रामदेव का योग, हाथी और गधे
( पंकज श्रीवास्तव )
रामदेव हाथी की पीठ पर प्राणायाम करते हुए गिर गये। पता नहीं हाथी ने भी अनुलोम-विलोम करना शुरू कर दिया था या उसे हाथी से गधा बनना स्वीकार नहीं हुआ। उसकी कसमसाहट ने रामदेव को ज़मीन सुँघा दी।
वीडियो वायरल हुआ, लोग हँसे।
लेकिन इस हँसी में एक विद्रूप छिपा है। एक विडंबना जो पतंजलि के महान योग सिद्धांत को ‘नट-करतब’ बनाये जाने से पैदा हुई है। रामदेव ने उठक-बैठक को योग बताकर बाज़ार के हवाले कर दिया। नाम के आगे बाबा या स्वामी लग जाये तो श्रद्धालु जन किसी को पीठ क्या सर पर बैठा लेते हैं। उनमें हाथी जैसी सलाहियत कहाँ!
2006 में स्टार न्यूज़ की ओर से इलाहाबाद अर्धकुंभ कवर करने का मौक़ा मिला था। लगभग एक महीने तक संगम तट पर ही चैनल का शिविर था जहाँ सारी दफ्तरी सुविधाएं तो थी हीं, रात में रुका भी जा सकता था। पूस की सर्दी जानलेवा थी लेकिन प्रमुख स्नानों के पहले उमड़ने वाली भीड़ को देखते हुए रात वहीँ काटने की मजबूरी थी। शहर के होटल तक लौट पाना असंभव हो जाता था। रात में कुंभ दर्शन का अलग आनंद है। तमाम ऐसे रहस्य उजागर होते थे जो दिन के उजाले में नज़र ही नहीं आते थे।
ख़ैर, विषयांतर हो रहा है। मुद्दा है योग।
तो उस कुंभ प्रवास के दौरान तमाम योगी ऐसे मिले जो रामदेव को फूटी आँख भी नहीं देखना चाहते थे। तब उनका नया-नया क्रेज़ था। सुबह टीवी पर आकर वे नाखून रगड़वा रहे थे और लोगों को यक़ीन हो चला था कि ऐसा करने से बाल झड़ना रुकता है। गंजे भी सुबह-सुबह पार्कों में नाख़ून रगड़ते मिल जाते थे। रामदेव की पेट मथने की कला तो लोगों को दाँतों में उँगली दबाने को मजबूर कर देती थी। वे थोड़ा झुककर दोनो जांघों पर हाथ रखते थे, नाभि को पीछे खींचते थे और पेट को चक्राकार घुमाने लगते थे। कैमरा ठीक नाभि पर ज़ूम करता था और टीवी के पर्दे पर सकल ब्रम्हांड नाचने लगता था।
दरअसल यह षटकर्म में आने वाली नौली क्रिया थी जिसे योगी लोग आमतौर पर थोड़े अभ्यास से साध लेते हैं। पर रामदेव इसे चमत्कार की तरह पेश करके बाज़ार साध रहे थे। तमाम दूसरे योगी जल रहे थे। कुंभ में आये एक युवा योगी ने रामदेव से भी तेज़ पेट घुमाकर हमें दिखाया और उसे स्टार न्यूज़ के कैमरे में क़ैद करने की चुनौती दी। उसमें रामदेव को लेकर ईर्ष्या थी। इच्छा थी कि रामदेव की तरह उसका ‘उदर-मंथन’ भी दुनिया देखे और वो भी नाम-दाम कमाये।
बहरहाल, रामदेव जैसा दाँव किसी का नहीं चला। या कहें कि ‘जो मारे सो मीर।’ रामदेव ने टीवी युग में योग को लेकर पहला दाँव चला और उदारीकरण के बाद मध्यवर्ग के पास आयी ‘ईएमआई समृद्धि’ के साथ पेट में भरी गैस निकलवाने लगे। न्यूज़ चैनलों में सुबह का बैंड उनके हवाले था। ऐसे में कौन उनका मुक़ाबला कर सकता था। थोड़ी सी उछलकूद से निकली एक भरपूर पाद को रामदेव ने ‘योग भगाये रोग’ बताकर बेच दिया।
हमारे लिए योग का अलग ही मतलब था। योग के नाम पर विवाद भड़काकर राजनीति चमकाने वाले ‘विकटोदर’ राजनेताओं के मंच पर आने से पहले ही योग हमारे पाठ्यक्रम में था। जी हैँ, उसी ‘लिब्रांडू, शेखुलर’ कांग्रेसी सरकार के दौर में योग बीती सदी के अस्सी के दशक में स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा था। हम सेंट्रल स्कूल, रायबरेली में पढ़ते थे जहाँ योग के बाक़ायदा शिक्षक थे और योग का मतलब सिर्फ़ आसन नहीं था। पूरा परिवेश ही जैसे ‘अष्टांग योग’ की शिक्षा देता था। दीवारों पर हर तरफ़ प्रेम और इंसानियत का पाठ पढ़ाती इबारते थीं। बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा रहता था-‘लव इज़ गॉड!’ गोया प्रेम है तो ईश्वर की क्या ज़रूरत?
