बाहर मत भटको ,अपने अंदर देखो !
(डॉ.एम.एल. परिहार)
बाहर यानी भटकाव, अंधेरा. अंदर यानी उजाला. अकेले हो तो ध्यान करो, समुह में हो तो प्रेम करो, मैत्री फैलाओ. भीतर का दीया जले, उजाला अंदर से हो, ज्ञान व ध्यान की ज्योति जले....जो धन से नहीं मिलता है वह ध्यान से हासिल होता!-->!-->!-->…