क्या आप रमेश भंगी को जानते है ?
रमेश भंगी से मैं पहली बार कल ही मिला.वे भारत सरकार के अनुवाद ब्यूरो में काम करते हैं,मैं उनके लिखे हुए लेख आदि पहले से पढता हूँ.मैं और मेरी पत्नी हिमाचल से दिल्ली आये हुए हैं सो कल रमेश भाई के घर उनसे मिलने पहुँच गए,रमेश भाई और उनकी पत्नी ने अपनी ज़िन्दगी की जो कहानी सुनाई वह आपको भी सुननी चाहिए.
रमेश का जन्म बागपत के पास मलकपुर में हुआ था.रमेश के पिता के पास कोई ज़मीन नहीं थी,रमेश के पिता ईंट भट्टे पर मजदूरी करते थे.रमेश भी स्कूल से लौट कर पिता के साथ ईंट भट्टे पर काम करते थे.इसके अलावा रमेश सुअर भी चराते थे.जब रमेश की शादी हुई तो वे दसवीं पास ही थे.पैसा कमाने के लिए वे अपनी पत्नी को लेकर दिल्ली आ गए,
रमेश ने कचरा बीनने का काम शुरू किया.तीन साल तक कचरा बीन कर बेच कर अपना परिवार पालने के साथ साथ रमेश पढ़ते रहे और उन्होंने बारहवीं की परीक्षा पास कर ली.बारहवीं पास करने के बाद रमेश को दिल्ली परिवन निगम की बस में कंडेक्टर की नौकरी मिल गयी,
रमेश बस में भी पढ़ते रहे.रमेश बताते हैं मैं दो स्टाप के बीच में मिले समय में पढता था.रमेश का नाम किताब वाले कंडेक्टर के रूप में जाना जाने लगा था.इसके बाद रमेश ने एमए पास कर लिया और स्टाफ सेलेक्शन कमीशन की परीक्षा भी पास कर ली,रमेश को भारत सरकार में अनुवादक की नौकरी मिल गयी.उन्होंने लोकसभा में अनुवादक का काम किया.
नौकरी करते हुए भी रमेश ने पढना नहीं छोड़ा, रमेश ने एमए के बाद कानून की पढ़ाई करी,
एलएलबी के बाद उन्होंने एलएलएम किया, कई सारे डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स पास किये,
रमेश की डिग्रियां लिखने से पूरा विज़िटिंग कार्ड भर जाता है.रमेश बताते हैं कि मुझे देख कर दुसरे कई कंडेक्टर ने भी पढ़ाई शुरू करी और दूसरी नौकरी में चले गए.
रमेश बेहद शांत और मीठा बोलते हैं.उनके घर का एक कमरा किताबों से भरा हुआ है.रमेश सामाजिक न्याय के मुद्दे पर काम करने वाले एक सक्रिय कार्यकर्ता भी हैं.आठ महीने बाद रमेश सरकारी नौकरी से भले ही रिटायर हो जाएँ लेकिन देश को इंसानों लायक बनाने का काम वे करते रहेंगे.
– हिमांशु कुमार
( लेखक जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता है )