ऐसा नहीं कि नफ़रतें नहीं थीं, लेकिन नफ़रती लोग मनुष्य से एक दर्ज़ा नीचे समझे जाते थे। गणित के सिद्दिकी सर ने क़व्वाली लिखी थी एनुअल फंक्शन के लिए-
ख़ासाने वतन हम अपने वतन को रश्क़े इरम फ़रमायेंगेकहलायेगा ये क़ौमों का चमन हम जाने चमन कहलायेंगे
(हम अपने वतन को ऐसा बनायेंगे कि स्वर्ग भी ईर्ष्या करेगा। ये देश तमाम जाति-धर्म के लोगों का बग़ीचा होगा और हम बच्चे इसके फूल होंगे।)
और हम बच्चों की नज़र में यह एक संभव संकल्प था!
आज भी याद है, 2 अक्टूबर के कार्यक्रम के लिए एक गीत सिखाया गया था- ‘कौन कहता है, मर गये गाँधी, मौत गाँधी को आ नहीं सकती…!”धुन बहुत मोहक थी और दिमाग़ पर चढ़ गयी थी। एक दिन हाफ़ पैंट पहने, हाथ में कंडिया लिये इसी गीत को गुनगुनाते हुए हम सब्ज़ी लाने जा रहे थे। थोड़ी देर बाद गुनगुनाना बंद किया तो पीछे से आवाज़ आयी- अरे रुक क्यों गये! गाओ! देखा तो खादी के कपड़ों की दुकान ‘गाँधी आश्रम’ में बैठने वाले बुज़ुर्ग पीछे खड़े हैं। वे गाँधी जी की शहादत को समर्पित यह गीत सुनते हुए विभोर साथ चल रहे थे। हम शरमा गये।
ये सब इसलिए बताया कि योग का मतलब है मन पर काबू रखना। अगर आप में प्रेम, क्षमा, करुणा जैसे मूल्य नहीं हैं तो योग नहीं कसरत कहिये। जिन महर्षि पतंजलि को रामदेव ने बाज़ार का ब्रांड बना दिया है उन्होंने योग को ‘चित्तवृतिनिरोध:’ ( चित्त की वृत्तियों को चंचल होने से रोकना ) बताया है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि- ये पतंजलि का अष्टांग योग है। इसमें से केवल ‘आसन’ निकालकर रामदेव ने टीवी के पर्दे पर बिछाया और बाज़ार पर शासन करने लगे।
एक बार लखनऊ के एक कॉरपोरेट भूमाफिया की मेज़बानी में लगे योग शिविर में रामदेव से बतौर पत्रकार पूछा था कि “आप ऐसे ज़मीन हड़प वाले लोगों के साथ खड़े होंगे तो चित्तवृत्तियों का निरोध कैसे होगा?”..”आप ये क्यों नहीं बताते कि योग करना है तो आसन के साथ-साथ रिश्वत, बेईमानी, क्रोध, हिंसा जैसी बीमारियों से मुक्त होइये?”
रामदेव खिस्स से हँस दिये थे। किसी सहायक से तुरंत बोले-“अरे पत्रकार महोदय को लौकी का जूस पिलाइये…बहुत टेस्टी है।”
बाबा ने योग को टेस्टी बनाकर गधों को पिला दिया। हाथी अब भी समझदार हैं।