भगत सिंह एक शोला था – नेहरू

511

भगत सिंह क्या था. वह एक नौजवान लड़का था. उसके अंदर मुल्क के लिए आग भरी थी. वह शोला था. चंद महीनों के अंदर वह आग की एक चिंगारी बन गया, जो मुल्क में एक कोने से दूसरे कोने तक आग फैल गई. मुल्क में अंधेरा था, चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा नजर आता था, वहां अंधेरी रात में एक रोशनी दिखाई देने लगी.


हमारा यानी कांग्रेस का प्रोग्राम साफ है. हम कहते हैं कि शांति से हम काम करेंगे. हम शांति कायम रखने की हर एक कोशिश करते हैं. हम चाहे कितनी ही कोशिश क्यों न करें. हमारे रास्ते में अड़चनें लगाई जा रही हैं. क्या भगत सिंह की फांसी से मुल्क में अशांति नहीं फैलेगी?


हमने शांति के तरीकों को छोड़कर दूसरे तरीकों की हमेशा बुराई की है. आज भी हम वही कार्यवाही करेंगे. आज हम फिर शांति के सामने सिर झुकाते हैं. इस रेजूलेशन में हमने यह लिखा है कि हम भगत सिंह इत्यादि के तरीकों से अलहदा हैं, लेकिन हम उनकी बहादुरी के सामने सिर झुकाते हैं. हम अजहद बहादुरी के सामने सिर झुकाना चाहते हैं. हम जानते हैं कि भगत सिंह के मुकदमे में कानूनी ज्यादिती हुई है. उनका मामूली अदालत से ही मुकदमा करना चाहिए था. मुल्क ने इस बात के रेजुलेशन पास किए कि स्पेशल अदालत न खड़ी की जाए, लेकिन एक भी सुनाई नहीं हुई. मुकदमा ठीक-ठाक नहीं हुआ. वायसराय का ऑर्डिनेंस निकला कि स्पेशल अदालत इस मुकदमे को सुनेगी. मामूली अदालत से उनके मुकदमे की सुनवाई नहीं होने दी. क्या यही कानून के अंदर फैसला कहलाता है?


मेरी समझ में तो नहीं आता कि यह फैसला कैसा फैसला हो सकता है. भगत सिंह एक खास राह पर चलने वाला था. उसका अपना प्रोग्राम अलहदा था. मुल्क के लिए बहुत लोगों ने कुर्बानियां की हैं और कर रहे हैं, फिर भगत सिंह का नाम आज सब की जबान पर इतना क्यों है. इसका सबब है. साहब, बात तो यह है कि वह मैदान में साफ लड़ने वाला था. जिस दिलेरी के साथ भगत सिंह मैदान में आया वह सब जानते हैं.


जहां तक यह सवाल है कि भगत सिंह के लिए कांग्रेस ने क्या किया और हम भगत सिंह की कितनी इज्जत करते हैं तो आपको मालूम ही होगा कि इसकी अजहद कोशिश की गई कि यह लोग सजा से माफ कर दिए जाएं, चाहे जन्म कैद रखी जाए. लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. मेरे दिल में भगत सिंह के लिए जो इज्जत है, वह आपसे किसी से कम नहीं है.


-जवाहरलाल नेहरू 
( 29 मार्च 1931 को काँग्रेस के कराची अधिवेशन में नेहरू के भाषण का एक अंश।….भगत सिंह को 23 मार्च 1931को सुखदेव और राजगुरु के साथ लाहौर जेल में फाँसी पर चढ़ा दिया गया था। इसके तुरंत बाद कराची में काँग्रेस का अधिवेशन हुआ। अधिवेशन में महात्मा गांधी की ओर से खुद भगत सिंह की शहादत पर एक प्रस्ताव पेश किया गया। इस प्रस्ताव को कांग्रेस में रखने की जिम्मेदारी नेहरू ने निभायी थी। उसी प्रस्ताव को पेश करते वक्त नेहरू ने यह सब कहा।)

( पंकज श्रीवास्तव की टाइम लाइन से साभार )

Leave A Reply

Your email address will not be published.