‘घुमन्तुओं के संघीकरण’ की परियोजना पूरी हो चुकी है !
– भंवर मेघवंशी
आज देश भर में “घुमन्तू मुक्ति दिवस” मनाया जा रहा है । ऐसा माना जाता है कि तकरीबन 666 जातियां है जो घुमन्तू,अर्धघुमंतू व विमुक्त की श्रेणी में आती है ,इनकी आबादी 15 करोड़ से अधिक अनुमानित है ।
ये लोग अलग अलग जगहों पर अलग अलग पहचानों के साथ पहचाने जाते है । कुछ जातियां अनुसूचित जाति में है तो कुछ जनजाति में , अधिकांश अन्य पिछड़ा वर्ग में आती है तो कुछ धर्मांतरित अल्पसंख्यक समुदायों में गिनी जाती है ।
बेहद जीवट और संघर्ष करने वाले लोग है घुमन्तू ,अपने स्वाभिमान के लिए,सम्मान के लिए लड़ने वाले लोग,हुनरबाज़ ,कलाकार ,प्रकृति के जानकार ,शिल्प के महारथी ।
निडर इतने कि जान देने और लेने में तनिक भी न हिचके ,मेहनतकश लोग है ,किसी की गुलामी पसन्द नहीं करते ,हजारों बरस से परम् स्वतंत्र जीवन इनकी पहचान है ।
देश,धर्म,जाति ,उपजाति की बेड़ियां इनको रोक नहीं पाई, कोई ताला या जेल ऐसी नहीं जो इनको बन्द रख सके ,बन्धन स्वीकार ही नहीं है ,यहां तक कि घर की चारदीवारी का बंधन भी इन्हें परतंत्रता का आभास देता है,इसलिए सदियों से घूमते फिर रहे है,न घर है न गांव ,कोई ठौर ठिकाना ही नहीं है ,अपना तंबू ही घर,गांव,गुवाड़ बना हुआ है ।
हर दौर की सत्ता इनसे भयभीत रही है ,इनका आदिपुरुष शिव लगता है ,जो आदिघुमन्तू है ,अपना कबीला लिये पहाड़ नदियां पठार मैदान जंगल यंत्र तंत्र सर्वत्र घूमता ही रहता था,विभिन्न सत्ताओं से टकराता था,कभी इंद्र से तो कभी विष्णु से ..तो स्थापित सत्ता प्रतिष्ठान से टकराने के शिव तत्व इन घुमन्तुओं के डीएनए में ही शामिल है ,हर समय की हर सत्ता (राज सत्ता ,अर्थसत्ता व धर्म सत्ता ) इनकी दुश्मन रही है और ये भी उसके दुश्मन रहे है ।
नवनाथों की परंपरा भी संघर्ष की कहानियां कहती है ,मुगल दौर में भी ये टकराते रहे ,अपनी छापामार गुरिल्ला पद्धतियों से ये सत्ता संसाधनों पर काबिज ताकतों की आंख की किरकिरी बने रहते थे ।
इन शाश्वत विद्रोहियों को अंग्रेजों ने आपराधिक जनजाति के दायरे में कैद करने की कोशिश की ,इनको नियंत्रित करने ,कुचलने,शक्तिहीन करने का हर षड्यंत्र फिरंगियों ने किया ,पर तब भी ये काबू में नहीं आये ।
सन 1857 के ग़दर और बाद की सशस्त्र क्रांति से भी पहले घुमन्तुओं का स्वाधीनता आंदोलन जारी था,अंग्रेज दुखी थे ,वे हर हाल में इन समुदायों को काबू में करना चाहते थे, इसके लिए व्यापक दमन चक्र चलाया गया,वे थोड़े कामयाब हुए पर पूरे नहीं ।
सन 1947 में मुल्क आज़ाद हुआ,स्वराज आया,1950 में संविधान लागू हुआ ,पर अपने स्वतंत्र देश मे भी घुमन्तू क्रिमिनल ट्राइब के कलंक को ही ढोता रहा ,अंततः 31 अगस्त 1952 में उन्हें आपराधिक जनजाति की पहचान से मुक्ति मिली ,तब से घुमन्तू जातियां हर वर्ष 31 अगस्त को ‘मुक्ति दिवस’ मनाती है । इस वर्ष 67 वां मुक्ति दिवस मनाया जा रहा है ।
मुझे यह बताते हुए गर्व है कि विगत 18 सालों से मेरा घुमन्तू समुदायों से सजीव संपर्क है,उनके बीच जाना आना तो सामान्य घटनाक्रम है ही ,उनके मुद्दों पर बोलना,लिखना,उनके हर प्रकार के आयोजनों में शिरकत करना मेरी दिनचर्या का हिस्सा है ,मुझे इन समुदायों ने बहुत कुछ सिखाया ,अभावों में भी स्वाभिमान के साथ जीना ,मौत जब सामने हो तब भी निडर तन कर खड़े रहना जैसी कईं विशेषताओं से भरा है यह समुदाय ,मेरे दिल मे इस वर्ग के प्रति एक नैसर्गिक प्रेम है ,जिसका इज़हार संभव नहीं है ।
