंथन से प्राप्त हुई है….
ठीक इसी तरह हमारी जीने मरने कीरस्में शादी बियाह जैसी सभी बातों में आज आश्चर्यजनक समानता पायी जाति है यह भी सैंकड़ों सालों में इन्ही दोनों नदियों की देन रही है…..तो जनाब, बस इसी को बचाने का झगड़ा है.
-हैदर रिज़वी