जम्मू कश्मीर के घटनाक्रम इस तरह समझें !
अनुच्छेद 370 का अस्तित्व-
1. पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। लेकिन लगभग निष्प्रभावी हो गया है। नाम के लिए ही सही, अनुच्छेद 370 अब भी जीवित है। केवल अधिकांश प्रावधानों को खत्म किया गया है।
2. इसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है, दी भी जाएगी। लेकिन ऐसे प्रकरणों पर क्या होना है हम समझते हैं। अतः यह परिवर्तन स्थायी माना जाए।
राज्य पुनर्गठन पर-
1. यह अब लंबे समय के लिए अपरिवर्तनीय माना जाए। भले ही अमित शाह ने कहा है कि “एक दिन आएगा जब कश्मीर फिर से पूर्ण राज्य बनेगा”।
इससे क्या बदलाव आएंगे ?
1. केवल प्राशासनिक बदलाव आएंगे।
2. भारत सरकार आज के पहले भी राज्य में जो चाहे कर सकती थी और करवा सकती थी। केंद्र के सारे बड़े निर्णय लागू होते ही थे। अब सौ प्रतिशत लागू होंगे और आसानी से होंगे।
3. इससे भारत और पाकिस्तान के बीच जो कश्मीर पर विवाद है उसकी स्थिति में कोई भी व्यावहारिक परिवर्तन नहीं आएगा। पाकिस्तान में इस निर्णय का भले ही विरोध हुआ है, पर जब वे कश्मीर पर अधिकार को ही नहीं मानते तो किसी प्रशासकीय बदलाव से न तो वो घबराएंगे, न ही उनकी नीति बदलेगी।
4. भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा और नियंत्रण रेखा पर तनाव, सीमा व नियंत्रण रेखा से पाकिस्तान द्वारा की जाने वाली घुसपैठ एवँ पाकिस्तान प्रायोजित आतकंवाद में पाँच अगस्त 2019 के बदलावों से कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। पाकिस्तानी निज़ाम और उसके द्वारा पाले जा रहे आतकंवादी संगठनों का कोई हृदय परिवर्तन नहीं होने जा रहा है।
5. पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर पर भारत का दावा उतना ही बरकार है। (कुछ मित्र जो ऐसा लिख रहे हैं उसका कोई आधार नहीं है)
6. पाकिस्तान पहले से जानता है कि भारत हर कीमत पर कश्मीर को अपने साथ बनाए रखेगा इसलिए इस एक परिवर्तन से उसे कोई ख़ास नया संदेश नहीं मिलेगा। वह शोर मचाएगा, वह अलग बात है।
7. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस पर प्रायः चुप रहेगा।
यह परिवर्तन सही है या ग़लत ?
1. पूरी तरह अनावश्यक है और ग़लत है।
2. जिस तरीके से लागू किया जा रहा है वह क़ानून की नज़र में चाहे जो हो, नैतिकता और संसदीय तथा लोकतांत्रिक परंपराओं के विरुद्ध है।
3. सबसे बढ़कर यह इसलिए ग़लत है कि यह कश्मीर में अलगाव महसूस कर रही जनता को और भी दूर कर देगा। छाती पर पैर रखकर दिल नहीं जीते जाते। दिल जीतने के लिए कुछ कुर्बानियाँ देनी होती हैं, कुछ सामंजस्य बिठाने पड़ता है और कुछ दरियादिली दिखानी पड़ती है। लेकिन सबसे बढ़कर दिल जीतने के लिए विश्वास पैदा करना पड़ता है। रहा-सहा जो भी था, भारत की सरकार ने वह विश्वास आज खो दिया है।
4. अलगाववादी भावनाओं के भड़कने के कारण आतंकी संगठनों को भी भटके हुए युवाओं की भर्ती करने में आसानी होगी। इससे हिंसा की घटनाओं में वृद्धि ही होगी।
5. राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बना दिए जाने को कश्मीरी अपना अपमान समझेंगे। जनता का वह वर्ग जो अब भी भारत के पक्ष में था, उस पर स्थानीय अलगाववादियों का दबाव बढ़ेगा।
6. कश्मीर की धरती जो भारत के साथ थी वह हमेशा रहेगी, लेकिन जनता का समर्थन जो लगभग ख़त्म था वह अब पूरी तरह ख़त्म माना जाए।
7. भारत की सरकार की साख कश्मीर की जनता के लिए ख़त्म मानी जाए। जब तक सुरक्षा एजेंसियाँ और सेना हैं, हमारा क़ब्ज़ा बना रहेगा।
ज़मीन खरीदने के प्रावधानों से क्या बदलाव आएंगे ?
1. कंपनियों को ज़मीनें पहले भी लीज़ पर मिलती थीं, अब और आसानी से मिल जाएंगी।
2. कोई भी आम आदमी कश्मीर जैसे असुरक्षित प्रदेश में ज़मीन ख़रीदकर, घर बनाकर रहेगा यह समझ से परे है।
3. यदि कश्मीर के सारे लोगों को तालों में बंद रखकर राज्य में पर्यटक बुलाए जा सकते हैं तो शायद पर्यटन बढ़े, लेकिन एक उग्र-अलगाववादी माहौल में पर्यटक संभवतः दूर ही रहें।
4. कश्मीर के संसाधनों का वैसा ही दोहन होने लगेगा जैसा हिमाचल और उत्तराखंड में होता है। रोज़गार की जो स्थिति उन राज्यों में और पूरे देश में है, उससे बेहतर शायद ही हो पाएगी।
राज्य पुनर्गठन के क्या मायने हैं ?
1. केंद्र की प्राशासनिक पकड़ अधिक मज़बूत होगी।
2. राज्य की भारत समर्थक पार्टियों की हालत और ताकत कमज़ोर होगी।
3. कठपुतली सरकारों का दौर रहेगा।
4. जैसा कि ऊपर लिखा है, सुरक्षा की स्थिति में कोई अच्छा या बुरा फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।
5. भारत ने इससे पहले अनेक बार और पिछले सालों में अफ़जल गुरु की फांसी और बुरहान वाणी के एनकाउंटर के बाद सड़कों पर हुए विरोध को क़ाबू में किया है। वह इस बार भी, कमोबेश, समय के साथ हो जाएगा।
क्या हमें इस बदलाव का विरोध करना चाहिए और क्यों ?
1. हर हाल में विरोध करना चाहिए,लेकिन जैसा कि पी चिदंबरम ने राज्यसभा में कहा, जो होना था हो चुका। अब केवल इतिहास ही सही-ग़लत का फ़ैसला करेगा।
2. जिस तरीक़े से यह बदलाव लागू किया जा रहा है, वह संकेत है कि आने वाले समय में संवैधानिक प्रावधानों की धज्जियाँ और भी उड़ाई जाएंगी।
3. इसी तऱीके से आगे भारत में विपक्ष के दमन और जनता पर नियंत्रण के नए इंतज़ाम किए जाएंगे।
4. हमें जो आज़ादी मिली थी उसका आधार लोकतंत्र, संवैधानिक संस्थाएँ, संसदीय परम्पराएँ और क़ानूनी ढाँचा हैं। वह पूरा का पूरा आधार और उस कारण से हमारी आज़ादी अब खतरे में है।
- हितेन्द्र अनंत
( लेखक की फेसबुक पोस्ट से )