.. उन्होंने रेगर समाज को “झूठा” साबित कर दिया है !
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले की शाहपुरा विधानसभा क्षेत्र की फूलिया उपखंड के सांगरिया गाँव की दलित बालिकाओं ने साथ हो रही जातीय प्रताड़ना का मामला क्या उठाया ,गाँव का सारा सवर्ण समुदाय ,शिक्षक जमात और प्रशासन उन्हें झूठा साबित करने पर तुल गया है ,एस डी एम द्वारा की गई एक लीपापोती नुमा जांच में दलित उत्पीडन की आरोपी शिक्षिका को क्लीनचिट दे दिए जाने के समाचार आये है .
सांगरिया अनुसूचित जाति की रेगर उपजाति की बड़ी संख्या वाला गाँव है ,यहाँ रेगर समाज के लोगों ने पढ़ लिख कर अपना मुकाम बनाया है ,जमीन जायदाद भी है ,इक्का दुक्का लोगों ने गाँव में मौजूद घृणित सामंतशाही के विरुद्ध भी संघर्ष किया है ,शेष लोग अपने बच्चों को पढ़ा रहे है ताकि वे आगे बढ़ सके .
बड़ी संख्या में रेगर समाज की लडकियां पढने जाती है और अपनी ओर से हरसंभव प्रयास करती है कि वे बेहतरीन परफोर्मेंस दे सके ,मगर गाँव के कथित उच्च वर्ग और सवर्ण जातीय मानसिकता से ग्रसित शिक्षक शिक्षिकाओं का नेक्सस उन्हें लगातार हतोत्साहित करता है ,यहाँ तक कि योजनाबद्ध तरीके से अनुतीर्ण करने तक के कुत्सित कार्य किये जाते है .संख्याबल होने के बावजूद भी कभी रेगर समाज ने इस प्रकार के अप्रत्यक्ष भेदभाव के खिलाफ बोलने की जहमत नहीं उठाई मगर इस बार जब पानी सर से ऊपर गुजरने लगा तो उन्होंने मजबूरन आवाज उठाई ,लेकिन उनकी आवाज़ नक्कारखाने में तूती की आवाज़ भी नहीं बन पाई है ,क्योंकि उन्हें ना तो अपने जातीय रहनुमाओं का सहयोग मिला है और ना ही शासन प्रशासन से संरक्षण हासिल हुआ है ,उलटे फरियादियों को ही अपराधी ठहराने का गन्दा खेल खुलेआम चल रहा है .
हुआ यूँ कि कक्षा 9 की 7 छात्राओं क्रमशः रचना रेगर ,रिंकू रेगर प्रथम ,किरण रेगर ,जसोदा रेगर ,प्रियंका रेगर ,शारदा रेगर तथा रिंकू रेगर द्वितीय ने राजकीय बालिका माध्यमिक विद्यालय की गणित और विज्ञान की टीचर भावना वैष्णव पर यह आरोप लगाते हुए सामूहिक रूप से स्कूल छोड़ दिया कि मैडम उनके साथ जातिगत अभद्र व्यव्हार करती है .इन सभी बालिकाओं ने पहले तो स्कूल जाना छोड़ दिया और बाद में परिजनों द्वारा पूंछने पर बताया कि भावना मेम हमको पानी का केम्पर तथा रजिस्टर छु लेने मात्र पर भी मारती है तथा यह भी कहती है तुम रेगरों की लड़कियां होकर टीचर के लिए रखे केम्पर को छूती हो ,इसके बाद उक्त शिक्षिका अपने लिए पानी की बोतल घर से लाने लगी ,क्योकि वह रेगर लड़कियों के छुए हुए केम्पर से पानी पी कर अपना धर्म भ्रष्ट नहीं करना चाहती है .इतना ही नहीं बल्कि इन दलित बालिकाओं से उक्त शिक्षिका ने अपने चेहरे पर पावडर लगा कर आने और ऊँची एड़ी के सेंडिल पहन कर आने के लिए भी कहा ,वरना फेल कर देने की धमकी दी .दलित छात्राओं का यह भी आरोप है कि उन्हें जानबूझकर पीछे की पंक्ति में बिठाया जाता है और बार बार फेल करने की बात कह कर उन्हें डिस्टर्ब किया जाता है और मानसिक रूप से प्रताड़ना दी जाति है ,जिसके चलते वे ठीक से पढ़ तक नहीं पा रही है .
