मैं तो भीड़ हूँ
मेरा ना कोई नाम है,
मेरा ना कोई मुकाम है,
मैं तो बस लोगों का झुण्ड हूँ,
मैं तो भीड़ हूँ…
मेरा कोई एक निशाना नहीं,
मेरा कोई एक ठिकाना नहीं,
मैं तो बस भटके लोगों का झुण्ड हूँ,
मैं तो भीड़ हूँ…
ना हिन्दू की हूँ,
ना ही मुसलमान की हूँ,
मैं धर्म जात से परे हूँ,
मैं सिर्फ अफवाह ही खाती हूँ,
ना जानवर की हूँ,
ना ही इंसान की हूँ,
मैं तो बस नफरत भरे लोगों का झुंड हूँ,
मैं भीड़ हूँ…
कभी वॉट्सएप्प के ग्रुप से,
कभी खुराफाती षड्यंत्र से,
कभी किसी अख़बार से,
कभी इस सड़ चुके तंत्र से,
मैं तो बस इन्ही से बनती हूँ,
मैं तो बस इन्ही की सुनती हूँ,
में तो बस दिशाहीन लोगों का झुण्ड हूँ,
मैं भीड़ हूँ…
जब जब कोई लिखने से डरता है,
जब जब कोई आवाज़ करने से डरता है,
जब जब कोई किसी की मदद को डरता है,
मैं तब तब शक्तिशाली बनती हूँ,
क्योंकि मैं तो बस अफवाह के गुलामो का झुण्ड हूँ,
मैं भीड़ हूँ…
हाँ मैं भीड़ हूँ…
( राहुल समर )