आज यह ऐतिहासिक समुदाय विभिन्न तकलीफें सह रहा है,देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की बदौलत उन्हें क्रिमिनल ट्राइब के कलंक से तो मुक्ति मिली पर उनकी आजीविका,अस्मिता और अस्तित्व के सवाल अनुत्तरित रहे,आज भी ये समुदाय बुनियादी सुविधाओं और संविधान प्रदत मूलभूत अधिकारों से वंचित है ।
देश भर का घुमन्तू समुदाय अपनी पहचान को लेकर जूझ रहा है,उनके पास इस राष्ट्र के नागरिक होने के पहचान पत्रों का भी अभाव है ,उनको रहने को घर नहीं,खेती को जमीन नहीं,व्यापार को दुकान नहीं और तो और मरने के बाद दफ़न के लिए दो गज जमीन तक नहीं है ,मैंने ऐसे सैंकड़ों उदाहरण देखे जहां पर जिंदा और मुर्दा लोग एक साथ ही रहते है ,यानि कि जिस जगह ये लोग रहते है ,वहीं मजबूरी में अपने मुर्दे भी गाड़ते या जलाते है ,आर्थिक रूप से विपिन्न ,सामाजिक रूप से अपमानित,राजनीतिक रुप से उपेक्षित ,जैसे कि वो इंसान ही नहीं हो ।
इस स्वाभिमानी समुदाय के मूल प्रश्नों की किसी को चिंता नहीं है ,थोड़े बहुत प्रयास जरूर हुए,राजनीतिक तौर पर देखें तो कांग्रेस ने इस दिशा में कुछ प्रयास किये,आपराधिक जनजाति के दर्जे से बाहर निकालने से इसकी शुरुआत हुई,बाद में कालेलकर कमीशन बना,कहीं कहीं आवास दिए गए तो कहीं छोटी मोटी जमीनों का आवंटन हुआ,कुछ बच्चे पढ़े लिखे तो कुछ नोकरियाँ मिली,पर व्यापक बदलाव नहीं आया ।
मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह सरकार ने और राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार ने डीएनटी बोर्ड बनाये ,फंड ,फंक्शन और फंक्शनरी दिए,कुछ अच्छे सर्कुलर भी निकले,जैसे कि राजस्थान में सभी घुमन्तुओं को जांच करके बीपीएल में जोड़ने तथा आवास विहीन घुमन्तू परिवारों को ग्रामीण व शहरी इलाकों में निशुल्क भूखण्ड देने के आदेश गहलोत सरकार ने दिये, इसके चलते भीलवाड़ा शहर में 1000 घुमन्तू परिवारों के लिए यूआईटी ने एक घुमन्तू कॉलोनी ही निशुल्क आवंटित की ,जो कि देश भर का पहला सफल प्रयोग था ।
बाद में सोनिया गांधी की सलाहकार परिषद ने भी इस मुद्दे को लिया,योजना आयोग ने भी इस समुदाय पर बात की, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने बालकृष्ण रैंके कमीशन बनाया,जिसने अपनी रिपोर्ट भी पेश की पर वह लागू नहीं की गई।
वर्तमान केंद्र सरकार ने रेन्के कमीशन रिपोर्ट को रद्दी की टोकरी में फेंकते हुए इदाते कमीशन बनाया,उसने भी अपनी रिपोर्ट सबमिट कर दी है ,वह भी लागू की जाएगी या नहीं ,यह सवाल ही बना हुआ है ।
इस बीच इन तबकों का व्यवस्थित तरीके से संघी करण शुरू किया गया,नागपुर के इशारे पर बड़े पैमाने पर लोग इन समुदायों में उतारे गये है तथा इन समुदायों को भगवा झंडे के तले लाने का काम युद्ध स्तर पर जारी है , परम्परागत रूप से सेकुलर रहे घुमन्तुओं का साम्प्रदायिकरण करने की परियोजना अब लगभग पूरी होने जा रही है ।
अब संघ परिवार की नजर देश के 666 जातियों और 15 करोड़ की आबादी वाले घुमन्तू समुदाय पर है ,वे उनको अपनी विचारधारा के सबसे लड़ाकू हरावल दस्ते के रूप में उपयोग करने को तैयार है ,सेकुलर जमात के पास इससे बचने का कोई उपाय नहीं है ,थोड़ा बहुत सिविल सोसायटी के लोग बोलते है,वे भी कब तक बोल पाएंगे ,यह सवाल खड़ा हो चुका है ।
कुलमिलाकर स्थिति यह बन चुकी है कि घुमन्तू समुदाय को एक अलग वर्ग के रूप में शीघ्र ही घोषित किया जाकर उनकी अस्मिता के सवालों को उछाला जायेगा, ताकि उनके अस्तित्व व आजीविका के प्रश्न नीचे दब कर दम तोड़ दें, साज़िश गहरी है और भयानक भी ,जो लोग इन समुदायों के साथ या भीतर कार्यरत है ,उनको इसे समझना होगा ।
( लेखक दलित,आदिवासी एवं घुमन्तू अधिकार अभियान राजस्थान “डगर” के संस्थापक है )