जब इन छात्राओं के परिजनों ने यह सुना तो उन्होंने स्कूल जा कर इस बात की शिकायत प्रधानाध्यापक से की और कहा कि या तो इस तरह के जातिगत उत्पीडन वाले व्यव्हार के लिए टीचर भावना माफ़ी मांगे वरना वे अपनी बच्चियों को यहाँ नहीं पढ़ाएंगे . हेडमास्टर ने आरोपी शिक्षिका का पक्ष लिया और सभी 7 पीड़ित दलित छात्राओं की टीसी काटकर अभिभावकों के हाथ में रख दी ,उनसे अप्लिकेशन ले ली कि हम अपनी मर्जी से स्कूल छोड़ रहे है,लेकिन शैक्षणिक सत्र के मध्य में एक साथ 7 छात्राओं के स्कूल छोड़ने की खबर मीडिया तक पंहुच गई और दूसरे दिन एक समाचार पत्र में छप गया कि क्रीम पावडर नहीं लगाने के चलते दलित छात्राओं को छोड़ना पड़ा सरकारी स्कूल ,इतना छपते ही हंगामा हो गया ,सोशल मीडिया में भी मुद्दा छा गया ,चारो तरफ बात तो फ़ैल गई ,मगर कोई कार्यवाही नहीं हुई.
11 अगस्त की इस घटना और 14 अगस्त को सामूहिक टीसी ले लेने की खबर आ जाने के बावजूद कोई कार्यवाही नही की गई ,शिक्षा विभाग ने शर्मनाक तरीके से चुप्पी साध ली और खबर का कोई संज्ञान नहीं लिया ,पीड़ित दलित पक्ष ने 17 अगस्त 2017 को रेगर समाज की ओर से उपखंड अधिकारी फूलिया कला को ज्ञापन दे कर कार्यवाही की मांग की गई ,तब कहीं जा कर प्रशासन हरकत में आया और 18 अगस्त को एसडीएम जाँच करने के लिए सांगरिया पंहुचे .
जांचकर्ताओं का प्रारम्भिक रवैया ही लीपा पोती करने वाला रहा ,वे पीड़ित दलित बालिकाओं को झूठा और उनके परिजनों को षड्यंत्रकारी साबित करने में जुट गए ,एसडीएम ने सांगरिया पंहुच कर ग्रामीणों ,पीड़ित छात्राओं और आरोपित शिक्षिका के बयान दर्ज किये .यह पूरी प्रक्रिया जिस तरीके से सम्पादित हुई ,उस पर बहुत सारे सवाल उठाये जा रहे है . जाँच अधिकारी ने पीड़ित बालिकाओं के परिजनों को जानबूझकर पूरी जाँच प्रक्रिया से दूर रखा ,ना तो उन्हें सूचित किया गया और ना ही उनके बयान लिए गए ,यहाँ तक कि उनको जाँच के दौरान बुलाना भी उचित नहीं समझा गया .
