हम इस देश की देवियों को डायन बनाने के असली अपराधी हैं !
ये हैं चार भोपे जो देश की लोकतांत्रिक विवेकशीलता को डायन घोषित करने के असली अपराधी हैं .वर्तमान के चेहरे पर साफ लिखा है .सजग जवानों को चालाक नेताओं ने भेज दिया है सैनिक बनाकर ब्रीफकेस लिए और सोने की चेनें पहने नेता सिटी नाइट्स सेलिब्रेट कर रहे हैं .कहीं कोई सुभद्रा, कहीं कोई पार्वती, कहीं कोई छिन्नमस्ता, कहीं कोई शची, शाकंभरी डायन बताकर ऐसे कुएं में धकेल दी गई हैं, जिसके बाहर राष्ट्रवाद ने युद्ध भूमियां सजा दी हैं और करुणा की देवियों को आंसू पौंछने से हटाकर खप्पर पहना दिए गए हैं।
यह इक्कीसवीं सदी का सतरहवां साल है और विवेकहीनता का सबसे जवान दशक। आज़ादी को 70 साल हो चुके। कितने ही समाजसुधार हो चुके और कितनी ही क्रांतिकारी पार्टियां हो चुकीं। आर्यसमाज का एक लंबा समाज सुधार आंदोलन हो चुका। कम्युनिस्टों की क्रांतियां हो चुकीं। कांग्रेस ने एक सुदीर्घ काल तक राज करने का आनंद भोग किया लेकिन उन्होंने सामाजिक बदलाव और आर्थिक परिवर्तन के लिए कुछ नहीं किया। सिर्फ़ बातें बनाईं और लोगों को इस कदर धोखे में रखा।
भारत जैसे महान संस्कृति वाले देश का अभिशाप देखिए कि हम नवरात्रा मना रहे हैं और सरस्वती, लक्ष्मी, शक्ति जैसी काल्पनिक देवियों की पूजा करते हैं और सच्ची देवियों को डायन घोषित कर देते हैं या ऐसा होने देते हैं या ऐसा हो सके, ऐसा वातावरण बनाए रखते हैं। क्या हक़ है कि किसी को आज कि वे अपने आपको प्रधानमंत्री, शिक्षा मंत्री, मुख्यमंत्री और न जाने क्या क्या कहते हैं ! क्या हक़ है आपको यह कहने का कि आप दुनिया के सबसे सभ्य देश हैं ?
ज़मीन पर जितनी गंदगी है ! इस गंदगी में आप क्या पैदा कर सकते हैं ? सामाजिक अज्ञान के इस सड़े हुए फलक और मानवीय चेतना में फैले इस अंधकार के खिलाफ अपनी कमज़ोर ताकत से लड़ने वाले हर दीपक के प्रति पल प्रणाम और पर्याप्त आदर। लेकिन इसके बावजूद इस अभिव्यक्ति को नहीं रोक सकते कि आखिर इस अंधकार में जैसा कुशासक जन्म ले सकते हैं और जैसे विषाक्त व्यवस्था जन्म ले सकती है, वही तो ले रही है।आखिर सांप्रदायिकता, विवेकहीनता, जातिवाद, कट्टरता, अन्याय, दुख-दर्द और प्रतिगामिता कहां जाएंगे? उनके लिए ही तो यह सबसे जरखेज माहौल है। यही तो सबसे सुखद है।
आज अगर इक्कीसवीं सदी के खेत में अगर विषबेलें लहरा रही हैं और जो विषवृक्ष पैदा हुए हैं, उन्हें आधी सदी से ज्यादा समय तक खाद पानी देने वाले दल के नेताआें को तो कम से कम जेल भेज ही देना चाहिए। समय उनसे हिसाब मांग रहा है और इस खबर का डरावने वाला सच चीख-चीख कर कह रहा है कि वर्तमान शास्ता भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। वे भी सहअभियुक्त हैं और उन्हें भी वही सज़ा मिलनी चाहिए।
आख़िर हमारे कलेक्टर, एसपी, संभागीय आयुक्त, प्रमुख सचिव, डीजीपी और चीफ सेक्रेटरी करते क्या रहते हैं? आखिर हम पत्रकार क्या करते रहे? क्यों ये हालात हैं? सबके सब जब अपनी-अपनी बात करेंगे तो कहेंगे कि इस देश की समस्त क्रांतियों के जनक वही हैं, लेकिन ज़मीन पर जो हो रहा है, अगर उसे देखें तो सच कहें तो असल डायल हम ही हैं। लोकतंत्र के कथित चारों स्तंभ!
आप आज संसद से लेकर सड़क तक और राजधानी से लेकर गांव ढाणी तक जैसे भोपे-भोपियों का अट्टहास देख रहे हैं, उसके लिए जिम्मेदार कोई और नहीं, हमीं हैं। हमीं हैं असली भोपे! हम विधायिका में बैठे, हम कार्यपालिका में साे रहे, हम न्यायपालिका में चैन की बंसियां बजा रहे और हम मीडिया पालिका वाले, अपने-अपने अहंकारों के साथ प्रतिमाओं की तरह सजे। मीडिया ख़बर नहीं करता, बाकी सब करता है। न्यायपालिका न्याय नहीं करती, बाकी सब करती है, विधायिका विधायी काम नहीं करती, बाकी सब धंधे करती है और कार्यपालिका संवैधानिक कार्यपालन नहीं करती, बाकी सब करती है। यानी भोपा एक विधायिका, भोपा दो कार्यपालिका, भोपा नंबर तीन न्यायपालिका और भोपा नंबर चार अहंकारी और अंधा मीडिया, जिसे वह सब नहीं दिख रहा, जो पूरा देश देखता है और बच्चा-बच्चा जानता है!
समय कह रहा है, हम इस देश की देवियों को डायन बनाने के लिए असली अपराधी हैं!
– त्रिभुवन
( लेखक की फेसबुक वाल से साभार )