मैंने अपने दोनों हमलावरों को माफ़ कर दिया है !
मेरे पर हमला करने वाले भुप्पी और अनुराग त्रिपाठी के मन में हिंसक भड़ास भरी पड़ी थी और उसका प्राकट्य उन्होंने प्रेस क्लब आफ इंडिया में इनने किया. मैंने अपनी तरफ से रिएक्ट नहीं किया या यूं कहें कि धोखे से इनके द्वारा किए गए वार से उपजे अप्रत्याशित हालात से मैं भौचक था क्योंकि मुझे कभी अंदेशा न था कि कलम धारण करने वाला कोई शख्स बाहुबल के माध्यम से रिएक्ट करेगा.
मैं शायद अवाक था, अचंभित था, किंकर्तव्यविमूढ़ था. इस स्थिति के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं था. अंदर प्रेस क्लब में तारीफ और बाहर गेट पर हमला, इस उलटबांसी, इस धोखेबाजी से सन्न हो गया था. आज के दिन मैं मानता हूं कि जो हुआ अच्छा हुआ. हर चीज में कई सबक होते हैं. मैंने इस घटनाक्रम से भी बहुत कुछ लर्न किया. मेरे मन में इनके प्रति कोई द्वेष या दुश्मनी नहीं है. मैं जिस तरह का काम एक दशक से कर रहा हूं, वह ऐसी स्थितियां ला खड़ा कर देता है जिसमें हम लोगों को जेल से लेकर पुलिस, थाना, कचहरी तक देखना पड़ता है. एक हमला होना बाकी था, ये भी हो गया. अब शायद आगे मर्डर वाला ही एक काम बाकी रह गया है, जिसे कौन कराता है, यह देखने के लिए शायद मैं न रहूं .
मैंने अपने इन दोनों हमलावरों को माफ कर दिया है क्योंकि मैं खुद की उर्जा इनसे लड़ने में नहीं लगाना चाहता. दूसरा, अगर इनकी तरह मैं भी बाहुबल पर उतर गया तो फिर इनमें और मेरे में फर्क क्या रहा? मैं इन्हें अपना दुश्मन नहीं मानता. मेरा काम मीडिया जगत के अंदर के स्याह-सफेद को बाहर लाना है, वो एक दशक से हम लोग कर रहे हैं और करते रहेंगे. ऐसे हमले और जेल-मुकदमें हम लोगों का हौसला तोड़ने के लिए आते-जाते रहते हैं, पर हम लोग पहले से ज्यादा मजबूत हो जाते हैं.
लोग मुझसे भले ही दुश्मनी मानते-पालते हों पर मेरा कोई निजी दुश्मन नहीं है. मैं एक सिस्टम को ज्यादा पारदर्शी, ज्यादा लोकतांत्रिक और ज्यादा सरोकारी बनाने के लिए लड़ रहा हूं और लड़ता रहूंगा. मैं पहले भी सहज था, आज भी हूं और कल भी रहूंगा. हां, इन घटनाओं से ये जरूर पता चल जाता है कि मुश्किल वक्त में कौन साथ देता है और कौन नहीं. पर इसका भी कोई मतलब नहीं क्योंकि चार पुराने परिचित साथ छोड़ देते हैं तो इसी दरम्यान दस नए लोग जुड़ जाते हैं और परिचित बन जाते हैं.
बदलाव हर ओर है, हर पल है, इसे महसूस करने वाला कर लेता है. मैं नेचर / सुपर पावर / अदृश्य नियंता पर भरोसा करता हूं, बहुत शिद्दत के साथ, इसलिए मुझे कतई एहसास है कि हर कोई अपनी सजाएं, अपनी मौज हासिल करता रहता है. इसलिए मैं अपने हमलावर साथियों को यही कहूंगा कि उनने जो किया उसका फल उन्हें ये नेचर देगा जिसके दरम्यान उनका अस्तित्व है.
– यशवंत सिंह
( लेखक भड़ास फॉर मीडिया के सम्पादक है )