गोपनीय और भयमुक्त माहौल में जाँच करने के बजाय मजमा –ए – आम में जाँच की गई ,जहाँ पर 15 साल से भी कम उम्र की 7 दलित बालिकाओं को उनके परिजनों की गैरमौजूदगी में जाँच अधिकारी के सामने बुलाया गया ,उस वक़्त 25 से ज्यादा सांगरिया गाँव के गैरदलित युवा वहां पर इन बच्चियों को चारो तरफ से घेर कर खड़े हो गए ,पीड़ित छात्राओं पर इन सवर्ण युवाओं की अराजक भीड़ ने फब्तियां कसी और उनके सामान्य ज्ञान की अवैध परीक्षा लेने लगे ,उनसे गणित ,विज्ञान के सवाल पूंछने लगे और इन बालिकाओं को झूठी कहते हुए मंदिर का दरवाजा खुलवाने और गंगाजली हाथ में उठाने तथा सौगंध खाने जैसे कबीलाई न्याय के काम करवाने का दबाव डालने लगे ,दर्जनों युवाओं ने शिक्षकों और जांचकर्ता की उपस्थिति में यह सब बेहूदा काम किया ,बच्चियों को डराया ,धमकाया और मानसिक रूप से उत्पीडत किया ,ताकि पीड़ित मासूम बालिकाएं अपने बयान तक नहीं दे सके .अंततः इन पीड़ित दलित छात्राओं से हस्ताक्षर करवा लिए गये ताकि आरोपी शिक्षिका को क्लीनचिट दी जा सके .
आजाद भारत में इतनी अतार्किक ,अवैज्ञानिक और असंवैधानिक जाँच कहीं नहीं हुई होगी ,जैसी सांगरिया में एसडीएम ने की इतने भययुक्त ,डरावने और घिनौने माहौल में जाँच के नाम पर सिर्फ लीपपोती कर दी गई और पीड़ित पक्ष को ही झूठा साबित कर दिया गया और जातिवाद से ग्रस्त मैली मानसिकता के आरोपी पक्ष को अभयदान दे दिया गया कि वो शेष बची बालिकाओं के साथ भी जातिगत उत्पीडन कर सके .
यह सुनना कितना भयानक है कि लोकतंत्र में आज भी यह सब कुत्सित षड्यंत्र ,कुचक्र और साजिशें सरेआम चल रही है ,आज भी दलित छात्राएं रजिस्टर छु लेने पर पिटती है और पानी का कैम्पर छू कर जातिगत गालियां खाती है ,इतना ही नहीं बल्कि उनको पढने के लिए नहीं बल्कि क्रीम पावडर लगा कर आने के लिए प्रेरित किया जाता है ,ताकि वे आगे जा कर मॉडेल बन सके ,बार बार बात बेबात उन्हें फ़ेल करने की धमकी देकर उन्हें मानसिक रूप से तोड़ने की गहरी साजिस की जाती है ताकि ये बालिकाएं अपना आत्मविश्वास खो दें और अंततः जिन्दगी में हर जगह विफल हो जाये .क्या यह किसी शिक्षका से उम्मीद की जानी चाहिये ,मगर यह सब सांगरिया में हो रहा है .जाँच के नाम पर की गई मजाक सर्वथा निंदनीय घटनाक्रम है ,किसी लोकसेवक का यह व्यवहार अपने आप में ही दलित उत्पीडन के तहत गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है .
इस पूरे प्रकरण में कथित सवर्ण समुदाय अजीब अजीब से तर्क भी दे रहा है ,पहला तर्क है कि विद्यालय में 124 दलित लडकियां अध्ययनरत है ,जब उनके साथ कोई भेदभाव नहीं तो केवल इन 7 छात्राओं के साथ ही दलित उत्पीडन कैसे संभव है ? क्या यह कुतर्क मान्य किया जा सकता है ? अगर एक लड़की को भी जातिगत उत्पीडन की अनुभूति होती है और उसकी शिकायत है तो उसका कानूनन निदान होना चाहिये ,ना कि भीड़ के साथ उसकी तुलना कि बाकी के साथ ऐसा नहीं होता ,इसलिए पीड़ित के साथ ऐसा नहीं हो सकता है ,यह कबीलाई न्याय की स्थिति है ,जिसे कोई भी सभ्य समाज और ज़िम्मेदार अधिकारी स्वीकार नहीं कर सकता है ,लेकिन सांगरिया प्रकरण में यह कुतर्क बार बार सामने लाया जा रहा है .
