शिव बोधि की कवितायेँ
मांगेगा हिसाब आपसे
वो पलटेगा और मांगेगा हिसाब आपसे ।
अब रोके नहीं रूकेगा ये सैलाब आपसे ।
हम बस अमन चाहते हैं और जुल्म न हों
इससे ज्यादा क्या कहें और साब आपसे ।
हम शुद्रों ने शुद्ध ही रखा है अपना देश
हम नहीं मांगेगे गाय का पेशाब आपसे ।
मैं दीया हूं मगर अन्धेरे से पूछूँगा जरूर
कौन ले गया वो आपका आफताब आपसे।
दहशतगर्दी के माहौल में मुश्किल बहुत है
पर छूट न जाए हाथ की किताब आपसे ।
बिखरी हुई मांओं की दुआएं जो साथ हैं
बिलखते हुए बच्चों के हैं ख्वाब आपसे।
चुप्पी कत्ल कर देगी अल्फाज़ का ‘बोधि’
अगली पीढ़ी जो पूछेगी जवाब आपसे ।
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मेरी कविता ,मुझे चैन से जीने नहीं देती !
जब भी उतरती है कविता
वेदना में कराहते
शब्दों की पलकें टपक पङती हैं
जिनकी कोरों की तहों में
दबा पङा है
सदियों का सुलगता संघर्ष !
रिसने लगता है आक्रोश
ये स्याही नहीं है जो कविता लिखती है,
वो रंग है
जो मेरे पसीने, आसूं और रक्त से बना है।
मैं नहीं जानता उनका अनुपात क्या है?
मेरी ही कविता उस रंग से क्यों लिखी जाए ??
ये ही वो बेहुदा सवाल हैं
जिन्हें मैं रोज
धर्मग्रंथों के पन्ने पलट-पलट कर खोजता हूँ ।
मेरी कविता
मुझे चैन से जीने नहीं देती !!!!
( कवि राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य रचनाकार है )