शरद यादव पर भूल कर भी भरोसा मत करना !
शरद यादव ने नितीश को छोड़ दिया,मैं इतना बच्चा नहीं हूँ कि तालियाँ बजा कर नाचने लगूंगा कि बस अब तो मोदी सरकार के पतन और भारत में लोकतान्त्रिक धर्म निरपेक्ष सामाजिक न्याय की शक्तियों के इकट्ठे हो जाने की शुरुआत हो गई है.मुझे शरद यादव पर बिलकुल भरोसा नहीं है.सामाजिक न्याय की तो बात ही मत कीजिये.
बात तब की है जब शरद यादव की पार्टी भाजपा के साथी थे,छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ ने सत्रह आदिवासियों को त्यौहार मनाते समय गोलियों से भून डाला था,मारे गए लोगों में नौ छोटे बच्चे भी थे,इस घटना का विरोध करने के लिए हम लोगों ने दिल्ली में एक बैठक बुलाई,इसमें छत्तीसगढ़ के भूतपूर्व मुख्य मंत्री अजीत जोगी, बस्तर के पूर्व कलेक्टर बीडी शर्मा, सीपीआइ सांसद डी राजा, स्वामी अग्निवेश, सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील कॉलिन गोंसाल्वेस और नंदिनी सुंदर मौजूद थे.
हम लोगों ने सोचा कि शरद यादव आकर आदिवासियों के खिलाफ हुई इस घटना के विरोध में बोलेंगे तो छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार इसे गंभीरता से लेगी,कांग्रेस के चिदम्बरम गृह मंत्री थे वो बयान दे रहे थे कि हमारे सिपाहियों ने वीरतापूर्वक खतरनाक माओवादियों को मार डाला है,लेकिन अपने पूरे भाषण में शरद यादव ने इस घटना के बारे में एक भी शब्द नहीं बोला.
युवा पत्रकार दिलीप खान ने खड़े होकर शरद यादव से कहा कि आप इस घटना पर भी तो कुछ कहिये ?तो शरद यादव कहने लगे तुम्हारी ज़ात क्या है ? तुम लोग मुझे क्या सिखाओगे ? इसके बाद शरद यादव नाराज़ होकर चले गए.
जो आदमी सत्ता और पार्टी के लालच में बच्चों की हत्याओं के खिलाफ मूंह नहीं खोल सकता.आप उससे उम्मीद कर रहे हैं कि वह मोदी के खिलाफ कोई विकल्प खड़ा कर देगा ? बिलकुल भी मत भूलिए कि भाजपा दूसरी पार्टियों की विफलता के कारण सत्ता में आई हैं,
जनता ने पहला मौका आपको ही दिया था,आपने जनता को क्या दिया था .कांग्रेस ने जिस तरह से कारपोरेट के लिए देश के संविधान, मानवाधिकार और लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाई थीं उसे मैं नहीं भूल सकता,निर्दोष मुसलमानों को टाडा, युएपीए, पोटा मकोका में जेलों में ठूंसने वाली कांग्रेस ही थी.
और वामपंथियों को भी मत भूलिए, आजकल तो खैर सीपीएम, भाजपा और कांग्रेस के साथ मिलकर राजनैतिक पार्टियों को सूचना के अधिकार से बाहर रखने के लिए कोशिश में लगी हुई है,जब सीपीएम ने बंगाल में सिंगूर और नंदीग्राम में टाटा के लिए गोलियां चलाई थीं, एक लडकी तापसी मालिक को जिंदा जला दिया गया था, उद्योगपति जिंदल के लिए लालगढ़ में जनता को कुचलने के लिए सीआरपीएफ के ज़ुल्मों की तरफ से आँखें मोड़ ली गई थीं,तब सीपीएम और उसकी समर्थक सीपीआइ को शायद यह उम्मीद नहीं होगी कि जनता इन लोगों को सत्ता से बाहर भी कर सकती है.
खैर कांग्रेस ने आपातकाल के लिए और दिल्ली के सिखविरोधी दंगों के लिए माफी मांग ली है,लेकिन सीपीएम तो अभी तक बंगाल में नंदीग्राम और सिंगूर के लिए माफी मांगने को भी तैयार नहीं है,ठीक है आपकी मर्जी,भाजपा को केवल 31% वोट मिले हैं, 69% मतदाता अभी भी भाजपा को वोट नहीं दे रहा है,लेकिन विपक्षी पार्टियों का जो हाल है वह सबके सामने है.
सिर्फ भाजपा की आलोचना से राजनैतिक परिवर्तन नहीं होने वाला,जब तक राजनैतिक पार्टियां अपनी पुरानी गलतियां नहीं स्वीकार करेंगी, जब तक राजनैतिक पार्टियां अपनी अब तक की गलतियों के लिए जनता से माफी नहीं मांगेगी और भविष्य के लिए नयी योजना जनता के सामने नहीं रखेंगी.जनता इस पुराने आज़मा लिए गए फुस्स पटाखों पर भरोसा नहीं करेगी.
-हिमांशु कुमार
( लेखक माने जाने सामाजिक कार्यकर्ता है )