इसी प्रकार से यह भी दलील दी जा रही है कि बालिका माध्यमिक विद्यालय का चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी भी दलित रेगर समाज से है ,जो विद्यालय स्टाफ के लिए चाय बनाता है ,उसके हाथ की बनी चाय सब पीते है .वे चाहते है कि इसका आशय यह निकाला जाये कि विद्यालय में भेदभाव नाम की कोई चीज़ अस्तित्व में ही नहीं है .सवाल यह है कि यह चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी विद्यालय स्टाफ के लिए चाय बनाने और उनके झूठे कप गिलास धोने की ड्यूटी पर उस विद्यालय में नियुक्त है ? क्या उसके सेवा नियम उसे चाय बनाने के लिए अधिकृत करते है या समाज की स्वीकार्य मानसिकता अब भी दलितों को चौथे पायदान पर सेवाकर्मी या सफाईकर्मी के रूप में ही देखती है ? अगर उस चपरासी से विद्यालय स्टाफ चाय के बाद सबके झूठे कप गिलास साफ करवाता है ,तो यह एक और किस्म का उत्पीडन और बेगारी है ,जिसके विरुद्ध भी क़ानूनी कार्यवाही संभव है .
हद तो यह है कि जो दलित छात्राएं बालिका विद्यालय छोड़ कर 2 किलोमीटर दूर संस्कृत विद्यालय में प्रवेशित हो गई ,उन्होंने 15 अगस्त के सभी स्कूलों के सामूहिक आयोजन में नृत्य की प्रस्तुति दी ,उनकी मनमोहक प्रस्तुति पर अपने विद्यालय की छात्राओं को ताली बजाने से भी मना करने जैसा निकृष्ट कार्य भी उक्त शिक्षिका द्वारा किये जाने की बात अभी भी उक्त विद्यालय में अध्ययनरत छात्राओं ने कही है . यह शिक्षिका है यह कोई शिक्षा जगत की डॉन है ,ऐसे भी कोई तुगलकी फरमान अपनी ही शिष्याओं के खिलाफ देता है ? पर दे सकता है यहाँ पहले भी गुरुओं ने शिष्यों से छलपूर्वक अंगूठे कटवा लिये थे ,यहाँ सब कुछ हो सकता है ,यह इस देश की महान संस्कृति का अभिन्न अंग है ,इसे वृहतर समाज जायज मानता है ,यहाँ अन्याय ,उत्पीडन ,भेदभाव और छुआछूत को समाज ,संस्कृति और धर्मशास्त्रों की मान्यता मिली हुई है ,इसलिए ऐसा करते हुए ना तो इन कथित गुरुजनों को अपराधबोध होता है और ना ही उनमें क्षमा भाव पैदा होता है .
मैंने कल इन पीड़ित बालिकाओं और उनके परिजनों के साथ तक़रीबन 2 घंटे गुजारे ,सातों बालिकाओं से करीब 40 मिनिट बात की ,उन्होंने कहा –सर हम झूठ नहीं बोल रही ,हम क्यों झूठ बोलेंगी ,हमारे माता पिता को हमने बताया ,हमारे साथ क्या हो रहा है ,हम एक भी दिन और उस स्कूल में नहीं पढ़ सकती है ,मैडम हमको बहुत सताती है ,हम सच बोल रही है ,हम किसी की भी कसम खा कर यह बात कह सकती है ,हम सबको यही कह रही है ,पर हम तो बच्चियां है ,हमारी कोई सुनता ही नहीं है ,उनकी तरफ से तो बड़े बड़े भैया लोग आ कर बात करते है और हमको अकेले बुलाकर उनके सामने पूछते है ,हमको डराते है ,सर क्या हमें आगे जाकर कोई परेशानी तो नहीं होगी ? हमने तो पढ़ा कि जीत सदैव सत्य की होती है ,सत्यमेव जयते लेकिन हमारे मामले में तो तो सत्य हार रहा है ..फिर भी हम नहीं दबना चाहती ,हम डर नहीं रही उनसे ,वो लोग गलत है ,भावना मेम गलत है ,हम हर बार यही कहेंगे .
