यह क़ुफ़्र है मुनव्वर राना साहब !
( पंकज श्रीवास्तव )
मुनव्वर राना को सुनते हुए आंसू निकल आते हैं। चाहे मां पर लिखा हो या ‘मुजाहिरनामा’, सुनिए तो दिल रो उठता है। अब वो कह रहे हैं कि पैगंबर या देवी देवताओं का अपमान करने वालों का क़त्ल कर देंगे। यक़ीन नहीं होता कि मुहब्बत में जान देने का शऊर सिखाने वाला शायर परस्तिश में जान लेने का दम भर रहा है। बयान बताता है कि उम्दा शायर होने के बावजूद उन्हें एक चीज़ पर यक़ीन नहीं है जिसे ‘सभ्यता’ कहते हैं।
राना साहब ने कोई अनोखी बात नहीं कही है। ‘ईश निंदा’ के नाम पर सदियों से लोग मारे जाते रहे हैं। सवाल उठाने वालों को ज़िंदा फूंका जाता रहा। यह तो बीती सदी का हासिल है जहां सज़ा देने का काम भीड़ के साथ से निकल कर अदालतों के पास पहुंचा। राना साहेब के पास आंसुओं से भरा जो तालाब है, उससे मध्ययुगीन बदबू आ रही है, जिसे वे इत्र समझते हैं।
सवाल है कि बेअदबी है क्या? मुहम्मद साहेब की ज़िंदगी का मशहूर वाक़या है कि उन पर रोज़ कूड़ा फेंकने वाली बुढ़िया ने एक रोज़ ऐसा न किया तो हुज़ूर परेशान हो उठे। उसका हाल चाल लेने पहुंच गये। एक बुढ़िया के क़त्ल लायक़ ताक़त तो उनके मानने वालों के पास रही ही होगी लेकिन पैगंबर की ओर से इजाज़त न थी।
आलिम लोग बताते हैं कि इस्लाम में ईश निंदा जैसा क़ानून मोहम्मद साहब के न रहने के दो सौ साल बाद आया जब बादशाहों ने अपनी ताक़त बढ़ाने के लिए ख़ुद को दूसरों से कट्टर मुसलमान साबित करना शुरू किया। मोहम्मद साहब के तमाम परिजन भी ऐसे ही पक्के मुसलमानों के शिकार बने। हसन-हुसैन की शहादत का क़िस्सा भी मिसाल है। उन पर ज़ुल्म ढाने वाले भी मुसलमान ही थे। पड़ोसी पाकिस्तान में भी जब जनरल ज़िया ने सत्ता हड़प ली तो ईश निंदा क़ानून लाकर ख़ुद को ‘असल अल्ला वाला’ साबित किया। वहां हर साल सैंकड़ों शिया इसलिए हलाक़ कर दिये जाते हैं कि उनका इस्लाम वहाबियों के मुक़ाबले कम गाढ़ा है!
गोडसे को भी लगता था कि गांधी कि हिंदूपन कमज़ोर है। इसलिए सीने में तीन गोलियां उतार दीं। दाभोलकर, कलबुर्गी, पनासरे की हत्या करने वालों को असली ‘सनातनी’ होने का गर्व है।!
राना साहब ने बैलेंस करने के चक्कर में राम और अन्य देवी देवताओं का अपमान भी जोड़ दिया है। पेरियार दक्षिण भारत का मिज़ाज बदलने वाली सबसे ऊंची शख्सियत माने जाते हैं। उन्होंने ‘सच्ची रामायण’ में न जाने क्या-क्या लिखा है। सुप्रीम कोर्ट से वह किताब संरक्षित है। लगता है राना साहेब को जानकारी न थी, वरना पेरियार को स्वाभाविक मौत नसीब न होती।
संवेदनाओं का आहत होना एक ख़तरनाक पैमाना है जिसके रास्ते पर चलने से दुनिया और बर्बाद हो जायेगी। मिथिला में राम को गाली देते हुए गीत गाये जाते हैं। ‘कुमार संभव’ में कालिदास ने शिव-पार्वती के संभोग की विशद चर्चा की है। भागवत में कृष्ण स्नान कर रही गोपियों के वस्त्र चुरा लेते हैं। तमाम मंदिरों में मैथुनरत इंसानों की मूर्तियां सहज भाव से उकेरी गयी हैं। आज के हिंदुत्ववादी दौर में यह सब संभव नहीं हो सकता था। राना जी भी ऐसे लेखकों और कलाकारों के साथ काट लेते, पर यह सब भारतीय संस्कृति की थाती हैं।
फ्रांस या पश्चिमी दुनिया में पैगंबरों का मज़ाक़ बनाया जाता है। ईसा का भी उड़ता है। मरियम के कुंआरे होने पर सवाल उठते हैं। यह सब आसानी से हासिल नहीं हुआ है उन्हें। न जाने कितनी मारकाट और क़ुर्बानी के बाद उन्होंने यह अधिकार हासिल किया है। इसे वे आसानी से नहीं छोड़ेंगे। वह भारत नहीं कि हुसैन को आख़िरी वक़्त पर मुल्क छोड़ना पड़े।
दुनिया ग्लोबल हूई है लेकिन संवेदनाओं का ग्लोबल धरातल संभव नहीं है। रास्ता यही है कि जिस देश में रहिये, वहां का क़ानून मानिये। बहुत से देश हैं जहां ग़ैर मुस्लिम को बसने की इजाज़त नहीं। कुछ तो अपनी नस्ल पर इतना गुमान करते हैं कि दूसरे देश के मुसलमान भी बर्दाश्त नहीं। जिसे बुरा लगे, रिश्ता तोड़ दे। फ्रांस के क़ानून पसंद नहीं तो सउदी अरब में बस जाएं। फ़्रांसीसियों को अपनी तरह बनाने की ज़िद बेकार है।जिन्हें लगता है कि किसी कार्टून से पैगंबर की बेइज़्ज़ती हुई है, वे सज़ा देने का काम ख़ुदा पर छोड़ दें। ख़ुद सज़ा देने की ख्वाहिश में ख़ुदा होने का गुरूर छुपा है, जो शायरों को अक़्सर हो जाता है। पर यह क़ुफ़्र है राना साहब