(कमल रामवानी सारांश)
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घूमने के 2 तरीके होते हैं , एक तो बनी बनाई इटनेरी –मतलब यात्रा प्लान… कब जाना है , कब पहुंचना है , टैक्सी बुक, होटल बुक, मिनट से मिनट शेड्यूल पहले से फाइनल जैसा कि 90% लोग घूमते हैं । इस प्रकार की यात्राओं में जहाँ जाना है वो जगह यानी डेस्टिनेशन महत्वपूर्ण होता है, यात्रा नही….ये यात्राएं आमतौर पर परिवार के साथ की जाती है और काफी खर्चीली होती है क्यों कि परिवार के साथ आप गए हुए हैं तो आप किसी चीज़ में समझौता नही करते,करना भी नहीं चाहिए I
इनका उद्देश्य Tourism होता है Travelling नही…
टूरिज़म और ट्रेवलिंग अदोनों अलग चीजे हैं I
दूसरा तरीका होता है unplanned journey… Travelling
इसमे सिर्फ आने जाने के टिकट्स बुक होते हैं कि इस दिन यहां पहुंचना है और फिर यहीं से निकलना है जैसे चंडीगढ़ या हरिद्वार 1 को जाऊंगा,15 को वापस आऊंगा.
चंडीगढ़ ओर हरिद्वार का उदाहरण लेने का कारण ये है कि चंडीगढ़ हिमाचल का एंट्री पॉइंट है तो हरिद्वार उत्तराखंड का…
ये बीच के 15 दिन कौनसे स्टेशन, कौनसे हिल स्टेशन, कौनसे गांव में बिताए जाएंगे या किसी पहाड़ी गांव में आपका मन लग गया और आपने वही ऊँघते सुस्ताते 5 दिन दिन बिता दिए…
ऐसी यात्राएं कम्फर्ट जोन से दूर होती है और बहुत सस्ती और सुस्ती भरी होती है, लेकिन असल घुमक्कड़ी असल फक्कड़ी यही है…असली आंनद यही है…
ऐसी यात्राएं लोग अकेले करते हैं कोई बोझ लादकर नही चलते, इसको Solo_Travelling या Backpacker_Travelling कहते हैं जो कि इन दिनों बहुत पॉपुलर हो रही है । ये लोग लोकल ट्रांसपोर्ट यूज़ करते हैं , सस्ते डोरमेट्री में स्टे करते हैं , खाना खाने के लिए महंगे रेस्टोरेंट की बजाय ढाबों को चुनते है, यात्रा के दौरान ही नए दोस्त बनाते हैं जो उनको और आस-पास की नई घूमने की जगहे बता देते हैं । मिलकर टैक्सियां शेयर कर लेते है, एक अलग ही दुनिया एक अलग ही कम्युनिटी है ये ।
कभी गौर किया है बाइक टूर करने वाले ग्रुप्स सामने से आते बाइक ग्रुप्स को Wave ?️?️ करते है वो एक दूसरे को जानते नही लेकिन ये अहसास है कि सामने वाला भी मेरे जैसा ही है । ये एक दूसरे की मदद को एकदम तत्पर रहते है । हो सकता है किसी बाइकर की बाइक रास्ते मे खराब हो जाये तो कार में जाता धनपशु लक्ज़री पर्यटक गाड़ी नही रोकेगा लेकिन दूसरा आता बाइकर जरूर गाड़ी रोकेगा और हर संभव मदद करेगा.. अक्सर बाइक के पीछे टेंट का सामान बंधा होता है और पूरी टूलकिट भी रहती है।
जो टूर धनपशु 40 से 50 हजार में करके आते हैं उसको ये 8 से 10 हजार में निपटा लेते हैं । मेरे काफी मित्र इस प्रकार से ही घूमते हैं । कार , ड्राइवर, पहले से बुक की गई होटल्स नाम के झंझट इन लोगो को बिल्कुल पसंद नही… कोई भी टैक्सी या उससे बंधा ड्राइवर आपको किसी एक ही जगह पर 5 दिन रुकने में बाधा पैदा करेगा क्यों कि आप क्यों खड़ी गाड़ी और खाली बैठे ड्राइवर के पैसे भरेंगे…
ऐसी यात्राएं परिवार के साथ सोचिएगा भी मत…
नही तो उनकी व्यवस्थाये और चिंताएं करते करते आप वैसा नही घूम पाएंगे जिससे आपकी आत्मा तृप्त हो… परिवार के साथ पहला वाला तरीका सही है… फुल कम्फर्ट जोन वाला…
मन मेरा भी अब कुलांचे मार रहा है ऐसी ही किसी सोलो ट्रिप के लिए… अब देखो वो यात्रा देसी होती या विदेशी …अभी तो होलिडेज का सीजन है सो इसके बाद ही निकल पाऊंगा लेकिन बैकपेकर यात्रा इसी साल करनी है…
(कमल रामवानी सारांश)
(घुमक्कड़ी और लिखने के शौकीन )