मैंने उन बहादुर मासूम भीमपुत्रियों की हिम्मत को सेल्यूट किया और उन्हें आश्वस्त किया कि जीत तो सत्य की ही होगी ,उन्हें घबराने की जरुरत नहीं है ,उनको अपने सच पर अटल रहना है ,हम न्याय के लिए हरसंभव दरवाजा खटखटायेंगे.इन बालिकाओं के संघर्षरत परिजनों से भी बात की ,वह भी तमाम विपरीत हालातों के बावजूद लड़ने का माद्दा रखे हुए है ,मगर क़ानूनी समझ का अभाव साफ नज़र आया ,उन्हें सबसे पहले मुकदमा दर्ज करवाना था ,मगर वे ग्रामीणों और शिक्षिक शिक्षिकाओं से डर गए कि मामला पुलिस में गया तो बहुत बड़ा हो जायेगा ,उन्हें अपनी निर्दोष मासूम बच्चियों की भी चिंता रही ,इसलिए खबर और ज्ञापन तक ही सिमित रह गए ,मगर अब उन्होंने आर पार की लडाई लड़ने की ठान ली है ,वे एसडीएम की जाँच और शिक्षा विभाग की लीपापोती में यकीन नहीं कर रहे है ,उन्हें पुलिस कार्यवाही चाहिये ,वे चाहते है कि उनको समाज के पढ़े लिखे ,अग्रणी लोगों की मदद मिले तो वे इस मामले को अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण कानून के तहत लड़ने के लिए तैयार है ,वे एक निष्पक्ष जांच चाहते है और आरोपी के खिलाफ कार्यवाही ,ऐसा नहीं होने पर वे आंदोलनात्मक कदम लेने को भी तत्पर है ,लेकिन उन्हें अपने ही समाज के रहनुमाओं की मदद चाहिये .
क्या पीड़ित रेगर समुदाय के जातिगत संगठन ,महासभाएं और उनके मुखिया सांगरिया गाँव के आम रेगर परिवारों की पीड़ा को महसूस कर सकते है .क्या वे मालाओं ,साफों ,सामूहिक लग्नों ,शोभायात्राओं ,बेवाणों,कथाओं ,कलशयात्राओं और महाकुम्भों ,प्रतिभासम्मान समारोहों के आरामदायक मंचों से नीचे आ कर इन दलित प्रतिभाओं को बचाने के लिए सडकों पर आ सकते है ? क्या वे सांगरिया गाँव में अपने लोगों के साथ जमीन पर जाजम पर बैठ कर संघर्ष का ऐलान कर सकते है ,क्योंकि आज सांगरिया के रेगर समाज को झूठा साबित करने के लिए पूरा तंत्र लगा हुआ है ,एक पूरे समुदाय को झूठा सिद्ध करने की इस कुत्सित और घृणित चाल को नाकाम करने में सामाजिक रहनुमाओं की भूमिका जरुरी है ,अपने अपने कम्फर्ट जोन से बाहर आ कर मुट्ठियाँ तान कर बदलाव के लिए श्रम करने की जरुरत है .आम समाज आपकी तरफ उम्मीद और हसरत भरी निगाह से देख रहा है ,अब फैसला आपका है कि सांगरिया में रेगर समाज जीतेगा या हार जायेगा .वह सच के पक्ष में लड़ते हुए झूठा साबित होगा या सत्यमेव जयते का सिंहनाद करेगा ,अगर रेगर समाज के संगठन और रहबर आगे कदम बढ़ाएंगे तो मुझे पक्का यकीन है कि देश भर का दलित ,बहुजन मूलनिवासी समाज आपके कदमों से कदम और भुजाओं से भुजाएं मिलकर इंसाफ की इस जंग में आपके संग संग चलेगा ,वह तैयार है बस आपके आव्हान और क़दमों की आहट आने लगे ..!
– भंवर मेघवंशी
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता है ,विगत दो दशक से दलित ,आदिवासी और घुमंतू समुदायों के प्रश्नों पर कार्यरत है ,उनसे bhanwarmeghwanshi@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है )